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एशिया के सबसे बड़े पशु मेले के लिए मशहूर है यह जगह, जिसे देखने देश-विदेश से आते हैं सैलानी

वैशाली के जिला मुख्यालय हाजीपुर से करीब 5 किलोमीटर में सजने वाले इस मेले में देश-विदेश के पर्यटकों की भीड़ जुटती है। 12 नवंबर से शुरु हुआ यह मेला 11 दिसंबर को खत्म होगा।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Thu, 21 Nov 2019 10:50 AM (IST)Updated: Thu, 21 Nov 2019 10:50 AM (IST)
एशिया के सबसे बड़े पशु मेले के लिए मशहूर है यह जगह, जिसे देखने देश-विदेश से आते हैं सैलानी
एशिया के सबसे बड़े पशु मेले के लिए मशहूर है यह जगह, जिसे देखने देश-विदेश से आते हैं सैलानी

एशिया में पशु व्यापार के लिए सबसे बड़े मेले के रूप में ख्यातिलब्ध सोनपुर मेले की शुरुआत इस साल कुछ दिन पहले ही यानी कार्तिक पूर्णिमा से हुई है। कार्तिक पूर्णिमा के स्नान के बाद लोग उत्सवधर्मिता को जीते हैं। वैशाली के जिला मुख्यालय हाजीपुर से करीब 5 किलोमीटर में सजने वाले इस मेले में देश के साथ-साथ विदेशी पर्यटकों का खूब जुटान होता है। बिहार में इस समय धान की कटाई होती है। किसान दूसरी फसल की तैयारी में होते हैं। यह मेला एक माह तक चलता है। इस साल यह 11 दिसंबर तक चलेगा। 

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मेले की ऐतिहासिकता: सोनपुर गंडक नदी के तट पर बसा है। हरिहर (विष्णु-शिव) के पूजन के नाम पर इस क्षेत्र का नाम हरिहर क्षेत्र पड़ा। पौराणिक मान्यता है कि वैष्णव (विष्णु को मानने वाले) और शैव (शिव को मानने वाले) संप्रदायों में संघर्ष होता रहता था। यहां हुए दोनों संप्रदायों के प्रतिनिधियों के सम्मेलन के बाद यह संघर्ष स्थगित हुआ। हरिहरनाथ की प्राणप्रतिष्ठा का आधार इन संघर्षों के अंत की स्मृति का द्योतक है।

हर तरफ है ख्याति: मेले की ख्याति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राज कपूर की चर्चित फिल्म 'तीसरी कसम' की कथाभूमि में भी इस मेले की छाया है। हिंदी की कौन कहे, कुछ साल पहले आई मलयालम की एक्शन थ्रिलर फिल्म 'थिरुवमबड़ी थम्बन' में दिखाया गया था कि नायक का परिवार केरल में हाथियों के व्यापार से जुड़ा हुआ है। फिल्म का क्लाइमेक्स दिखाता है कि नायक सोनपुर मेले से एक हाथी खरीद कर घर आ रहा है। हालांकि अब हाथियों की खरीद-बिक्री प्रतिबंधित कर दी गई है, लेकिन कहा जाता है कि आजादी से पहले करीब दो हजार हाथी हरिहरक्षेत्र के इस मेले में आते थे। तब अंग्रेज और राजा-महाराजाओं की सेना के लिए हाथियों की खरीद बड़ी संख्या में होती थी। देश में नई रेल लाइन तैयार करने के दौरान भारी सामानों को ढोने के लिए भी हाथियों की जरूरत पड़ती थी। व्यावसायिक और धार्मिक उद्देश्यों से भी हाथी खरीदे जाते थे।19वीं शताब्दी के शुरू होने के बहुत पहले यहां घोड़ों की रेस भी शुरू हो गई थी। 1803 में लॉर्ड क्लाइव ने हाजीपुर में घोड़ों का एक बड़ा अस्तबल भी बनवाया था। 

गुलाब बाई को मिली बड़ी पहचान: उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद में जन्मी-पली गुलाब बाई की नौटंकी यहां खूब जमती थी। गुलाब बाई का जन्म 1926 में हुआ था। नौटंकी में पहली महिला पात्र के रूप में वे समादृत हैं और पद्मश्री से अलंकृत भी। अपने उस्ताद त्रिमोहन लाल की अनिच्छा के बाद भी गुलाब बाई उर्फ गुबाजान ने अपनी थियेटर कंपनी खोली थी। सोनपुर मेले को उनकी नौटंकी का इंतजार रहता था। सोनपुर मेले में आज भी गुलाब बाई की याद में कोई न कोई थियेटर बसता है। सोनपुर की माटी पर लैला-मजनू, राजा हरिश्चंद्र आदि नाटकों में गुलाब बाई ने यादगार अभिनय किया था।

कैसे पहुंचें, कहां ठहरें?

वैशाली देश के प्रमुख शहरों से सड़क और रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है। ट्रेन से आने पर आपको हाजीपुर उतरना होगा, जो जिला मुख्यालय है। यहां से वैशाली 15 किमी. दूर है, यह दूरी आप ऑटो या निजी गाड़ी से आधे घंटे में तय कर सकते हैं। हवाई मार्ग से आने पर आपको पटना एयरपोर्ट उतरना होगा। यहां से एक से डेढ़ घंटे में गंगा पार कर आप वैशाली पहुंच जाएंगे। रहने के लिए वैशाली में राज्य सरकार की ओर से अतिथि गृह तो है ही। यहां के प्रसिद्ध मंगल पुष्करिणी तालाब के कोने पर पर्यटन विभाग का होटल भी है। बौद्ध् स्तूप के पास भी निजी होटल हैं।


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