Move to Jagran APP

परंपरा की चाशनी में लिपटा आधुनिक शहर है कोलकाता

हर तरफ हरसिंगार के फूलों की खुशबू का मतलब है आ गया दुर्गा पूजा का त्योहार। ऐसे में सिटी ऑफ जॉय कोलकाता से बेहतरीन घूमने के लिए कोई दूसरी जगह हो ही नहीं सकती। चलते हैं इसके सफर पर

By Priyanka SinghEdited By: Published: Fri, 12 Oct 2018 05:08 PM (IST)Updated: Sun, 14 Oct 2018 06:00 AM (IST)
परंपरा की चाशनी में लिपटा आधुनिक शहर है कोलकाता
परंपरा की चाशनी में लिपटा आधुनिक शहर है कोलकाता

कुमारटुली (कुम्हार टोली) की गलियों में तराशी जा रही हैं मां दुर्गा की प्रतिमाएं हर तरफ सजने लगी हैं। कुमारटुली कोलकाता का वह हिस्सा है जहां पूरे बंगाल से आकर कुम्हारों ने एक बस्ती बसा ली है। साल भर यहां पर मूर्तिकारों को माटी से मूर्ति में जान डालते हुए देखा जा सकता है लेकिन यदि आप दुर्गा पूजा से कुछ महीनों पहले यहां जाएं तो यहां की गलियां एकदम सजीव जान पड़ेंगी, जहां कोई छोटी तो कोई बड़ी मूर्ति बना रहा होता है। एक पूरी गली मां के श्रृंगार की वस्तुओं की दुकानों से सज जाती है। यहीं से लोग अपने-अपने पंडालों के लिए दुर्गा मां की एक से बढ़कर एक खूबसूरत मूर्तियां और साज-सज्जा के सामान लेकर जाते हैं। यदि आप इन दिनों कोलकाता के भ्रमण पर हैं तो आप पूरा एक दिन इस इलाके में गुजार सकते हैं।

loksabha election banner

उमंगों में डूबा शहर

कोलकाता के दो चेहरे हैं। एक, कोलकाता बंगाल की प्राचीन परंपराओं का वाहक तो दूसरा, कोलकाता अंग्रेजों की छाप या प्रभाव वाला। इसमें औपनिवेशिक जमाने की यादें देखने को मिलती हैं। एक कोलकाता में जहां प्राचीन मंदिर, मठ हैं तो दूसरी ओर आप देख सकते हैं विक्टोरिया मेमोरियल, हावड़ा ब्रिज जैसी आधुनिक संरचनाएं। सबसे अच्छी बात यह है कि इतने सारे विरोधाभासों के बीच भी यह शहर सच में सिटी ऑफ जॉय है। दरअसल, यहां पर खुशियां बहुत सारे पैसों की मोहताज नहीं हैं। आप चंद पैसों में भी कोलकाता का आनंद ले सकते हैं।

प्रिंसेप घाट में रात में नौका विहार का आनंद

विक्टोरिया मेमोरियल से थोड़ी दूरी पर है सफेद खंभों से सजी खूबसूरत संरचना प्रिंसेप घाट। इसका निर्माण एंग्लो-इंडियन स्कॉलर जेम्स प्रिंसेप की याद मेंसन् 1843 में हुगली नदी के किनारे करवाया गया था। यहां एक खूबसूरत गार्डन भी है। यदि आपको पारंपरिक तरीके से नौका विहार करनी है तो शाम के समय यहां आएं।यहां से रात में जगमगाता हुआ विवेकानंदन सेतु बहुत खूबसूरत नजऱ आता है।

अपनी तरह का अनूठा रवींद्र सेतु यानी हावड़ा ब्रिज

कोलकाता की पहचान हावड़ा ब्रिज दो शहरों कोलकाता और हावड़ा को जोडऩे के लिए आज से 75 साल पहले हुगली नदी पर बनाया गया था। सन् 1965 में इसका नाम बदल कर प्रसिद्ध कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर के नाम पर रवींद्र सेतु रखा गया। हालांकि आज भी लोग इसे हावड़ा ब्रिज कहना ही पसंद करते हैं। यह एक ऐसा ब्रिज है जिसमें कहीं भी नट बोल्ट नहीं लगाए गए हैं। यह दुनिया के सबसे लंबे 6 सस्पेंशन ब्रिजों में से एक है। इसका निर्माण 1942 में पूरा हुआ और फरवरी 1943 में लोगों के लिए खोला गया। यह ब्रिज 705 मीटर लंबा और 30 मीटर चौड़ा है। एक अनुमान के अनुसार इस विशाल ब्रिज से हर रोज 80 हजार से अधिक वाहन और 10 लाख पैदल यात्री गुजरते हैं। हावड़ा ब्रिज के नीचे ही एक दार्शनिक स्थल है मलिक घाट फ्लॉवर मार्केट। सुबह के समय इस मार्केट में काफी चहल-पहल देखने को मिलेगी। यहां भांति-भांति के फूल बिकते हैं। हावड़ा ब्रिज से इसका व्यू बहुत ही सुंदर नजर आता है।

ट्राम की सवारी

कोलकाता के ट्राम को एशिया के सबसे पुराना ट्रांसपोर्ट माना जाता है। इसकी शुरुआत 27 मार्च, 1902 में हुई थी। पहली ट्राम सियालदाह और आर्मीनियन घाट स्ट्रीट के बीच चली थी। यह वो जमाना था जब ट्राम को घोड़े खींचा करते थे। घोड़ों द्वारा खींचने वाली ट्राम को खासतौर पर लंदन से आयात किया गया था। इसका उद्घाटन लॉर्ड रिपन ने किया था। वक्त के साथ-साथ कोलकाता ट्राम को लोकोमोटिव इंजन मिला और तब से यह लगातार यहां की सड़कों पर दौड़ रही है। आज भले ही शहर ने टैक्सी और मेट्रो के साथ गति पकड़ ली हो लेकिन कोलकाता का ओल्ड व‌र्ल्ड चार्म इन ट्राम के जरिए बरकरार है।

कायनात काज़ी


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.