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Lord Jagannath Rath Yatra: जुलाई में सैर के लिए बेस्ट है पुरी, जहां आकर देखें मशहूर रथयात्रा की धूम

Lord Jagannath Rath Yatra रथयात्रा का यह उत्सव हर साल आषाढ़ महीने में शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को आयोजित किया जाता है। इस रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ को पुरी में नगर भ्रमण कराया जाता है। आइए जानते हैं इस उत्सव से जुड़ी कुछ खास बातें।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Mon, 12 Jul 2021 10:44 AM (IST)Updated: Mon, 12 Jul 2021 10:44 AM (IST)
Lord Jagannath Rath Yatra: जुलाई में सैर के लिए बेस्ट है पुरी, जहां आकर देखें मशहूर रथयात्रा की धूम
मंदिर के बाहर सजे हुए भगवान के रथ

भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा 12 जुलाई से शुरु हो रही है। ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा रथ में बैठकर जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर पहुंचते हैं। जहां उनकी मौसी का घर है। परंपरा के मुताबिक, तीनों यहां एक हफ्ते तक विश्राम करते हैं। रथयात्रा का यह जश्न हर साल आषाढ़ महीने में शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। जिस दौरान भगवान जगन्नाथ को पुरी घुमाया जाता है। रथयात्रा इसलिए ज्यादा मायने रखती है क्योंकि यूनेस्को द्वारा पुरी को वर्ल्ड हेरिटेज की लिस्ट में शामिल किया गया है।

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रथयात्रा के बारे में

सूर्योदय से पहले ही रथयात्रा की तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं। सबसे पहले भगवान को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। इसके बाद रथ प्रतिष्ठा और अन्य विधियां शुरू होती हैं। फिर सेवादार भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियों को रस्सियों के जरिए रथों तक लाते हैं। रथ को खींचने में इस्तेमाल होने वाली रस्सियां उन कपड़ों से बनी होती हैं जिन्हें भगवान को सालभर पहनाया जाता है। फिर तीनों रथों की पूजा और उनपर विराजमान प्रतिमाओं का श्रृंगार होता है। स्थानीय राजघराने के महाराज 'छोरा पोहरा' की रस्म अदायगी करते हैं। इसमें सोने के झाडू से रथों को बुहारा जाता है।

नीम और नारियल की लकड़ी से बनाए जाते हैं रथ

रथ बनाने के लिए जिन लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है उसका इतंजाम ओडिशा सरकार करती है। ओडिशा के दस्पल्ला जंगलों से लकड़ियां लाई जाती हैं। रथ बनाने में तकरीबन 4000 लकड़ी की जरूरत पड़ती है। लेकिन इसके चलते राज्य में लकड़ी, पेड़ों की संख्या कम न होने पाए इसके लिए 1999 ने पौधारोपण कार्यक्रम शुरू कर दिया था। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा के रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाते हैं। जिनका वजन अन्य लकड़ियों की अपेक्षा हल्का होता है और इसे खींचना भी आसान होता है। भगवान जगन्नाथ के रथ का रंग लाल और पीला होता है और ये दूसरे रथों की तुलना में बड़ा भी होता है। ये तीनों रथों में सबसे आखिरी में होता है।

7 दिन मौसी के घर विश्राम

फिर रथों की सीढ़ियों को खोला जाता है व भगवान बलभद्र के रथ से काले, बहन सुभद्रा के रथ से भूरे और भगवान जगन्नाथ के रथ से सफेद घोड़े जोड़े जाते हैं। सबसे आगे भगवान बलभद्र का रथ, बीच में बहन सुभद्रा और पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ होता है। सूरज डूबने से पहले तीनों रथ गुंडिचा मंदिर यानी मौसी बाड़ी पहुंचते हैं। भगवान यहां 7 दिन तक रहते हैं। देवशयनी एकादशी को घुरती यात्रा होती है।

भगवान जगन्नाथ का रथ

- इनके रथ को गरुड़ध्वज, कपिध्वज और नंदीघोष भी कहते हैं। ये 16 पहियों का और तकरीबन 13 मीटर ऊंचा होता है।

- इसमें सफेद घोड़े होते हैं। जिनके नाम शंख, श्वेत और हरिदाश्व हैं। रथ के सारथी का नाम दारुक है।

- रथ पर हनुमानजी, नरसिंह की प्रतीक मूर्ति सुदर्शन स्तंभ भी होता है। इसकी रक्षा करने वाले गरुड़ हैं।

- रथ के झंडे को त्रिलोक्यवाहिनी और रस्सी को शंखचूड़ कहते हैं। इसे सजाने में लगभग 1100 मीटर कपड़ा लगता है।

बलभद्र का रथ

- इनके रथ का नाम तालध्वज है। जिस पर भगवान शिव की प्रतीक मूर्ति होती है।

- इस रथ की सुरक्षा करने वालों में वासुदेव और सारथी मातलि होते हैं। रथ के झंडे को उनानी कहते हैं।

- इसके घोड़ों का नाम त्रिब्रा, घोरा, दीर्घशर्मा और स्वर्णनावा है। ये सभी नीले रंग के होते हैं।

- ये रथ लगभग 13.2 मीटर ऊंचा और 14 पहियों वाला होता है जोकि लाल, हरे रंग के कपड़े और लकड़ी के 763 टुकड़ों से बना होता है।

सुभद्रा का रथ

- इनके रथ का नाम देवदलन है। रथ पर देवी दुर्गा की प्रतीक मूर्ति भी बनाई जाती है।

- इसकी रक्षक जयदुर्गा और सारथी अर्जुन हैं। रथ के झंडे का नाम नंदबिक होता है।

- इसमें रोचिक, मोचिक, जीता और अपराजिता नाम के घोड़े होते हैं। घोड़ों का रंग हल्का भूरा होता है। इसे खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचूड़ा कहते हैं।

- रथ 12.9 मीटर ऊंचा, 12 पहियों वाला व लकड़ी के 593 टुकड़ों का बना होता है।

Pic credit- PTI


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