इंसेफेलाइटिस पर भारी पड़ी यह पहल, मासूमों के लिए 'कवच' बनी एक पुस्तिका और लाउडस्पीकर
मुजफ्फरपुर में एईएस के प्रकोप के बीच वहां के कुछ गांव इस जानलेवा बीमारी से बचे हुए हैं। वहां के युवाओं की एक टीम ने बीमारी को लेकर जागरूकता फैला रही है।
मुजफ्फरपुर [प्रेम शंकर मिश्र]। कोशिश छोटी थी, लेकिन उसका असर व्यापक है। एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) प्रभावित मुजफ्फरपुर जिले के कुछ गांवों में इस बीमारी के खिलाफ गुमनाम रहने के शौकीन कुछ युवाओं ने प्रभावी अभियान चलाया है। कुढऩी प्रखंड के इन कुछ गांवों में एईएस की प्रकोप कम है। एक सरकारी जागरूकता पुस्तिका और एक लाउडस्पीकर की बदौलत इलाके के इन गांवों के झोलाछाप डॉक्टर, दवा दुकानदार और अधिसंख्य माता-पिता इस बीमारी के बारे में बहुत कुछ जान गए हैं। वह अपने बच्चों को बीमार पडऩे से बचने के लिए पूरी कोशिश कर रहे। कोई बच्चा बीमार होता है, तो तत्काल उसकी सटीक चिकित्सा शुरू हो जाती है। जागरूकता अभियान चलाने वाले युवा इस सफलता पर खुश हैं, लेकिन प्रचार नहीं चाहते।
बीमारी के खिलाफ ठान ली जंग
मुजफ्फरपुर का कुढऩी प्रखंड एईएस से प्रभावित रहा है। लेकिन यहां के कुछ युवकों ने इस बार बीमारी के खिलाफ जंग की ठान ली। उनके पास समय कम था, क्योंकि गर्मी व नमी के बढ़ते प्रकोप के बीच रोज दर्जनों बच्चे अस्पतालों में भर्ती हो रहे थे। इन युवकों ने कमान संभाली। देखा कि बच्चों के बीमार होने पर लोग क्वैक (झोलाछाप डॉक्टर) या मेडिकल स्टोर भी चले जा रहे थे।
क्वैक व दवा दुकानदारों को दी एसओपी की जानकारी
इन युवकों ने सभी क्वैक व दवा दुकानदारों को स्वास्थ्य विभाग की बनाई हुई एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) की जानकारी दी। इसमें बताया गया है कि एईएस पीडि़त बच्चों को तुरंत पास के स्वास्थ्य केंद्र में पहुंचाना है। वहीं, प्राथमिक उपचार की भी जानकारी दी गई।
गांव-गांव घूमकर अभिभावकों को किया जागरूक
मगर, सबसे महत्वपूर्ण था गरीब बच्चों के अभिभावकों को जागरूक करना। युवाओं की इस टीम ने बीमारी के लक्षण व उपचार को लेकर खुद प्रचार सामग्री तैयार की। इनकी टोली ऑटो में लाउडस्पीकर लगा गांव-गांव घूमने लगी। उन जगहों पर अधिक देर तक रुकी, जहां गरीब परिवार थे। स्थानीय भाषा में बचाव की सभी बातें बताई गईं।
रंग लाई पहल, एक भी मासूम की नहीं हुई मौत
इन युवकों की मेहनत का परिणाम यह हुआ कि आसपास के गांव के एक या दो बच्चे ही इस बीमारी से पीडि़त हुए। कई गांवों में एईएस से एक भी बच्चा पीडि़त नहीं हुआ। इलाके में उईएस से एक भी मासूम की मौत नहीं हुई।
एईएस से बच्चों की मौत ने कर दिया था बेचैन
अभियान में शामिल जमीन कमतौल गांव के एक युवक ने कहा कि मुजफ्फरपुर में एईएस से लगातार बच्चों की मौत के बाद भी कुछ नहीं हो पाने से वे बेचैन हो गए। किसी को दोषी ठहराने से बेहतर था खुद कुछ करना। गांव की 'ज्ञान ज्योति सोसायटी' से जुड़े युवकों ने यह बीड़ा उठाया। उन्होंने कुढऩी, चंद्रहट्टी, जगन्नाथपुर, कमतौल, बांकुल, देवगण, रजला, बाजितपुर, बलौर, मिश्रौलिया, मोहिनी व हरिनारायणपुर आदि गांवों में घर-घर जागरूकता अभियान चलाया। उन्हें इस बात की खुशी है कि छोटे प्रयास से ही सही मासूमों की जान तो बची।
यहां धूप में बाहर नहीं दिखे बच्चे, सड़कों पर पसरा सन्नाटा
युवकों की मेहनत को हमने भी परखा। एनएच-77 से सटे कई गांवों में दोपहर एक से तीन बजे तक घूमे। आम दिनों में बगीचे, सड़क व मैदान में खेलने वाले बच्चे नजर नहीं आए। वे घरों में दिखे। एक-दो जगह छांव में बच्चे पढ़ते भी मिले। चंद्रहट्टी सहनी टोला के लोगों ने कहा, 'बाबू ई बीमारी से बौउआ के बचावे के लेल बाहर नै निकलै दै छी। लयका सब परसू आके कहले रहथिन।' बच्चों को भूखे नहीं सोने देने की बात का भी असर है। भगीरथ देवी कहती हैं, 'लयका के बिना खिलइले ना सुते दै छी। गुड़ो (गुड़) रखै छी घरे।'
हां, यहां यह शिकायत जरूर मिली कि प्रशासन का ओआरएस पैकेट नहीं बंटा है। मगर, जागरूकता के दौरान युवकों ने यह भी बताया था कि चीनी व नमक का घोल बनाकर बच्चों को देना है।
अन्य इलाकों के लिए नजीर बनी इन युवकों की पहल
इन युवाओं का यह प्रयास एईएस प्रभावित अन्य इलाकों के लिए नजीर है। अगर सभी जगह ऐसे अभियान चलाए जाएं तो बीमारी पर काफी हद तक नियंत्रण संभव है। ऐसे अभियानों को प्रशासन से भी मदद मिलनी चाहिए।
बीमारी के खिलाफ ठान ली जंग
मुजफ्फरपुर का कुढऩी प्रखंड एईएस से प्रभावित रहा है। लेकिन यहां के कुछ युवकों ने इस बार बीमारी के खिलाफ जंग की ठान ली। उनके पास समय कम था, क्योंकि गर्मी व नमी के बढ़ते प्रकोप के बीच रोज दर्जनों बच्चे अस्पतालों में भर्ती हो रहे थे। इन युवकों ने कमान संभाली। देखा कि बच्चों के बीमार होने पर लोग क्वैक (झोलाछाप डॉक्टर) या मेडिकल स्टोर भी चले जा रहे थे।
क्वैक व दवा दुकानदारों को दी एसओपी की जानकारी
इन युवकों ने सभी क्वैक व दवा दुकानदारों को स्वास्थ्य विभाग की बनाई हुई एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) की जानकारी दी। इसमें बताया गया है कि एईएस पीडि़त बच्चों को तुरंत पास के स्वास्थ्य केंद्र में पहुंचाना है। वहीं, प्राथमिक उपचार की भी जानकारी दी गई।
गांव-गांव घूमकर अभिभावकों को किया जागरूक
मगर, सबसे महत्वपूर्ण था गरीब बच्चों के अभिभावकों को जागरूक करना। युवाओं की इस टीम ने बीमारी के लक्षण व उपचार को लेकर खुद प्रचार सामग्री तैयार की। इनकी टोली ऑटो में लाउडस्पीकर लगा गांव-गांव घूमने लगी। उन जगहों पर अधिक देर तक रुकी, जहां गरीब परिवार थे। स्थानीय भाषा में बचाव की सभी बातें बताई गईं।
रंग लाई पहल, एक भी मासूम की नहीं हुई मौत
इन युवकों की मेहनत का परिणाम यह हुआ कि आसपास के गांव के एक या दो बच्चे ही इस बीमारी से पीडि़त हुए। कई गांवों में एईएस से एक भी बच्चा पीडि़त नहीं हुआ। इलाके में उईएस से एक भी मासूम की मौत नहीं हुई।
एईएस से बच्चों की मौत ने कर दिया था बेचैन
अभियान में शामिल जमीन कमतौल गांव के एक युवक ने कहा कि मुजफ्फरपुर में एईएस से लगातार बच्चों की मौत के बाद भी कुछ नहीं हो पाने से वे बेचैन हो गए। किसी को दोषी ठहराने से बेहतर था खुद कुछ करना। गांव की 'ज्ञान ज्योति सोसायटी' से जुड़े युवकों ने यह बीड़ा उठाया। उन्होंने कुढऩी, चंद्रहट्टी, जगन्नाथपुर, कमतौल, बांकुल, देवगण, रजला, बाजितपुर, बलौर, मिश्रौलिया, मोहिनी व हरिनारायणपुर आदि गांवों में घर-घर जागरूकता अभियान चलाया। उन्हें इस बात की खुशी है कि छोटे प्रयास से ही सही मासूमों की जान तो बची।
यहां धूप में बाहर नहीं दिखे बच्चे, सड़कों पर पसरा सन्नाटा
युवकों की मेहनत को हमने भी परखा। एनएच-77 से सटे कई गांवों में दोपहर एक से तीन बजे तक घूमे। आम दिनों में बगीचे, सड़क व मैदान में खेलने वाले बच्चे नजर नहीं आए। वे घरों में दिखे। एक-दो जगह छांव में बच्चे पढ़ते भी मिले। चंद्रहट्टी सहनी टोला के लोगों ने कहा, 'बाबू ई बीमारी से बौउआ के बचावे के लेल बाहर नै निकलै दै छी। लयका सब परसू आके कहले रहथिन।' बच्चों को भूखे नहीं सोने देने की बात का भी असर है। भगीरथ देवी कहती हैं, 'लयका के बिना खिलइले ना सुते दै छी। गुड़ो (गुड़) रखै छी घरे।'
हां, यहां यह शिकायत जरूर मिली कि प्रशासन का ओआरएस पैकेट नहीं बंटा है। मगर, जागरूकता के दौरान युवकों ने यह भी बताया था कि चीनी व नमक का घोल बनाकर बच्चों को देना है।
अन्य इलाकों के लिए नजीर बनी इन युवकों की पहल
इन युवाओं का यह प्रयास एईएस प्रभावित अन्य इलाकों के लिए नजीर है। अगर सभी जगह ऐसे अभियान चलाए जाएं तो बीमारी पर काफी हद तक नियंत्रण संभव है। ऐसे अभियानों को प्रशासन से भी मदद मिलनी चाहिए।
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