Bihar News: जिस आफिस में मां लगाती थीं झाड़ू, वहीं बेटा बना अफसर; जहानाबाद के एसडीओ मनोज कुमार की कहानी

Bihar News बिहार के इस अफसर की कहानी हर किसी को प्रेरणा देने वाली जिस दफ्तर में संभाल रहे जिम्‍मेदारी मां का वहां से पुराना नाता जहानाबाद के एसडीओ मनोज कुमार की मां अनुमंडल कार्यालय में कर चुकी हैं चतुर्थवर्गीय कर्मी की नौकरी

By Shubh Narayan PathakEdited By: Publish:Sat, 21 May 2022 12:23 PM (IST) Updated:Sat, 21 May 2022 12:23 PM (IST)
Bihar News: जिस आफिस में मां लगाती थीं झाड़ू, वहीं बेटा बना अफसर; जहानाबाद के एसडीओ मनोज कुमार की कहानी
जहानाबाद के एसडीओ मनोज कुमार और उनकी मां सावित्री देवी। जागरण

वीरभद्र उर्फ गप्पू, जहानाबाद। तपस्या सही हो तो फल निश्चय ही मिलता है। जिस कार्यालय में मां कभी झाड़ू लगाया करती थीं, वहीं उनका सुपुत्र आज अफसर बनकर उनकी तपस्या को फलीभूत कर रहा है। अरवल जिले के अबगिला की सावित्री देवी का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। नौकरी लगने से पहले गांव में किराना दुकान चलाकर परिवार का भरण-पोषण करती थीं। पति रामबाबू प्रसाद खेती-किसानी करते थे। किसी तरह घर-परिवार चल रहा था। इस बीच 1990 में चतुर्थवर्गीय कर्मी की वेकेंसी निकली।

पटना सचिवालय से हुई थीं रिटायर 

आठवीं पास सावित्री देवी ने नौकरी के लिए आवेदन किया। सावित्री देवी को सरकारी नौकरी मिल गई। नौकरी भले ही चपरासी की थी, लेकिन इस सामान्य परिवार के लिए यह बड़ी उपलब्धि थी। जिस समय मां को नौकरी मिली मनोज कुमार मैट्रिक में पढ़ रहे थे। नौकरी के बाद उनकी पढ़ाई का खर्च भी बेहतर तरीके से निकलने लगा। सावित्री की पहली पोस्‍ट‍िंग पटना सचिवालय में हुई। इसके बाद गया और 2003 में जहानाबाद आईं। यहां से 2006 में फिर पटना सचिवालय चली गईं। वहीं से 2009 में सेवानिवृत्त हुईं।

मनोज कुमार देते हैं मां को श्रेय 

अनुमंडल पदाधिकारी मनोज कुमार बताते हैं कि हम लोगों का परिवार पूरी तरह खेती-किसानी पर निर्भर था। जब कभी मां से मिलने अनुमंडल कार्यालय जाता तब इच्छा होती थी कि मैं पढ़-लिखकर बड़े साहब की कुर्सी पर बैठूं। मां इसके लिए हमेशा प्रेरित करती थीं। इसका फल है कि उसी कार्यालय में आज मैं एसडीओ के पद पर कार्य कर रहा हूं।

ग्रामीण कार्य विभाग से शुरू की नौकरी 

एसडीओ के रूप में मेरी पहली पोस्‍ट‍िंग जहानाबाद में ही हुई। इससे पहले पटना में ग्रामीण विकास विभाग में अधिकारी थे। वहीं से नौकरी की शुरुआत है। सावित्री देवी बताती हैं कि आज बेटे को देख गर्व की अनुभूति होती है। बेटा अनुमंडल पदाधिकारी है, लेकिन वह कुर्सी आज भी मेरे लिए उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी पहले थी। 

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