बागवानी से जोड़ा नाता, घर में खुशियों का तांता

मुजफ्फरपुर। श्रीरामपुर के किसानों ने परंपरागत खेती छोड़ बागवानी से नाता जोड़ा तो हरियाली के साथ खुशहा

By JagranEdited By: Publish:Sat, 23 Jun 2018 10:29 AM (IST) Updated:Sat, 23 Jun 2018 10:29 AM (IST)
बागवानी से जोड़ा नाता, घर में खुशियों का तांता
बागवानी से जोड़ा नाता, घर में खुशियों का तांता

मुजफ्फरपुर। श्रीरामपुर के किसानों ने परंपरागत खेती छोड़ बागवानी से नाता जोड़ा तो हरियाली के साथ खुशहाली भी घर आ गई। एक दशक में गांव का नजारा बदल गया है। फलदार और इमारती लकड़ी वाले पौधे लगाने का काम एक किसान ने शुरू किया। फायदा देख एक के बाद एक जुड़ते गए और अब तो इनकी संख्या बढ़कर 50 हो गई है।

सीतामढ़ी जिले के परिहार प्रखंड मुख्यालय से 11 किमी दूर श्रीरामपुर के किसान पहले धान और गेहूं सहित अन्य फसल उगाते थे। ¨सचाई सुविधा नहीं होने से वर्षा आधारित खेती होती थी। मौसम मेहरबान हुआ तो फसल अच्छी, नहीं तो पूंजी डूबी। साथ ही खेती के लिए मजदूर मिलने में भी परेशानी थी। हाईस्कूल के शिक्षक कृष्णदेव साह वर्ष 2008 में पूसा से सेवानिवृत्त होकर गांव पहुंचे। अपनी कई एकड़ जमीन में उन्होंने खेती की जगह आम, कटहल, लीची, अमरूद, पपीता, आंवला और बेल आदि के दर्जनों पौधे लगा दिए। कुछ ही वर्षो में फल आने पर फसल से अधिक आय होने लगी। साथ ही खेती की परेशानियों से भी मुक्ति मिल गई।

खेती के मुकाबले बेहद कम देखरेख की आवश्यकता : बागवानी में उनकी सफलता देख राजकिशोर साह ने भी अपनी एक एकड़ जमीन में फलदार और इमारती लकड़ी वाले पौधे लगाए। फिर तो एक-एक कर 50 से किसान खेती छोड़ बागवानी करने लगे हैं। आज स्थिति यह है कि यहां प्रतिवर्ष औसतन 10 से 15 एकड़ जमीन पर किसान पौधे लगा रहे हैं। यहां लगभग सभी घरों के आंगन में दो-चार फलदार वृक्ष जरूर हैं। राजकिशोर कहते हैं, बागवानी में पारंपरिक खेती के मुकाबले बेहद कम देखरेख की आवश्यकता होती है। इससे काफी समय बच जाता है। इसका लाभ यह मिलता है कि लोग बचे समय में कोई रोजगार या फिर दूसरे प्रदेशों में जाकर काम करते हैं।

गांव में सबसे अधिक आम के पेड़ : गांव में सबसे अधिक आम के पेड़ लगे हैं। इनकी संख्या 500 से अधिक है। इसके अलावा कटहल, लीची, अमरूद, पपीता, आंवला, बेल, सागवान, अर्जुन, महोगनी, बांस एवं सखुआ के सैकड़ों पेड़ हैं।

पर्यावरण संरक्षण में भी मिसाल : मुखिया नरेंद्र प्रसाद कहते हैं कि बागवानी के चलते पर्यावरण संरक्षण की दिशा में यह गांव मिसाल कायम कर रहा है। गांव में फल व लकड़ियों का सालाना व्यवसाय लगभग 50 लाख से अधिक का होता है। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है। आमदनी कई गुना बढ़ी है।

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उद्यान सह प्रभारी प्रखंड कृषि पदाधिकारी' संजय कुमार ने बताया कि 'श्रीरामपुर के लोगों का कार्य सराहनीय है। सरकार एक हेक्टेयर में आम के पौधे लगाने पर 50 हजार रुपये का अनुदान देती है। पौधों के रखरखाव की भी जानकारी दी जाती है।'

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