Parshuram Jayanti 2020: भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाने वाले परशुराम की प्रमुख तपस्थलियां
भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाने वाले परशुराम जी को साहस का देवता माना जाता है। परशुराम के जन्म दिवस दिवस पर उनकी प्रमुख तपस्थलियों के बारे में जानिए...
भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाने वाले परशुराम जी को साहस का देवता माना जाता है। इन्हें ब्राह्मणों के कुल गुरू के तौर पर पूजा जाता है। इनका वास्तविक नाम राम था लेकिन हाथ में परशु धारण करने से इन्हें परशुराम कहा गया। तप और त्याग के ऐसे पर्याय कल, आज और कल हमेशा प्रासंगिक हैं। परशुराम के जन्म दिवस दिवस पर उनकी प्रमुख तपस्थलियों के बारे में जानिए...
जबलपुर में है विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा
संस्कारधानी के नाम से प्रसिद्ध जबलपुर में भगवान परशुराम की विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा है जिसे गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी जगह दी गई है। 31 फीट की प्रतिमा और 15 फीट का फरसा है। मुख्य रेलवे स्टेशन से 15 किमी दूर आयुध निर्माण खमरिया के पास स्थित मटामर धाम प्राकृतिक वातावरण से भरपूर है। यहां परशुराम पर्वत के साथ ही कुंड है। हालांकि इस स्थल का कोई शास्त्रोक्त प्रमाण नहीं है। मां की हत्या के बाद भगवान परशुराम ने नर्मदा तट होने के कारण यहां तप और पश्चाताप किया, ऐसी मान्यता है। लोगों के मुताबिक गुफा के अंदर अंकित चरणचिन्ह प्रमाणित करते हैं कि भगवान परशुराम लंबे समय तक इस स्थल पर तपस्यारत थे। एक साथ इतने अंश हैं तो कभी न कभी यहां भगवान परशुराम जरूर थे।
जनकपुर से लौटते समय सोहनाग जंगल में किया था तप
पुर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद में सलेमपुर तहसील के निकट सोहनाग में परशुराम धाम है। इसका जिक्र भी भगवान परशुराम की तपस्थली के तौर पर व्याप्त है। माना जाता है कि त्रेतायुग में जब जनकपुर में भगवान रामचंद्र जी ने धनुष तोड़ा तो ऋषि परशुराम वायु मार्ग से जनकपुर पहुंच गए। जनकपुर में लक्ष्मण-परशुराम के बीच संवाद हुआ। उसके बाद जनकपुर से लौटते समय रास्ते में जंगल व प्राकृतिक छटा देख वो आकर्षित हुए और रात्रि विश्राम के लिए सोहनाग में रुक गए। यहां उन्होंने काफी समय बिताया, रूककर ध्यान और तप किया। यहां भगवान परशुराम के मंदिर के बगल में 10 एकड़ भूमि में सरोवर है।
महर्षि परशुराम ने स्थापित किया था कैलाश मंदिर
आगरा से मथुरा रोड पर करीब सात किलोमीटर दूर रुनकता के पास रेणुका धाम है, जो महर्षि परशुराम की मां रेणुका के नाम पर है। इतिहासविद राजकिशोर राजकिशोर राज के मुताबिक आज से करीब 10,500 साल पहले भगवान परशुराम और उनके पिता जमदग्नि कैलाश मंदिर पर पूजा करने जाते थे। तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने वरदान मांगने को कहा, तो परशुराम ने कहा कि वे उनके साथ रेणुका धाम चलें। क्योंकि मां का स्वास्थ्य सही नहीं रहता है। अगर आप स्वयं हमारे साथ चलेंगे, तो मां भी आपकी अराधना कर सकेंगी। इस पर भगवान शिव ने कहा वे तो वनवासी हैं इसलिए कैलाश पर्वत छोड़कर कहीं नहीं जा सकते हैं। लेकिन इस पर्वत के कण-कण में विराजमान हूं, आप जिस भी कण को ले जाएंगे, उसमें में विराजमान रहूंगा। इस पर भगवान परशुराम और उनके पिता जमदग्नि ऋषि दो शिवलिंग लेकर चल दिए। रास्ते में संध्या वंदन के समय यमुना किनारे शिवलिंग को रख दिया। पूजन के बाद जब इन शिवलिंग को रख दिया, तो शिवलिंग नहीं हिले। तभी आकाशवाणी हुई कि मैं अचलेश्वर हूं, तो वहीं रहता हूं। रूनकता (पूर्व नाम रेणुकूट) पर भगवान विष्णु के महर्षि परशुराम की माता रेणुका और ऋषि जमदग्नि का आश्रम था।
जलालाबाद में परशुरामपुरी
जलालाबाद में मुहल्ला खेडा में करीब 35 फुट की ऊंचाई पर भगवान परशुराम का प्राचीन मंदिर है, जिसके मुख्य गर्भगृह में भगवान परशुराम की मूर्ति स्थापित है। बताया जाता है कि प्राचीन काल में इस टीले की खोदाई हुई थी, जिसमें भगवान परशुराम की प्रतिमा व उनका फरसा निकला था। मंदिर के पास रामताल है जिसे भगवान परशुराम का बनवाया हुआ बताया जाता है। यहां से करीब ढाई किमी दूर उनके पिता जमदग्नि ऋषि के नाम से आश्रम व मां रेणुका के नाम से मंदिर है। यहां पर रेणुका ताल भी है। इस क्षेत्र को परशुरामपुरी कहा जाता है। शाहजहां रोड पर उबरिया गांव के मंदिर और भगवान परशुराम ने अपने माता पिता का रामगंगा में पिंडदान किया था।
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