आस्था का अनूठा संगम श्रीरेणुकाजी
श्रीरेणुकाजी की महत्ता भगवान परशुराम की जन्मस्थली होने की वजह से है। धार्मिक स्थल होने के बावजूद यहां सैलानियों का तांता लगा रहता है। तो और किन वजहों से ये जगह है खास, जानेंगे आज।
हिमाचल प्रदेश में सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र का पहला पड़ाव है श्रीरेणुकाजी। भगवान परशुराम की जन्मभूमि श्रीरेणुकाजी उत्तर भारत का प्रसिद्ध धार्मिक एवं पर्यटन स्थल है। श्रीरेणुकाजी झील हिमाचल प्रदेश की सबसे बड़ी प्राकृतिक झील है। यह झील लगभग तीन किमी. में फैली है। इसकी खासियत यह है कि झील का आकार किसी स्त्री जैसा है। इसे मां रेणुका जी की प्रतिछाया भी माना जाता है। कहा जाता है कि कई बार वैज्ञानिकों ने इस झील की गहराई को मापने की कोशिश की, मगर वे इस काम में सफल नहीं हो सके। यहां यह भी मान्यता है कि जब भी कोई व्यक्ति झील को तैरकर पार करने की कोशिश करता है, तो वह बीच में ही डूब जाता है। इसी झील के किनारे मां श्रीरेणुकाजी व भगवान परशुरामजी के भव्य मंदिर हैं। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा के लोगों की इसमें अटूट श्रद्धा है।
पुरानी देवठी में निवास करते हैं भगवान परशुराम: श्रीरेणुकाजी के विकास के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार ने साल 1984 में श्रीरेणुकाजी विकास बोर्ड की स्थापना की थी। यह विकास बोर्ड श्रीरेणुकाजी झील, मां श्रीरेणुकाजी मंदिर, भगवान परशुराम मंदिर,परशुराम तालाब व श्रीरेणुकाजी विकास बोर्ड के तहत आने वाले अन्य दर्शनीय स्थलों की देखभाल व उनके जीर्णोद्धार का कार्य करता है। भगवान परशुराम के मंदिर को पुरानी देवठी के नाम से पुकारा जाता है। कुछ साल पहले भगवान परशुराम के मंदिर का दक्षिण शैली में जीर्णोद्धार किया गया है। इसके मूल स्वरूप को नहीं छेड़ा गया है।
झील में लें बोटिंग का आनंद: श्रीरेणुकाजी आने वाले पर्यटकों के लिए श्रीरेणुकाजी विकास बोर्ड ने झील में बोटिंग की व्यवस्था की है। झील में बोटिंग करने के लिए एक व्यक्ति से आधे घंटे के 70 रुपये, 4 सीट वाली बोट के 250 रुपये और 6 सीट वाली बोट के 300 रुपये लिए जाते हैं। झील की परिक्रमा के लिए बैटरी से संचालित एक गाड़ी भी पर्यटकों के लिए अवेलेबल है।
यहां के पकवान का जवाब नहीं: श्रीरेणुकाजी सिरमौर जिले के गिरिपार क्षेत्र में आता है। इस क्षेत्र में हाटी समुदाय के लोग रहते हैं। यहां के लोगों का खानपान अभी भी पारंपरिक ही है। इस क्षेत्र में संक्राति, अमावस्या, पूर्णिमा और दूसरे उत्सवों पर पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं। इनमें गेहूं व चावल के आटे से बनने वाली असकलियां, पटांडे, पत्थर के तवे पर बनने वाले लुशके, सिडकू, मालपुड़े व खीर शामिल हैं।
झील परिक्रमा और चिडिय़ाघर: श्रीरेणुकाजी झील में स्नान के बाद पर्यटक झील की परिक्रमा करते हैं। झील की परिक्रमा करते हुए एक छोर पर हिमाचल वन्य प्राणी विभाग का मिनी जू है। इस जू में तेंदुआ, हिरण, कक्कड़, घोरल, सांभर, तेंदुआ बिल्ली व भालू सहित कई पशु-पक्षी मौजूद हैं।
ठहरने की चिंता नहीं: श्रीरेणुकाजी में पर्यटकों व श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए धर्मशालाएं, हिमाचल टूरिज्म के होटल, सराय, निजी होटल व सरकार के विश्रामगृह अवेलेबल हैं।
कैसे पहुंचें
रेल सेवा
श्रीरेणुकाजी पहुंचने वाले पर्यटकों के लिए नजदीक के रेलवे स्टेशन कालका, धर्मपुर, यमुनानगर, चंडीगढ़ व देहरादून है। चंडीगढ़ और देहरादून से श्रीरेणुकाजी की दूरी 125 किलोमीटर है। अंबाला से 95, पांवटा साहिब से 55, नाहन से 37 व कालका रेलवे स्टेशन से 140 किलोमीटर दूर है।
वायु सेवा
श्रीरेणुकाजी के सबसे नजदीक एयरपोर्ट देहरादून व चंडीगढ़ हैं।
सड़क सेवा
श्रीरेणुकाजी पहुंचने के लिए नाहन, पांवटा साहिब व अंबाला से सीधी बस सेवाएं हैं।
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