शोषण के खिलाफ लड़ाई में आनंद कौशल ने छोड़ी नौकरी

जमुई। नियोजित शिक्षकों के शोषण को लेकर सरकार के खिलाफ लड़ाई में जरूरत पड़ी तो शिक्षक नेता आनंद कौशल ने नौकरी छोड़ दी।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 14 Aug 2017 03:00 AM (IST) Updated:Mon, 14 Aug 2017 03:00 AM (IST)
शोषण के खिलाफ लड़ाई में आनंद कौशल ने छोड़ी नौकरी
शोषण के खिलाफ लड़ाई में आनंद कौशल ने छोड़ी नौकरी

जमुई। नियोजित शिक्षकों के शोषण को लेकर सरकार के खिलाफ लड़ाई में जरूरत पड़ी तो शिक्षक नेता आनंद कौशल ने नौकरी छोड़ दी। जरूरत पड़ी तो बच्चों के मानसिक शोषण के खिलाफ भी उठ खड़े हुए और मामले को हाईकोट ले जाकर सरकार को भी कटघरे में खड़ा करने का काम किया। शोषण के खिलाफ लड़ी गई लड़ाई का ही परिणाम है कि वे शिक्षकों के चहेते बन गए हैं। वर्ष 2003 में पंचायत शिक्षा मित्र के रूप में जब 50 रुपये प्रति दिन के हिसाब से उनका नियोजन हुआ था तभी से आनंद के मन में शिक्षामित्रों के शोषण का सवाल कौंधने लगा और चंद दिनों के बाद ही चिनगारी सुलग उठी। वहीं से उन्होंने प्रखंड स्तर पर शिक्षामित्रों को गोलबंद कर 2004 से गिद्धौर प्रखंड से सरकार के खिलाफ समान काम के लिए समान वेतन की मांग को लेकर आवाज बुलंद करनी शुरू की। शुरुआत में ही शिक्षामित्रों का अभूतपूर्व सहयोग उनके लिए संजीवनी से कम नहीं रहा। वर्ष 2005 में शिक्षामित्रों को एकजुट कर पटना की सरजमीन तक ले जाना और विराट आंदोलन में जमुई की अहम भागीदारी रही। उसी आंदोलन के दौरान शिक्षामित्रों को नियोजित शिक्षक का दर्जा, सेवा अवधि 60 साल के साथ मानदेय चार हजार रुपये प्रतिमाह किया गया। आंदोलन की सफलता से उत्साहित शिक्षक नेताओं ने विधिवत बिहार पंचायत नगर प्रारंभिक शिक्षक संघ का गठन किया। संगठन में जमुई का जिम्मा आनंद कौशल को दिया गया। जिलाध्यक्ष बनते ही आनंद ने समान काम के लिए समान वेतन देने व सरकारी स्कूल के बच्चों के लिए समान स्कूली शिक्षा प्रणाली लागू करने के मुद्दे को ले मुखर होकर जिले में आंदोलन को गति दी। आनंद की सांगठनिक एवं नेतृत्व क्षमता को देखते हुए वर्ष 2011 में संघ का प्रदेश सचिव का भार दिया गया। वर्ष 2012 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अधिकार यात्रा के दौरान भी विरोध कराने के बाद जिला प्रशासन द्वारा 111 शिक्षकों पर मुकदमा दर्ज किया गया जिसके खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी और बिना शर्त मुकदमा वापस लेने के लिए मजबूर किया। शोषण के खिलाफ लड़ाई यहीं नहीं थमी। वर्ष 2013 में एक मार्च से पांच मार्च तक पटना के आर ब्लॉक चौराहा पर अनशन किया। हालत बिगड़ने की सूचना पर प्रदेश भर के हजारों शिक्षक पटना पहुंच कौशल के साथ अनशन पर बैठ गए। उस लड़ाई का परिणाम यह हुआ कि शिक्षकों के वेतन में तीन हजार का इजाफा हुआ। संगठन का स्वरुप बड़ा होने के कारण कार्य का बोझ भी बढ़ना स्वभाविक था सो उन्होंने फरवरी 2014 में नौकरी से त्यागपत्र सरकार को सौंप दिया। 2014 का लोक सभा चुनाव भी उन्होंने जमुई से 350 किमी दूर बेतिया लोकसभा क्षेत्र से आम आदमी पार्टी के टिकट पर लड़ा। 2015 में 23 मार्च को 50 साथियों के साथ आमरण-अनशन पर जम गए। 15 दिन तक यह आंदोलन चला। इस आंदोलन में बिहार के 74 विद्यालयों में ताला बंद हड़ताल एक महीना से ज्यादा समय तक जारी रहा। इस आंदोलन में चार हजार शिक्षकों ने आनंद के नेतृत्व में समाहरणालय का घेराव कर गिरफ्तारी दी थी। वर्ष 2015 में ही समान काम के बदले समान वेतन की मांग को लेकर याचिका पटना हाईकोर्ट में दायर किया। कौशल ने शैक्षणिक सत्र 2017-18 में बिहार के सरकारी स्कूलों में नामांकित ढाई करोड़ बच्चों को पढ़ाई प्रारंभ होने के महीनों बाद भी किताब नहीं दिए जाने के सवाल पर सरकार को हाईकोर्ट के कठघड़े में खड़ा किया। उस केस की सुनवाई जारी है। विभागीय अधिकारियों द्वारा शिक्षकों के शोषण के खिलाफ जिला स्तर पर भी उन्होंने कई बार धरना-प्रदर्शन व अनशन कार्यक्रम का नेतृत्व कर यह संदेश देने में कारगर रहे हैं कि आनंद की लड़ाई शोषण के खिलाफ जारी रहेगी।

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