शेखावाटी: राजस्थान का वह छिपा हुआ कोना, जहां इतिहास की दीवारों पर बोलती है सपनों की चित्रकारी!
शेखावटी में कदम रखते ही पर्यटक जैसे किसी दूसरी ही दुनिया में पहुंच जाते हैं। यहां की विशाल हवेलियां शानदार इमारतें और दीवारों पर बनी रंग-बिरंगी अद्भुत चित्रकारियां देखकर लोग हैरान रह जाते हैं। इन हवेलियों में बने अलग-अलग तरह के चित्र उस समय के कला के सफर को दर्शाते हैं। साथ ही ये चित्र मारवाड़ी व्यापारियों की ऊंची सोच और सपनों के बारे में भी बताते हैं।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। सजी-धजी राजपूत राजकुमारियां, अंग्रेजी शाही परिवार और श्रीकृष्ण; जो पंखों वाली मोटरकार में आकाश में उड़ान भरते हुए दिखाई देते हैं, ये कुछ अद्भुत चित्र हैं जो राजस्थान के उत्तरपूर्वी क्षेत्र-शेखावटी में स्थित हवेलियों की चित्रित दीवारों पर दिखते हैं। ये चित्र मात्र सजावट नहीं हैं। ये उस मिश्रित दृश्य शैली के प्रतीक हैं, जिसके जरिये प्रवासी मारवाड़ी व्यापारी, जिन्होंने इन्हें बनवाया था, उन्नीसवीं शताब्दी की शुरुआत में अपनी एक नई पहचान तैयार कर रहे थे।
इस अवधि में मारवाड़ी समुदाय औपनिवेशिक भारत में एक शक्तिशाली आर्थिक ताकत के रूप में उभरा था। बंबई (अब मुंबई) और कलकत्ता (अब कोलकाता) जैसे प्रमुख शहरों में प्रवास करके उन्होंने व्यापार, एजेंसी और महाजन के रूप में काम करके धन अर्जित किया। वे औपनिवेशिक भारत में नए पूंजीपति वर्ग के रूप में उभरे और उन्होंने अपने गृहनगरों में भव्य चित्रित हवेलियों का निर्माण करके अपने नव-अर्जित धन का प्रदर्शन किया। जो हवेलियां उन्होंने बनवाईं, वो ऐसा कैनवास बन गईं, जिस पर वे अपनी इच्छाएं और बेचैनियां, परंपरा के लिए आदर और नए दौर को अपनाने के जज्बे को बयां कर सकते थे।
सफलता के भव्य प्रतीक के रूप में, हवेलियों में वास्तुकला के तत्व शामिल थे जो क्षेत्र के स्थापित कुलीन वर्ग राजपूत शासकों की याद दिलाते थे। नक्काशीदार मेहराब, नालीदार स्तंभ और आंगन राजपूत किलों और महलों की भव्यता से मेल खाते थे। इस वास्तुकला के जरिए मारवाड़ी अपनी सामाजिक हैसियत का दावा पेश कर रहे थे। वहीं साथ ही उस इलाके की सांस्कृतिक विरासत और वहां के स्थापित ओहदेदारों की लिए आदर भी प्रदर्शित कर रहे थे।
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इन हवेलियों की आंतरिक और बाहरी दीवारें पारंपरिक और आधुनिक छवियों से सजी हुई थीं। मुगल लघु चित्रों से ली गई आकृतियां और दृश्य हिंदू धार्मिक प्रतीकों के साथ-साथ यूरोपीय चित्रों और फोटोग्राफों के साथ आपस में जुड़े हुए थे। रेलमार्ग के आगमन और छपी हुई चीजें, विशेष रूप से रंगीन लिथोग्राफ के प्रसार ने हवेली की दीवारों पर चित्रित दृश्य शब्दावली को विस्तृत किया।
औद्योगिक रूप से उत्पादित वस्तुओं और उन्नीसवीं सदी की आधुनिकता के संकेतक- जिनमें ट्रेन, मोटरकार, ग्रामोफोन, सिलाई मशीन और साइकिल शामिल थे, देवताओं और पौराणिक दृश्यों के चित्रण के साथ दिखने लगे। ये रंगी हुई हवेलियां उस व्यापारी वर्ग की दोहरी कोशिश का प्रतीक थीं, जो उन्हें बनाने के जरिए पहचान और वैधता हासिल करना चाहता था।
इन हवेलियों में स्थानीय कुलीन वर्ग द्वारा पसंद की जाने वाली राजपूत वास्तुकला की शैली के उपयोग ने व्यापारी वर्ग को शेखावटी में एक वैध मातृभूमि स्थापित करने में सहायता की। साथ ही, इन हवेलियों में ऐसी चीजों को दर्शाकर, जिनको ‘आधुनिकता’ की पहचान माना जाता था, व्यापारियों ने खुद को दुनिया देखे हुए, माहिर कारोबारियों के रूप में पेश करने की कोशिश की।
विद्वान ऐन हार्डग्रोव के अनुसार, विदेशी शासकों, ‘आधुनिक’ औद्योगिक वस्तुओं और हिंदू देवताओं के संयोजनात्मक चित्रण के माध्यम से, मारवाड़ी व्यापारियों ने अपनी शेखावटी वंशावली स्थापित की। इन व्यापारियों की औपनिवेशिक व्यापार, वाणिज्य और शक्ति के नेटवर्क में महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनने की आकांक्षा थी और उनकी हवेलियां ऐसी आकांक्षाओं के अनुकूल एक बहु-सांस्कृतिक दृष्टिकोण का संकेत देती हैं। यह हवेलियां केवल वास्तुकला का अद्भुत नमूना ही नहीं हैं; वे एक ऐसा स्थान हैं जहां परंपरा और आधुनिकता, धार्मिकता और सांसारिकता एक साथ रहते और बातचीत करते हैं।
- नियति दवे (एमएपी अकादमी से साभार)
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