Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    International Tiger day: जंगल नदियों और देश के वन्य पर्यटन को बचाने में अहम किरदार निभाते हैं बाघ

    By Priyanka SinghEdited By:
    Updated: Wed, 29 Jul 2020 07:26 AM (IST)

    अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस (29 जुलाई) पर यह समझना जरूरी है कि भले ही बाघों के लिए भारत को सुरक्षित माना जा रहा है मगर राज्यों में उनकी संख्या में असमानता बताती है कि अभी काफी पीछे हैं।

    International Tiger day: जंगल नदियों और देश के वन्य पर्यटन को बचाने में अहम किरदार निभाते हैं बाघ

    आम आदमी को बाघ अब आंकड़ों में दिखते हैं या यूट्यूब पर। लॉकडाउन में भले ही वे कभी सड़कों पर निकल आए हों लेकिन सच यही है कि इंसानी दखल की वजह से उनकी आबादी और आजादी खतरे में ही है। आंकड़े लुभावने हो सकते हैं, डरावने हो सकते हैं अथवा दिलासा देने वाले हो सकते हैं लेकिन आंकड़ों की त्रासदी यह है कि इन्हें छूकर-देखकर महसूस नहीं किया जा सकता। आंखें तो आंकड़ों को जमीन पर देखना चाहती हैं और आंकड़े हैं कि जमीन पर नजर ही नहीं आते। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    2019 में अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस पर चौथी बाघ गणना रिपोर्ट जारी करने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उत्साहित होने की वजह भी थी। नई पद्धति से की गई गणना में बाघों की संख्या में 33 फीसदी का इजाफा दिखता है। देश के तीन राज्य (नागालैंड, मिजोरम, उत्तर पश्चिम बंगाल क्षेत्र) ऐसे हैं जहां बाघ खत्म हो गए हैं। वहीं झारखंड और गोवा जैसे राज्यों में इनकी संख्या केवल पांच और तीन है। यही नहीं बिहार, आंध्र प्रदेश-तेलंगाना, उड़ीसा, अरुणाचल प्रदेश और सुंदरबन क्षेत्र में बाघों की संख्या स्थिर हो गई है। इसी तरह तीन टाइगर रिजर्व बक्सा, डंपा और पालामऊ में एक भी बाघ नहीं है जबकि चार राज्यों में कुल 62 फीसद बाघ मौजूद हैं। बाघों का यह असमान वितरण न केवल कई सवाल खड़े करता है बल्कि यह भी बताता है कि कैसे कई राज्यों में उचित प्रबंधन नहीं होने की वजह से बाघों के विलुप्त होने की स्थिति बरकरार है।

    लॉकडाउन में हो गए आजाद

    कोरोना संक्रमण ने इंसानों को घरों पर बैठने के लिए मजबूर कर दिया। हालांकि लॉकडाउन में सड़कों पर पसरा सन्नाटा प्रकृति के लिहाज से फायदेमंद साबित हुआ। प्रदूषण दूर हुआ और दिन के समय घने जंगल में छिपे रहने वाले जंगली जानवर आराम से झुंड बनाकर सड़कों पर नजर आए। इसी तरह मध्य प्रदेश के बालाघाट में चार बाघों का झुंड नजर आया। मध्य प्रदेश के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व (एसटीआर) से अच्छी खबर आई है। यहां आठ नए बाघ नजर आए हैं। अब उनका कुनबा 44 से बढ़कर 52 पर पहुंच गया है। इनमें दो से तीन शावक व अन्य वयस्क बाघ शामिल हैं।

    क्यों करते हैं आश्चर्य

    जब कभी ऐसे इलाकों में दुर्लभ प्रजाति के जीव-जंतु नजर आते हैं तो लोगों को आश्चर्य होता है। जबकि हमें यह सोचना चाहिए कि विकास की अंधी दौड़ में हम इतने पिछड़ गए हैं कि इन बेजुबानों को भूलते चले गए। अब जब वे अपनी ही जमीन पर नजर आते हैं तो हम इसे अपनी उपलब्धि मानने लगते हैं कि यह हमारी देखरेख की बदौलत हुआ है, जबकि ऐसा कतई नहीं। ये जानवर अपने ही इलाकों में हैं, बस हम इंसानों से छिपना इनकी मजबूरी है। बाघ जंगल के स्वास्थ्य एवं शाकाहारी वन्य प्राणियों की उपलब्धता दर्शाते हैं। प्रकृति और इसके जंगलों पर इनका हमसे पहले हक है। जब तक हम इस बात को सही से स्वीकार नहीं कर लेते तब तक इस तरह की मायूसी से दो-चार होते रहना होगा। कुल मिलाकर हमें केवल बाघों की बढ़ी संख्या को देखकर अभी खुश होने की जरूरत नही है। अब हम उस स्तर पर पहुंच गए हैं जहां पर बेहतर प्रबंधन की जरूरत है। इसके अलावा असमान वितरण को कम करने के लिए सघन अभियान चलाना चाहिए। साथ ही विकास और संरक्षण के स्तर पर संतुलन बनाने की जरूरत है।

    आरती तिवारी

    Pic credit- https://www.freepik.com/free-photo/wide-selective-focus-shot-orange-tiger-rocky-surface_8054682.htm#page=1&query=tiger%20&position=45

    comedy show banner
    comedy show banner