झुलसे को 'जला' रही बर्न वार्ड की बदहाल व्यवस्था Muzaffarpur News

11-11 बेड की क्षमता है पुरुष और महिला पीडि़तों के लिए। चार बेड लगे हैं आइसीयू कक्ष में। यहां की व्यवस्था भी बदहाल। वार्डों में कुत्ते व बकरियां और परिसर में घूमते रहते हैं सूअर।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Fri, 12 Jul 2019 01:34 PM (IST) Updated:Fri, 12 Jul 2019 01:34 PM (IST)
झुलसे को 'जला' रही बर्न वार्ड की बदहाल व्यवस्था Muzaffarpur News
झुलसे को 'जला' रही बर्न वार्ड की बदहाल व्यवस्था Muzaffarpur News

मुजफ्फरपुर, [अरुण कुमार शाही]। वार्डों में दर्द और जलन से चीखते-कराहते और छटपटाते पीडि़त। वार्डों व परिसर में घूमते सूअर, कुत्ते और बकरियां। गंदगी का अंबार और डॉक्टरों की उपेक्षा। बारिश के बीच मच्छरों व मक्खियों का बढ़ता प्रकोप। यह है एसकेएमसीएच का बर्न विभाग। यहां की बदहाल व्यवस्था जले को और 'जला' रही। वार्ड में न सफाई है, न धुलाई है। पग-पग पर संक्रमण का खतरा है। सुरक्षा खुद के भरोसे, क्योंकि आने-जानेवाले भी बेरोक-टोक हैं।

   हर दूसरे-तीसरे दिन चोरी आम है। कभी मोबाइल गायब तो कभी पैसे। मनचले भी कम नहीं, अकेली महिला देख छेड़खानी भी कर लेते। पीने का साफ पानी तो पूरे अस्पताल में नहीं। इसलिए, यहां नहीं होना बड़ी बात नहीं। बोतलबंद पानी बेचने वालों की मनमानी है। वार्ड में भर्ती पीडि़तों और उनके परिजन की पीड़ा सुनने वाला कोई नहीं।

देखने तक नहीं आते चिकित्सक

यहां भर्ती पीडि़त सिर्फ व्यवस्था की उपेक्षा नहीं झेलते। चिकित्सक से लेकर अन्य कर्मी तक उन्हें पूछने नहीं आते। वार्ड में भर्ती संतोष जायसवाल, दया सिंह, मो. अफजल, गुड्डू भगत, संगीता देवी, सकीला खातून, राजकुमार बताते हैं कि अस्पताल का कोई कर्मी झाड़ू लगाने तक नहीं आता। दुर्गंध के कारण रहना मुश्किल है।

    दर्द या जलन बढऩे पर चिकित्सकों को खबर की जाती है, पर...। जैसे-तैसे इलाज हो रहा। यही लोग डॉक्टर हैं, यही हाकिम हैं, किससे शिकायत करें। हमें पता ही नहीं होता कि क्या इलाज हो रहा और जलने की स्थिति क्या है? कोई परामर्श या रिपोर्ट के बारे में बताए तब तो...।

खुद से झाड़ू लगाते परिजन

सफाईकर्मियों के नहीं आने के कारण परिजन वार्ड में खुद साफ-सफाई और झाड़ू लगाने को विवश हैं। कक्ष की धुलाई भी नहीं होती। छिड़काव तो दूर की बात है। शौचालय की स्थिति बदहाल है। वार्ड के लिए फिनाइल तक की व्यवस्था नजर नहीं आती। आग से जले पीडि़तों को मच्छर और मक्खी से बचाने के लिए मच्छरदानी आवश्यक है, लेकिन अस्पताल प्रबंधन शायद ही इसके प्रति सक्रिय नजर आता है। सक्षम लोग तो इसकी व्यवस्था कर लेते, लेकिन अधिकतर फटी-पुरानी साड़ी बांधकर काम चलाते हैं। बेडों पर अस्पताल की नहीं घर से लाई गई चादर नजर आती है। यह संक्रमण का सबसे बड़ा कारण होती है।

गोदाम की शक्ल में आइसीयू वार्ड

बर्न वार्ड में पुरुषों और महिलाओं के लिए 11-11 बेड की क्षमता है। इसके साथ कहने को बर्न वार्ड की आइसीयू भी है। इसकी क्षमता चार बेडों की है, लेकिन यह आइसीयू से ज्यादा गोदाम नजर आता है। वार्ड के सामने ही कचरे का अंबार है। यहां कुत्तों और सूअरों का आना-जाना लगा रहता है। ये कुत्ते कई बार नौनिहालों की जान ले चुके हैं।

यहां से आते पीडि़त

यहां जिले के अलावा सीतामढ़ी, शिवहर, पूर्वी एवं पश्चिमी चंपारण के साथ अन्य कई जगहों से पीडि़त इलाज के लिए आते हैं। हालांकि, यहां जलने का सिर्फ प्रारंभिक व जख्म भरने तक इलाज होता है। अगर, जलने से कोई अंग डैमेज है, उसकी सर्जरी करनी है तो उसके लिए पटना रेफर कर दिया जाता। इस बावत एसकेएमसीएच के अधीक्षक डॉ. सुनील कुमार शाही ने कहा कि बर्न वार्ड भवन के विस्तारीकरण के लिए कई बार सरकार से पत्राचार किया गया।

   इसके लिए नए भवन की जरूरत है। वर्तमान में बना बर्न वार्ड काम चलाऊ व्यवस्था के तहत है। हालांकि, इस वार्ड में भी सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं। सामान्य महिला एवं पुरुष मरीजों के लिए अलग-अलग वार्ड हैं। गंभीर मरीजों के लिए बर्न वार्ड में आइसीयू उपलब्ध है।

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