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    Uttarakhand Tourism: नैनीताल आइये तो सुयालबाड़ी में लीजिए संस्कृति, सौंदर्य और एंगलिंग का रोमांच

    By Jagran NewsEdited By: Sanjay Pokhriyal
    Updated: Fri, 18 Nov 2022 05:43 PM (IST)

    Uttarakhand Tourism नैनीताल के डीएम धीराज गर्ब्याल ने बताया कि सुयालबाड़ी में धर्मशाला के पुनर्निर्माण का काम पूरा हो चुका है। इसे संग्रहालय के रूप में विकसित किया जाएगा। भवाली की धर्मशाला के सुंदरीकरण का कार्य भी अंतिम चरण चल रहा है।

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    Uttarakhand Tourism: विरासतों का संरक्षण कर पर्यटकों को आकर्षित करने की तैयारी में नैनीताल जिला प्रशासन

    नरेश कुमार,नैनीताल: यदि आप विश्व प्रसिद्ध पर्यटक नगरी नैनीताल या रामनगर स्थित कार्बेट नेशनल पार्क घूमने आ रहे हैं तो यह खबर आपके लिए है। नैनीताल जिले में एक नया टूरिस्ट डेस्टिनेशन सुयालबाड़ी आपका इंतजार कर रहा है। यहां आपको नेपाल व चीन सीमा से लगे पिथौरागढ़ जिले की दारमा घाटी के रं समाज की अनूठी संस्कृति व सभ्यता से रूबरू होने का मौका मिलेगा। भारत के तिब्बत के साथ सबसे पुराने व्यापारिक संबंधों की ऐतिहासिकता को भी आप दानवीर जसुली देवी की धर्मशाला के जरिये जान पाएंगे। भारत-तिब्बत व्यापार के समय व्यापारियों व यात्रियों के लिए एक पड़ाव के रूप में स्थापित किए गए इस स्थल को अब जिला प्रशासन पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर रहा है। इतना ही नहीं कोसी नदी की ठंडी हवाओं के बीच चाय-काफी की चुस्की लेते हुए आप प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले सकेंगे। नदी में एंगलिंग करना अलग ही रोमांच देगा।

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    पुरातन व्यापारिक संबंधों का प्रमाण है धर्मशाला

    भारत और तिब्बत के बीच व्यापारिक संबंध सदियों पुराने हैं। गढ़वाल के उत्तरकाशी तो कुमाऊं के सीमांत पिथौरागढ़ जिले से तिब्बत-भारत के बीच व्यापार होता था। सीमांत मुनस्यारी व धारचूला में निवास करने वाली जनजाति व्यापार करती थी। मगर 1962 के बाद से इस पर रोक लग गई। इससे पूर्व 19वी शताब्दी के पहले दशक में भोटिया जनजाति के रं समाज से ताल्लुक रखने वाली दानवीर जसुली देवी के प्रयासों से कई व्यापारिक पड़ावों पर धर्मशालाओं का निर्माण कराया गया। इसमें चंपावत, अल्मोड़ा और नैनीताल जिले में कई धर्मशाला आज भी हैं। नैनीताल जिले के सुयालबाड़ी में स्थित धर्मशाला इस व्यापारिक ऐतिहासिकता को प्रमाणित करती है।

    नैनीताल के समीपवर्ती सुयालबाड़ी में कैफे और एंगलिंग सेंटर स्थापित होने के बाद इस ड्राफ्ट की तरह नजर आएगा परिसर। सौ. डीएम

    व्यापारियों की स्वतंत्रता आंदोलन में रही थी भूमिका

    इतिहासकार प्रो. अजय रावत बताते हैं कि भारत-तिब्बत के बीच घनिष्ठ व्यापारिक संबंध थे। 1962 से पूर्व सीमांत का जनजातीय समाज न केवल व्यापार में आगे था बल्कि उनकी स्वतंत्रता आंदोलन में भी अहम भूमिका रही। सीमांत क्षेत्र से व्यापारी दिल्ली, पंजाब, लाहौर तक व्यापार के लिए जाते थे। ऐसे में स्वतंत्रता आंदोलन संबंधी कई सूचनाओं वह आदान-प्रदान करते थे। जिससे सीमांत क्षेत्र तक स्वतंत्रता आंदोलन की अलग जगाने में मदद मिली थी।

    कठिन डगर में सहारा थी धर्मशाला

    पिथौरागढ़ जिले की दारमा घाटी स्थित दांतू गांव निवासी जसुली देवी के पति भारत-तिब्बत व्यापार से जुड़े होने के कारण समृद्ध परिवार से थे। बताया जाता है कि पति और बेटे की मौत के बाद वह जीवन से निराश हो गईं। जिस कारण उनका संपत्ति के प्रति भी मोह नहीं रहा। तत्कालीन एक अंग्रेज अधिकारी ने जसुली देवी को अपनी संपत्ति समाजसेवा में लगाने की सलाह दी। इसके बाद ही जसुली देवी ने भारत-तिब्बत मार्ग में व्यापारियों और यात्रियों के लिए जगह-जगह धर्मशालाओं का निर्माण करवाया। तब पहाड़ में सड़क संपर्क सीमित होने से लंबे सफर पर निकलने वाले लोग इन्हीं में विश्राम करते थे।

    अनूठी संस्कृति की झलक

    जसुली देवी की सुयालबाड़ी स्थित खंडहर हो चुकी धर्मशाला को प्रशासन ने संरक्षित कर दोबारा जीवंत किया है। इसमें जसुली देवी और रं समाज की सांस्कृतिक स्मृतियों का संग्रहालय भी स्थापित किया गया है। रं समाज अपनी विशेष वेशभूषा, खानपान, त्योहारों और परंपराओं के संरक्षण के लिए आज भी समर्पित है। इस धर्मशाला का संग्रहालय पर्यटकों को सीमांत संस्कृति को जानने का मौका देगा।

    नैसर्गिक सौंदर्य और प्रकृति के बीच होने का अहसास

    सड़क किनारे स्थित यह धर्मशाला दोनों ओर पर्वतों से घिरी हुई है। मुख्य सड़क से ठीक नीचे कोसी नदी बहती है। हरे भरे जंगल और नीचे बहती नदी की कलकलाहट प्रकृति के बीच होने का अहसास कराती है।

    नदी में एंगलिंग करेगी रोमांचित

    साहसिक खेलों के लिए प्रसिद्ध उत्तराखंड में एंगलिंग की सुविधा बेहद कम है। सुयालबाड़ी में जल्द पर्यटक एंगलिंग का रोमांच भी उठा पाएंगे। पर्यटकों के लिए यहां धर्मशाला के समीप कैफे और हट का निर्माण हो रहा है। एंगलिंग के लिए कोसी नदी में क्षेत्र का निर्धारण किया गया है। जिसमे पर्यटक यहां एंगलिंग का शौक पूरा कर सकें।

    ऐसे पहुंचें सुयालबाड़ी

    दिल्ली से नैनीताल आने के लिए पंतनगर तक हवाई सेवा और काठगोदाम तक ट्रेन सुविधा उपलब्ध है। हल्द्वानी-अल्मोड़ा हाईवे पर स्थित सुयालबाड़ी की नैनीताल से दूरी करीब 45 किमी है। यहां सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। नैनीताल व समीपवर्ती पर्यटन स्थलों में ठहरे पर्यटक यहां के लिए एक दिन का टूर प्लान कर सकते है। इसके अलावा नैनीताल से अल्मोड़ा जाते हुए भी यहां रुका जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण यहां रात को ठहरने की व्यवस्था नहीं है लेकिन 14 किमी दूरी पर स्थित खैरना व गरमपानी में होटल आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इनका किराया भी आठ सौ से डेढ़ हजार रुपये के भीतर है।