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करना चाहते हैं त्रेता युग का दीदार, तो एक बार जरूर जाएं तुलसी घाट

भादों महीने में इस घाट पर भव्य मेला का आयोजन किया जाता है। इस दौरान कृष्ण लीला किया जाता है। जबकि लीला का समापन कार्तिक महीने में होता है। कृष्ण लीला नाट्य मंचन की शुरुआत संत तुलसी दास जी द्वारा किया गया था।

By Umanath SinghEdited By: Published: Sun, 06 Dec 2020 08:44 AM (IST)Updated: Sun, 06 Dec 2020 08:44 AM (IST)
करना चाहते हैं त्रेता युग का दीदार, तो एक बार जरूर जाएं तुलसी घाट
भादों महीने में इस घाट पर भव्य मेला का आयोजन किया जाता है।

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। प्राचीन काल से देव भूमि वाराणसी शहर का विशेष महत्व है। इस शहर को बनारस और काशी भी कहा जाता है। गंगा नदी किनारे बसे वाराणसी में कई पवित्र घाट हैं। जहां रोजाना पूजा-आरती की जाती है। इनमें एक घाट तुलसी घाट है। कालांतर में इस घाट को "लोलार्क घाट" कहा जाता है। इस घाट पर भगवान सूर्य का मंदिर अवस्थ्ति है। ऐसी मान्यता है कि लोलार्क कुंड में स्नान करने से संतान प्राप्ति की मनोकामना शीघ्र पूरी होती है। भक्ति काल में संत तुलसीदास जी के नाम पर इस घाट का नाम तुलसी घाट रखा गया है। भादों महीने में इस घाट पर भव्य मेला का आयोजन किया जाता है। इस दौरान कृष्ण लीला किया जाता है। जबकि लीला का समापन कार्तिक महीने में होता है। कृष्ण लीला नाट्य मंचन की शुरुआत संत तुलसी दास जी द्वारा किया गया था। इस घाट से संत तुलसीदास जी का गहरा नाता है जो आज भी सजीव रूप में जीवित है। इस घाट पर ही संत तुलसीदास जी ने हनुमान मंदिर का निर्माण करवाया। जहां आज भी नियमित रूप से पूजा आरती की जाती है। अगर आप कभी बनारस जाते हैं, तो एक बार तुलसी घाट जरूर जाएं। आइए जानते हैं कि क्यों श्रद्धालुओं को तुलसी घाट जरूर जाना चाहिए-

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ऐसा माना जाता है कि संत तुलसीदास जी ने अवधि भाषा में रामचरितमानस की रचना तुलसी घाट पर ही की है। कथा अनुसार, जब संत तुलसीदास जी रामचरितमानस लिख रहे थे, तो रामचरितमानस उनके हाथों से फिसलकर गंगा नदी में गिर गई। हालांकि, रामचरितमानस न गंगा नदी में डूबी और न ही जलमग्न हुई और गंगा नदी की सतह पर तैरती रही। तब संत तुलसीदास जी ने गंगा में प्रवेश कर रामचरितमानस को पुनः प्राप्त कर लिया।

इस घाट पर ही पहली बार रामलीला का नाट्य मंचन किया गया था। इसके बाद से तुलसी घाट पर भगवान राम का मंदिर स्थापित किया गया और राम लीला का नाट्य मंचन होने लगा। इस घाट पर ही संत तुलसीदास जी पंचतत्व में विलीन हो गए। उनसे जुड़े अवशेषों को आज भी इस स्थल पर सुरक्षित रखा गया है। इनमें हनुमान जी की मूर्ति, लकड़ी के खंभे और तकिया हैं।

काफी संख्या में पर्यटक तुलसी घाट आते हैं। खासकर कार्तिक महीने में लोग अधिक आते हैं। इस महीने में देव दीवाली मनाई जाती है। साथ ही कृष्ण लीला का भी चित्रण किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि लोलार्क कुंड में स्नान-ध्यान करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसके लिए अगर आप बनारस जाते हैं, तो तुलसी घाट जरूर जाएं।


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