जयंती पर विशेष : समर्पण और निष्ठा के प्रतिमूर्ति थे कृष्णमूर्ति, ऐसा रहा RSS से BJP तक का सफर

के जन कृष्णमूर्ति का 1928 में जन्म हुआ था। 1940 में RSS से जुड़े। 2001 में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। वे 2002 में वे राज्यसभा के सदस्य व केंद्रीय कानून मंत्री बने।

By Dilip ShuklaEdited By: Publish:Sun, 24 May 2020 04:29 PM (IST) Updated:Sun, 24 May 2020 04:29 PM (IST)
जयंती पर विशेष : समर्पण और निष्ठा के प्रतिमूर्ति थे कृष्णमूर्ति, ऐसा रहा RSS से BJP तक का सफर
जयंती पर विशेष : समर्पण और निष्ठा के प्रतिमूर्ति थे कृष्णमूर्ति, ऐसा रहा RSS से BJP तक का सफर

भागलपुर [दिलीप कुमार शुक्ला]। 24 मई, 1928 को के जन कृष्‍णमूर्ति (K Jana Krishnamurthi) का जन्‍म हुआ था। वे राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े थे। आज उनकी जयंती पर राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ  के वरिष्‍ठ कार्यकर्ता सुधांशु पाठक ने उनकी यादों को कुछ इस तरह से साझा किया। सुधांशु पाठक से उनकी भेंट 1999 के दिसंबर माह में उनके मुंबई प्रवास के दौरान हुआ था। वे मृदुभाषी थे। उन्‍होंने कहा कि अपने स्वभाव से सबको अपनी ओर आकृष्ट कर लेते थे।

सुधांशु पाठक नेकहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा एक ऐसी अद्भुत तथा अनुपम कार्यशाला है, जिससे प्राप्त संस्कारों के कारण व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में रहे, वहीं अपने कार्य और व्यवहार की सुगंध छोड़ जाता है। 

24 मई, 1928 को मदुरै (तमिलनाडु) के एक अधिवक्ता परिवार में जन्मे श्री के. जन कृष्णमूर्ति ऐसे ही एक कार्यकर्ता थे, जिन्होंने राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के साधारण स्वयंसेवक से आगे बढ़ते हुए भारतीय जनता पार्टी जैसे विशाल राजनीतिक संगठन के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया।

उनकी प्राथमिक शिक्षा मदुरै में हुई। इसके बाद वे चेन्नई आ गये। वहां के विधि महाविद्यालय से उन्‍होंने कानून की पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई के बाद वे मदुरै में ही वकालत करने लगे। 1940 में मदुरै में संघ का कार्य प्रारंभ हुआ, तभी से वे प्रतिदिन संघ की शाखा जाने लगे। 1945 में उन्होंने संघ की सर्वोच्‍च तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त किया और फिर मदुरै में ही नगर प्रचारक बन गये। 1951 के बाद वे फिर वकालत करने लगे। इस दौरान उन पर संघ का प्रांत बौद्धिक प्रमुख का दायित्व भी रहा।

तब तक जनसंघ की स्थापना हो चुकी थी। लेकिन दक्षिण भारत में जनसंघ का अभी प्रभाव नहीं था। राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के तत्कालीन (द्वितीय) सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर 'गुरुजी' ने के जन कृष्‍णमूर्ति को जनसंघ में भेज दिया। यह 1965 की बात है। उन्हें तमिलनाडु का राज्य सचिव बनाया गया। दीनदयाल उपाध्‍यक्ष के देहांत के बाद अटल बिहारी बाजपेयी चिंतित हो उठे। उन्‍होंने पार्टी को मजबूत करने के लिए के जन कृष्‍णमूर्ति से वकालत छोड़ देने की अपील की। इसके बाद के जन कृष्‍णमूर्ति ने 1968 में वकालत छोड़ दी और भारतीय जनसंघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गये। उन्‍हें तमिलनाडु के संगठन महासचिव बनाया गया। 1975 में आपातकाल लगने पर उन्होंने तमिलनाडु में इस आन्दोलन की कमान संभाली।

1977 में जनता पार्टी का गठन होने के बाद उन्हें इसकी तमिलनाडु इकाई का महासचिव तथा राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया। 1980 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की स्थापना हुई। वे भाजपा के संस्‍थापक महासचिव बने। 1985 में उपाध्यक्ष बने। इस दौरान दक्षिण के चारों राज्यों तमिलनाडु, आंध्र, केरल और कर्नाटक में भाजपा को मजबूत और विस्तृत करने में उनकी बड़ी भूमिका रही। 1993 में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के अनुरोध पर वे दिल्ली आ गये। वहां उन्‍होंने भाजपा बौद्धिक प्रकोष्ठ, आर्थिक, सुरक्षा, विदेश मामलों आदि का काम संभाला।

1995 में के जना कृष्णमूर्ति भाजपा मुख्यालय के प्रभारी और दल के प्रवक्ता बने। स्वभाव से हंसमुख, वाणी से विनम्र और व्यक्तित्व से अत्यंत सरल के जना कृष्णमूर्ति कार्यकर्ताओं और दल के सहयोगियों में शीघ्र ही लोकप्रिय हो गये। उनके गहन अध्ययन और अनुभव के कारण छोटे-बड़े सभी नेता प्रायः उनसे विभिन्न विषयों पर परामर्श करते रहते थे। 

उनकी योग्यता देखते हुए 14 मार्च, 2001 को एकमत से उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना। कामराज के बाद तमिलनाडु से किसी राष्ट्रीय दल के अध्यक्ष बनने वाले वे दूसरे नेता थे। इस पद पर उन्होंने सवा साल काम किया। फिर उन्हें राज्यसभा में भेजा गया। सदन में विद्वत्तापूर्ण भाषण के कारण विरोधी सांसद भी उनका सम्मान करते थे। वाजपेयी के मंत्रिमंडल में वे एक वर्ष तक विधि विभाग के कैबिनेट मंत्री भी रहे।

के जन कृष्णमूर्ति समर्पण की साक्षात प्रतिमूर्ति थे। पहले संघ और फिर भाजपा में जो काम उन्हें सौंपा गया, उन्होंने उसे पूर्ण निष्ठा से निभाया। 25 सितम्बर, 2007 को चेन्नई के एक चिकित्सालय में उनका देहान्त हुआ। उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्‍न अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि उनके निधन से एक समर्पित, संस्कारित, कर्मठ, कुशल प्रशासक और संवेदनशील व्यक्तित्व हमारे बीच से उठ गया।

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