लोक जीवन ही रेणु की साहित्य की आत्मा: डॉ. जितेश

कटिहार। स्थानीय केबी झा कॉलेज के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर डॉ. जितेश कुमार ने कहा कि

By JagranEdited By: Publish:Wed, 03 Mar 2021 10:59 PM (IST) Updated:Wed, 03 Mar 2021 10:59 PM (IST)
लोक जीवन ही रेणु की साहित्य 
की आत्मा: डॉ. जितेश
लोक जीवन ही रेणु की साहित्य की आत्मा: डॉ. जितेश

कटिहार। स्थानीय केबी झा कॉलेज के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर डॉ. जितेश कुमार ने कहा कि कथाशिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु हमारी मिट्टी की सोंधी खुशबू हैं। यह वर्ष उनके जन्म का शताब्दी वर्ष है। अपनी पहचान,अपना परिवेश और संस्कार रेणु के साहित्य से आसानी से जाना जा सकता है। लोक जीवन उनके साहित्य की आत्मा रही है। उन्होंने पूरे पूर्णिया को अपने साहित्य में व्यापक रूप से दिखाया है। चार मार्च को जन्म शताब्दी वर्ष में पूरे साहित्य समाज की ²ष्टि इस क्षेत्र पर है। इसका कारण रेणु ही है। उन्होंने भारतीय समाज को आंचलिकता की एक नई ²ष्टि दी। बाद में यह यथार्थ को व्यंजित करने का सबसे सशक्त माध्यम बना। लोक समाज और लोक संस्कृति को उन्होंने एक नया रूप दिया। वे मसिजीवी होने के साथ-साथ असीजीवी भी थे, तभी तो क्रांति उनके साहित्य का सबसे बड़ा सच है। डॉ. कुमार ने कहा कि उन्होंने इस क्षेत्र के लोकगीत, लोकनृत्य, लोकभाषा, लोक-उत्सव, लोक त्योहार आदि को राष्ट्रीय पहचान का विषय बना दिया। उनकी पहचान कथा शिल्पी के रूप में है। फिल्म जगत भी उनकी कहानियों का ऋणी है। आज हमें गर्व है कि रेणु हमारा है और हम रेणु के हैं। उनका मैला आंचल आज मैला नहीं हैं। यह स्वच्छ और निर्मल हो चुका है। उनके साहित्य को नए सिरे से जानना पढ़ना और समझना ही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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