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जैसलमेर: मरुभूमि का सुनहरा संसार

राजस्थान में थार मरूस्थल के मध्य स्थित जैसलमेर की रंग बिरंगी संस्कृति व धरोहरें इसके भव्य व वैभवशाली अतीत की साक्षी है। इसकी स्थापना 1156 ई में राजपूत रावल जैसवाल ने की और उसी के नाम पर इस स्थान को नाम मिला। नक्काशीदार हवेलियां, सोनार किले के नाम से प्रसिद्ध जैसलमेर दुर्ग, ठप्पे की छपाई वाले वस्त्र, खूबसूरत जैन मंदिर, रेत के ट

By Edited By: Published: Thu, 20 Feb 2014 02:34 PM (IST)Updated: Thu, 20 Feb 2014 02:34 PM (IST)
जैसलमेर: मरुभूमि का सुनहरा संसार
जैसलमेर: मरुभूमि का सुनहरा संसार

राजस्थान में थार मरुस्थल के मध्य स्थित जैसलमेर की रंग बिरंगी संस्कृति व धरोहरें इसके भव्य व वैभवशाली अतीत की साक्षी है। इसकी स्थापना 1156 ई में राजपूत रावल जैसवाल ने की और उसी के नाम पर इस स्थान को नाम मिला। नक्काशीदार हवेलियां, सोनार किले के नाम से प्रसिद्ध जैसलमेर दुर्ग, ठप्पे की छपाई वाले वस्त्र, खूबसूरत जैन मंदिर, रेत के टीलों का सुनहरा परिवेश और आसपास स्थित झिलमिल करती झील जैसलमेर आने वाले इनके मोह में बंध कर रह जाते हैं। फरवरी में आयोजित होने वाला मरु समारोह भी आकर्षण का केंद्र है।

दर्शनीय स्थल

जैसरमेर दुर्ग या सोनार किला-
यह दुर्ग विशालतम दुर्गो में से एक मना जाता है। इस भव्य किले में प्रवेश के लिए चार प्रवेश द्वार बने हैं जो चारों दाशाओं में है। इसमें राजमहल, जैन मंदिर, लक्ष्मीनरायण की मंदिर व हवेलियां भी है जो समृद्ध व्यापारियों द्वारा सैकड़ों वर्षो पूर्व बनाई गई थी। इस दुर्ग का प्रमुख प्रवेश द्वार गणेशपोल कहलाता है। सूरजपोल, भूतापोल व हवापोल आदि अन्य द्वार है।

गढ़सीसर झील

वर्षा का जल संरक्षित करने वाली यह झील महारावलगढ़ ने 14वीं शताब्दी में बनाई थी। इसके आसपास कई छोटी मंदिर व तीर्थ स्थित है। इस झील में नौका विहार की सुविधा उपलब्ध है।



शहर की हवेलियां

जैसलमेर हवेलियां का शहर के नाम से भी प्रसिद्ध है। जैसलमेर की पटवों की हवेलियां, सालिम सिंह की हवेली, नथमल की हवेली तो कलात्मकता के लिए प्रसिद्ध हैं। जैसलमेर की इन पांचों हवेलियों के झरोखे अनुपम व उत्कृष्ट नक्काशी से युक्त हैं।

बादल विलास

बादल विलास जैसलमेर में स्थित 19वीं शताब्दी की अदभुत कलाकृतियों में से एक है। इसे जैसलमेर के महारावलों के निवास हेतु बना हुआ है। बादल विलास में बना ताजिया टावर पांच मंजिला हैं और शिल्प कला का बेजोड़ नमूना है। इसे को मुस्लिम कारीगरों ने तराशा था।

सम के टीले

सम के टीले जैसलमेर के पश्चिम में 42 किमी दूर स्थित रेत के टीले स्थित है। यह थार मरुस्थल के विशाल रेतीले टीलों का क्षेत्र हैं। सम की तरह ही सुहड़ी गांव के निकट स्थित विशाल रेत के टीले भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं। यहां का सूर्यास्त दर्शन तथा ऊंट सफारी पर्यटकों का मन मोह लेते हैं।

जाने का सही समय

अक्टूबर से मार्च

आयोजित टूर

सीजन के दौरान राजस्थान पर्यटन विकास कारर्पोरेशन (आरटीडीसी) द्वारा शहर व रेत के टीले दिखाने के टूर आयोजित किए जाते हैं।

कैसे पहुंचे

वायुमार्ग-निकटतम हवाईअड्डा जोधपुर में है।
रेलमार्ग-जैसलमेर दिल्ली व जोधपुर से रेलमार्ग से जुड़ा है जहां से आप भारत के सभी प्रमुख स्थानों से जा सकते हैं।
सड़कमार्ग-जैसलमार्ग सड़कमार्ग से कई स्थानों से जुड़ा है। दिल्ली से 897 किमी, बीकानेर से 330 किमी, जयपुर से 638 किमी और जोधपुर से 290 किमी दूर है।


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