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    श्रीमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग के दर्शन से पूरी हैं सात्विक मनोकामनाएं

    By Edited By:
    Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)

    दक्षिण भारत में कैलाश के नाम से मशहूर आंध्र प्रदेश का श्रीमल्लिकार्जुन मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिगों में से एक है। यह ज्योतिर्लिग कृष्णा नदी के तट पर श्रीसैलम नाम के पर्वत पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शन करने से सात्विक मनोकामनाएं पूरी होती हैं। श्रीमल्लिकार्जुन का पौराणिक महत्व एक बार भगवान शिव और पार्व

    श्रीमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग के दर्शन से पूरी हैं सात्विक मनोकामनाएं

    दक्षिण भारत में कैलाश के नाम से मशहूर आंध्र प्रदेश का श्रीमल्लिकार्जुन मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिगों में से एक है। यह ज्योतिर्लिग कृष्णा नदी के तट पर श्रीसैलम नाम के पर्वत पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शन करने से सात्विक मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

    श्रीमल्लिकार्जुन का पौराणिक महत्व
    एक बार भगवान शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय स्वामी और गणेश अपने विवाह के लिए आपस में कलह करने लगे। कार्तिकेय का मानना था कि वे बड़े हैं, इसलिए उनका विवाह पहले होना चाहिए, किन्तु श्री गणेश अपना विवाह पहले कराने को लेकर जिद्द पर अड़े थे। जब दोनों के झगड़े की वजह पिता महादेव और माता पार्वती को पता लगी तो उन्होंने इस झगड़े को खत्म करने के लिए कार्तिकेय और गणेश के सामने एक प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि तुम दोनों में जो कोई भी पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले यहां आ जाएगा, उसी का विवाह पहले होगा। शर्त सुनते ही कार्तिकेय जी पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए दौड़ पड़े लेकिन गणेशजी के लिए तो यह कार्य बड़ा ही कठिन था।
    गणेश जी शरीर से स्थूल किन्तु बुद्धि के सागर थे। उन्होंने एक उपाय सोचा और अपनी माता पार्वती तथा पिता देवाधिदेव महेश्वर से एक आसन पर बैठने का आग्रह किया। गणेश ने उनकी सात परिक्रमा की। इस तरह से वह पृथ्वी की परिक्रमा से प्राप्त होने वाले फल की प्राप्ति के अधिकारी बन गए। उनकी चतुर बुद्धि को देख कर शिव और पार्वती दोनों काफी खुश हुए और उन्होंने श्रीगणेश का विवाह कार्तिकेय से पहले करा दिया। जब तक स्वामी कार्तिकेय सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस आए, उस समय तक श्रीगणेश जी का विवाह विश्वरूप प्रजापति की पुत्रियों सिद्धि और बुद्धि के साथ हो चुका था, जिनसे उन्हें 'क्षेम' तथा 'लाभ' नामक दो पुत्र भी प्राप्त हो चुके थे।
    यह सब देखकर स्वामी कार्तिकेय नाराज हो गए और क्रौंच पर्वत की ओर चले गए। उन्हें मनाने के लिए देवर्षि नारद को भेजा गया लेकिन वह नहीं माने। कार्तिकेय के चले जाने पर माता पार्वती भी क्रौंच पर्वत पहुंचीं। उधर भगवान शिव भी ज्योतिर्लिग के रूप में वहां प्रकट हुए। तभी से वह मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग के नाम से विख्यात हुए। मल्लिका माता पार्वती का नाम है, जबकि अर्जुन भगवान शंकर को कहा जाता है। इस कथा के अलावा और भी कई कथाएं हैं जो 'मल्लिकार्जुन' ज्योतिर्लिग के बारे में कही जाती हैं।

    कैसे पहुंचे
    मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग आंध्र प्रदेश के श्रीसैलम में मौजूद है। आप सड़क, रेल और हवाई यात्रा के जरिए इस ज्योतिर्लिग के दर्शन कर सकते हैं। सड़क के जरिए श्रीसैलम पूरी तरह से जुड़ा हुआ है। विजयवाड़ा, तिरुपति, अनंतपुर, हैदराबाद और महबूबनगर से नियमित रूप से श्रीसैलम के लिए सरकारी और निजी बसें चलाई जाती हैं। श्रीसैलम से 137 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैदराबाद का राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। यहां से आप बस या फिर टैक्सी के जरिए मल्लिकार्जुन पहुंच सकते हैं। यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन मर्कापुर रोड है जो श्रीसैलम से 62 किलोमीटर की दूरी पर है।

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