रोजगार और भक्ति : बासुकीनाथ में सावन भर बस जाता है सबौर का कुरपट गांव Bhagalpur News
कुरपट के लोगों को माला डंडाडोर खिलौना बनाने की कला विरासत में मिली है। महिलाएं सालों भर इसे तैयार करती हैं। सावन आते ही घर के पुरुष तैयार माल को लेकर बासुकीनाथ चले जाते हैं।
भागलपुर [ललन तिवारी]। तीन हजार की आबादी वाला सबौर का कुरपट गांव हर साल सावन शुरू होते ही पुरुष विहीन हो जाता है। इस दौरान गांव में केवल महिलाएं दिखाई देती हैं। दरअसल, यहां के सभी पुरुष माला, डंडाडोर, सिंदूर, भजन-कहानी की किताब, खिलौना सहित अन्य सामान को बेचने के लिए बासुकीनाथ चले जाते हैं। यह परंपरा पिछले सात दशकों से चली आ रही है।
एक महीने के लिए सभी बन जाते हैं व्यवसायी
कुरपट के लोगों को काला माला, डंडाडोर, खिलौना आदि बनाने की कला विरासत में मिली है। यहां की महिलाएं सालों भर इसे तैयार करती रहती हैं। सावन शुरू होते ही हर घर के पुरुष साल भर में तैयार माल को लेकर बासुकीनाथ चले जाते हैं और एक महीने तक वहीं रह कर उसे बेचते हैं। अगर गांव का कोई पुरुष मजदूरी करने के लिए प्रदेश गया हो तो वह भी सावन शुरू होते ही गांव लौट आता है। इस गांव के किसान भी खेती-बाड़ी छोड़ कर सावन में व्यवसायी बन जाते हैं।
व्यवसाय को आस्था से जोड़ कर देखते हैं यहां के लोग
करपट की वार्ड सदस्य खुशबू गोस्वामी, बिमला देवी, मंजू देवी, मौसमी देवी, नीलम देवी ने कहा हमलोग इसे केवल व्यवसाय के रूप में नहीं देखते हैं। बासुकीनाथ से हमारे गांव का जुड़ाव सत्तर साल से है। सावन में हमलोग घरेलू उत्पादों को सस्ते दामों पर बेचते हैं। इससे हमलोग शिव भक्तों की सेवा कर पुण्य अर्जित कर रहे हैं। इस दौरान प्रतिदिन सभी वहां भगवान शिव-पार्वती का पूजन भी करते हैं।
कुछ वर्षों में प्रभावित हुआ है कारोबार
हाल के कुछ वर्षों में करपट गांव की महिलाओं द्वारा तैयार सामान की मांग बासुकीनाथ में घट गई है। महिलाओं ने कहा कि घर में तैयार किए गए माल की लागत कीमत बाजर के माल से ज्यादा आता है। इससे हमारा कारोबार प्रभावित हुआ है। अब गांव के कुछ लोग सावन के दौरान इस व्यवसाय को छोड़कर बासुकीनाथ में ही चाय आदि की दुकान लगाने लगे हैं।
कर्ज की बोझ में दबे हैं यहां के लोग
करपट की महिलाओं ने कहा घर में तैयार किए गए माल से बाजार के माल की कम है। इस लिए अब कोलकता और वाराणसी के बाजार से कुछ सामान को खरीद कर बासुकीनाथ में हमलोग बेच रहे हैं। माल को खरीदने के लिए हमलोगों को महाजन से कर्ज लेना पड़ता है। माल बिकने पर आधे से अधिक कमाई कर्ज चुकाने में ही हर साल चली जाती है। बचे पैसे से हमलोगों को सालों भर गुजारा करना पड़ता है। इससे हमलोग सालों भर कर्ज के बोझ में दबे रहते हैं।
सबौर बीडीओ ममता प्रिया ने कहा कि कुरपट गांव के लोगों का जनूनी स्वरोजगार करने की ललक प्रेरणादायक है। सरकारी योजना से जोड़ते हुए बैंक से सहयोग कराने पर पहल की जाएगी।