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जोधपुर का ऐसा ट्रेडिशनल खाना जिसका स्वाद नहीं मिलेगा कहीं, जानें क्या है स्पेशल

बाजरे की खिचड़ी को 'खीच' कहा जाता है। देसी घी के साथ गरमागरम खीच बड़ी स्वादिष्ट लगती है। एक ओर जहां शाही परिवार का खाना नफासत भरा हुआ है, वहीं ग्रामीण अंचल के खानों में देसी चीजें देखने को मिलती हैं।

By Pratima JaiswalEdited By: Published: Fri, 20 Jul 2018 01:11 PM (IST)Updated: Fri, 20 Jul 2018 03:03 PM (IST)
जोधपुर का ऐसा ट्रेडिशनल खाना जिसका स्वाद नहीं मिलेगा कहीं, जानें क्या है स्पेशल
जोधपुर का ऐसा ट्रेडिशनल खाना जिसका स्वाद नहीं मिलेगा कहीं, जानें क्या है स्पेशल

जोधपुर के राजपूती खानों में कई अनोखे स्वाद पाए जाते हैं। फोर्ट पछेवर गढ़ की राजकुमारी मधुलिका सिंह बताती हैं, 'अगर आप अगर जोधपुर के शाही खानों की बात करेंगे तो यहां वेज और नॉन-वेज दोनों ही प्रकार के खानों की एक बड़ी रेंज मिलती है। आज भी आपको जोधपुर में ये स्वाद चखने को मिल जाएंगे। जैसे, चक्की की सब्जी, सांगरी के गट्टे। अगर आप मांसाहार पसंद करते हैं तो एक बार जंगली मांस जरूर ट्राई कीजिये। यहां नाश्तों की भी कोई कमी नहीं है, जैसे प्याज की कचौरी, मिर्चीबड़ा और मावा की कचौरी बहुत मशहूर है। लोग मीठा भी छककर खाते हैं। मूंग की दाल का हलवा और रबड़ी यहां की प्रसिद्ध मिठाइयां हैं। यहां के ग्रामीण जीवन में बाजरे का प्रयोग बहुतायत में देखने को मिलता है। फिर चाहे वो चूल्हे पर हाथ से पानी लगा कर बनी बाजरे की रोटी हो या फिर बाजरे की खिचड़ी। बाजरे की खिचड़ी को 'खीच' कहा जाता है। देसी घी के साथ गरमागरम खीच बड़ी स्वादिष्ट लगती है। एक ओर जहां शाही परिवार का खाना नफासत भरा हुआ है, वहीं ग्रामीण अंचल के खानों में देसी चीजें देखने को मिलती हैं।

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खेजड़ी है जीवनदायिनी

खेजड़ी का पेड़ यहां के मरुस्थली जीवन के लिए जीवनदायनी है। कहते हैं कि अगर किसी की कुटिया के आंगन में एक खेजड़ी का पेड़ है तो वह पूरा अकाल निकाल सकता है। खेजड़ी की जड़ें जमीन में बहुत गहरे जाती हैं और सूखे में भी हरी-भरी रहती हैं। उसकी पत्तियां खाकर बकरी पलती रहेगी और बकरी का दूध पीकर घर के बच्चों का गुज़ारा हो जाएगा। राजस्थान की मशहूर सब्जी खेर सांगरी में फलियां इसी पेड़ से आती हैं। खेर सांगरी यहां के खास खानों में गिना जाता है। अगर आप बिश्नोई विलेज की सफ़ारी के लिए जा रहे हैं तो गांव मे किसी बिश्नोई परिवार के घर चूल्हे पर बनी हाथ की बाजरे की रोटी और खेर सांगरी की सब्जी जरूर खाएं।

मंडोर : मारवाड़ की पुरानी राजधानी

वषरें से जोधपुर राजपूताना वैभव का केंद्र रहा है, जिसके प्रमाण आज भी जोधपुर शहर से लगे अनेक स्थानों पर प्राचीन इमारतों के रूप में देखने को मिल जाते हैं। जोधपुर से 9 किलोमीटर की दूरी पर एक ऐतिहासिक स्थान है जिसको मंडोर गार्डन के नाम से पुकारा जाता है। इसी के नाम पर एक ट्रेन का नाम भी रखा गया है। यह है मंडोर एक्सप्रेस जो कि दिल्ली से जोधपुर के लिए चलती है। मंडोर का प्राचीन नाम च्माण्डवपुरच् था। जोधपुर से पहले मंडोर ही जोधपुर रियासत की राजधानी हुआ करता था। राव जोधा ने मंडोर को असुरक्षित मानकर सुरक्षा के लिहाज से चिडिय़ाकूट पर्वत पर मेहरानगढ़ किले का निर्माण कर अपने नाम से जोधपुर को बसाया था तथा इसे मारवाड़ की राजधानी बनाया। वर्तमान में मंडोर दुर्ग के भग्नावशेष ही बाकी हैं, जो बौद्ध स्थापत्य शैली के आधार पर बने हैं। इस दुर्ग में बड़े-बड़े प्रस्तरों को बिना किसी मसाले की सहायता से जोड़ा गया था।

जोधपुर के आसपास ही कई देखने लायक ऐतिहासिक स्थल हैं जिसमें मंडोर अपनी स्थापत्य कला के कारण काफी मशहूर है। ऐसा कहा जाता है कि मंडोर परिहार राजाओं का गढ़ था। सैकड़ों सालों तक यहां से परिहार राजाओं ने संपूर्ण मारवाड़ पर अपना राज किया। चुंडाजी राठौर की शादी परिहार राजकुमारी से होने पर मंडोर उन्हें दहेज में मिला। तब से परिहार राजाओं की इस प्राचीन राजधानी पर राठौर शासकों का राज हो गया। मंडोर मारवाड की पुरानी राजधानी रही है। यहां के स्थानीय लोग यह भी मानते हैं कि मंडोर रावण की ससुराल था। शायद रावण की पटरानी का नाम मंदोदरी होने के कारण ही इस जगह का नाम मंडोर पड़ा। यह बात यहां एक दंतकथा की तरह प्रचलित है, हालांकि इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं है। यहीं मंडोर गार्डन है, जो जोधपुर शहर से पांच मील दूर उत्तर दिशा में पथरीली चट्टानों पर थोड़े ऊंचे स्थान पर बना है। यह एक विशाल उद्यान है, जिसे सुंदरता प्रदान करने के लिए कृत्रिम नहरों से सजाया गया है।

 

ओसिया : थार का द्वार

ओसिया जोधपुर से 69 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। यहीं से सैंड ड्यून्स यानी रेत के मैदान शुरू होते हैं। यह स्थान धार्मिक द्रष्टि से बड़े ही महत्व का है। यहां जैन संप्रदाय के मंदिरों का समूह है ।

ओसिया को थार रेगिस्तान का द्वार कहा जाता है। ओसिया में ओसवाल समाज की कुलदेवी ओसिया माता का मंदिर है, जो अपनी स्थापत्य कला के कारण 'राजस्थान का खजुराहो' भी कहा जाता है। यह जगह मसालों के लिए भी प्रसिद्ध है। हर वर्ष यहां मारवाड़ फेस्टिवल का समापन समारोह रेत के मैदान में यहां के लोक गायकों की शानदार प्रस्तुति के साथ होता है।

 कैसे और कब?

जोधपुर शहर का अपना हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन है जो प्रमुख भारतीय शहरों से अच्छी तरह से जुड़े हैं। नई दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा निकटतम अंतरराष्ट्रीय एयरबेस है। जोधपुर आने का अच्छा समय अक्टूबर से मार्च माना जाता है।

लेखन  : डॉ. कायनात काजी


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