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आज चलते हैं एशिया का सबसे सुन्‍दर व स्वच्छ गांव की और

शहरों की भीड भाड से आपका मन उब गया हो और आपको एक सुन्‍दर, शांत और स्‍वच्‍छ जगह घुमने की तालाश हो तो हम आपको ले चलते हैं ऐसे ही एक अति सुन्‍दर, साफ गाांव की और। भारत गांवों का देश है। चलिए, गांव घुमने, हम ले चलते हैं आपको

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 07 Aug 2015 12:18 PM (IST)Updated: Fri, 07 Aug 2015 02:12 PM (IST)
आज चलते हैं एशिया का सबसे सुन्‍दर व स्वच्छ गांव की और
आज चलते हैं एशिया का सबसे सुन्‍दर व स्वच्छ गांव की और

शहरों की भीड भाड से आपका मन उब गया हो और आपको एक सुन्‍दर, शांत और स्‍वच्‍छ जगह घुमने की तालाश हो तो हम आपको ले चलते हैं ऐसे ही एक अति सुन्‍दर, साफ गाांव की और। भारत गांवों का देश है। चलिए, गांव घुमने, हम ले चलते हैं आपको एशिया का सबसे सुन्‍दर और स्वच्छ गांव की और।
जहां एक और सफाई के मामले में हमारे अधिकांश गांवो, कस्बों और शहरों की हालत बहुत खराब है वही यह एक सुखद आश्चर्य की बात है की एशिया का सबसे साफ़ सुथरा गांव भी हमारे देश भारत में है। यह है मेघालय का मावल्यान्नॉंग गांव जिसे की भगवान का अपना बगीचा (God's Own Garden) के नाम से भी जाना जाता है। सफाई के साथ साथ यह गांव शिक्षा में भी अवल्ल है। यहां की साक्षरता दर 100 फीसदी है, यानी यहां के सभी लोग पढ़े-लिखे हैं। इतना ही नहीं, इस गांव में ज्यादातर लोग सिर्फ अंग्रेजी में ही बात करते हैं।

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मावल्यान्नॉंग गांव

खासी हिल्स डिस्ट्रिक्ट का यह गांव मेघालय के शिलॉंन्ग और भारत-बांग्लादेश बॉर्डर से 90 किलोमीटर दूर है। साल 2014 की गणना के अनुसार, यहां 95 परिवार रहते हैं। यहां सुपारी की खेती आजीविका का मुख्य साधन है। यहां लोग घर से निकलने वाले कूड़े-कचरे को बांस से बने डस्टबिन में जमा करते हैं और उसे एक जगह इकट्ठा कर खेती के लिए खाद की तरह इस्तेमाल करते हैं। पुरे गांव में हर जगह कचरा डालने के लिए ऐसे बांस के डस्टबिन लगे है I

ग्रामवासी स्वयं करते है सफाई :

यह गांव 2003 में एशिया का सबसे साफ और 2005 में भारत का सबसे साफ गांव बना। इस गांव की सबसे बड़ी खासियत यह है की यहाँ की सारी सफाई ग्रामवासी स्वयं करते है, सफाई व्यवस्था के लिए वो किसी भी तरह प्रशासन पर आश्रित नहीं है। इस पुरे गांव में जगह जगह बांस के बने डस्टबिन लगे है। किसी भी ग्रामवासी को, वो चाहे महिला हो, पुरुष हो या बच्चे हो जहां गन्दगी नज़र आती है , सफाई पर लग जाते है फिर चाहे वो सुबह का वक़्त हो, दोपहर का या शाम का।

सफाई के प्रति जागरूकता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है की यदि सड़क पर चलते हुए किसी ग्रामवासी को कोई कचरा नज़र आता है तो वो रूककर पहले उसे उठाकर डस्टबिन में डालेगा फिर आगे जाएगा। और यही आदत इस गांव को शेष भारत से अलग करती है जहां हम हर बात के लिए प्रशासन पर निर्भर रहते है, खुद कुछ पहल नहीं करते है।

इस गांव के आस पास टूरिस्ट्स के लिए कई अमेंजिग स्पॉट हैं, जैसे वाटरफॉल, लिविंग रूट ब्रिज (पेड़ों की जड़ों से बने ब्रिज) और बैलेंसिंग रॉक्स भी हैं।

इसके अलावा जो एक और बहुत फेमस टूरिस्ट अट्रैक्शन है वो है 80 फ़ीट ऊंंची मचान पर बैठ कर शिलांग की प्राकृतिक खूबसूरती को निहारना। आप मावल्यान्नॉंग गांव घूमने का आनंद ले सकते पर आप यह ध्यान रखे की आप के द्वारा वहां की सुंदरता किसी तरह खराब न हो।

पेड़ो की जड़ो से बने प्राकर्तिक पूल जो समय के साथ साथ मजबूत होते जाते है। इस तरह के ब्रिज पुरे विश्‍व में केवल मेघालय में ही मिलते है। जिसे देखने पर आपकी फटी की फटी रह जाएगी । क्‍या इतनी खुबसूरती गांवो में भी हो सकती है।

गाँव में कई जगह आने वाले प्रयटकों की जलपान सुविधा के लिए ठेठ ग्रामीण परिवेश की टी स्टाल बनी हुई है जहाँ आप चाय का आनंद ले सकते है इसके अलावा एक रेस्टोरेंट भी है जहाँ आप भोजन कर सकते है। यानि गांव में शहर से भी ज्‍यादा सुख।

कैसे पहुंचे मावल्यान्नॉंग गांव :

मावल्यान्नॉंग गांव शिलांग से 90 किलोमीटर और चेरापूंजी से 92 किलोमीटर दूर स्थित है। दोनों ही जगह से सड़क के द्वारा आप यहां पहुंच सकते है। आप चाहे तो शिलांग तक देश के किसी भी हिस्से से हवाईजहाज के द्वारा भी पहुंच सकते है। लेकिन यहां जाते वक़्त एक बात ध्यान रखे की अपने साथ पोस्ट पेड़ मोबाइल ले के जाए क्योंकि अधिकतर पूर्वोत्तर राज्यों में प्रीपेड मोबाइल बंद है।


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