चाय के बागानों से लेकर UNESCO की विश्व धरोहर तक, असम में हर मोड़ पर है कुदरत का अनोखा करिश्मा
उत्तर-पूर्व भारत की हरी-भरी भूमि असम केवल चाय के बागानों और ब्रह्मपुत्र की लहरों तक सीमित नहीं है। यहां की धरती हर कदम पर आपको या तो प्रकृति के चमत्कार दिखाती है या इतिहास की कोई अनकही कहानी सुनाती है। मिलन कुमार शुक्ला के साथ चलिए उस यात्रा पर जिसमें शामिल हैं इस राज्य में यूनेस्को सूची की तीन विश्व विरासत...

मिलन कुमार शुक्ला, नई दिल्ली। असम की हमारी यात्रा काजीरंगा के दलदली जंगलों से शुरू हुई, जहां एक सींग वाले गैंडे शांति से घूम रहे हैं, फिर मानस के रहस्यमय वन में पहुंची, जहां हाथियों के झुंड और सुनहरे लंगूर जंगल की गहराई में मिले और अंत में, सिबसागर में मोइदम के शांत टीलों के पास जाकर अतीत की आवाजें सुनीं, जहां अहोम शासकों की विरासत मिट्टी में समाई हुई है!
काजीरंगा: वन्यजीवों का माकूल ठिकाना
जैसे ही हमारी जीप घने जंगलों और ऊंची घास के मैदानों में आगे बढ़ी, रोमांच और कौतूहल की लहर दौड़ गई। यहां आर्द्रभूमि, दलदली क्षेत्र और पर्णपाती वन-वन्यजीवों के लिए रहने का माकूल ठिकाना हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं गुवाहाटी से लगभग 200 किलोमीटर दूर ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी तट पर स्थित यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान की। जहां प्रकृति और वन्यजीवों की सुंदरता चरम पर है। यहां एक सींग वाले गैंडों की सबसे बड़ी आबादी है।
साल 2024 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यहां का दौरा कर इस अद्भुत धरोहर की झलक देश को दिखाई थी। यहां सफारी के दौरान आप हिरणों के झुंड, जंगली भैंसे और पेड़ों पर चहचहाते अनगिनत पक्षी देख सकते हैं। पक्षीप्रेमियों के लिए काजीरंगा स्वर्ग से कम नहीं, लेकिन सबसे विशेष अनुभव एक सींग वाले गैंडों को उनके प्राकृतिक परिवेश में देखना है। इन शांत व विशाल जीवों को देखना मानो समय की गति थाम लेना है। हमने हाथियों के झुंड को जंगल में आराम से घूमते देखा और रंगीन हार्नबिल की हवा में गूंजती आवाज ने मन मोह लिया।
पर्यटकों के लिए प्रवेश शुल्क 100 रुपये और जीप सफारी का शुल्क 1500-2200 रुपये है। हाथी सफारी, जिसकी कीमत लगभग 1200 रुपये है, जंगल को ऊंचाई से देखने का एक अलग ही अनुभव देती है। पार्क हर साल एक नवंबर से 30 अप्रैल तक खुला रहता है।
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मानस राष्ट्रीय उद्यान: प्रकृति व वन्यजीवों का अनोखा संगम
काजीरंगा की अविस्मरणीय यात्रा के बाद हमारी उत्सुकता असम के एक और महत्वपूर्ण वन्यजीव अभयारण्य मानस राष्ट्रीय उद्यान की ओर मुड़ी। यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित यह अभयारण्य काजीरंगा की तरह ही अपनी समृद्ध जैव विविधता और लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण के लिए जाना जाता है। मानस राष्ट्रीय उद्यान हिमालय की तलहटी में स्थित है। घने जंगल, लहराती नदियां और दूर तक फैले घास के मैदान यहां के नजारे को अद्भुत बनाते हैं। यह पार्क कई दुर्लभ और लुप्तप्राय वन्यजीवों का भी घर है, जो इसे एक महत्वपूर्ण संरक्षण क्षेत्र बनाता है। हमारा मानस की सफारी का अनुभव काजीरंगा से थोड़ा अलग था, लेकिन उतना ही रोमांचक और यादगार।
यहां हमने बंगाल टाइगर को उसके प्राकृतिक आवास में देखने की उम्मीद में घने जंगलों में प्रवेश किया। हालांकि बाघ की झलक मिलना किस्मत की बात होती है, लेकिन हमने उसके ताजे पगमार्क जरूर देखे, जो इस क्षेत्र में उसकी उपस्थिति का प्रमाण थे। हमें हाथियों के कई झुंड दिखाई दिए, जो अपने बच्चों के साथ जंगल में घूम रहे थे या नदी किनारे पानी पी रहे थे। इन विशालकाय प्राणियों को देखना एक अद्भुत अनुभव था, जो उनकी बुद्धिमत्ता और पारिवारिक बंधन को दर्शाता है। हमने सुनहरा लंगूर देखा, जो केवल पश्चिमी असम और भूटान के कुछ हिस्सों में ही पाया जाता है। इसके अलावा जंगली भैंसे, विभिन्न प्रकार के हिरण, कई अन्य छोटे स्तनधारी और सरीसृप भी देखे। पक्षीप्रेमियों के लिए मानस एक खजाना है।
मोइदम: आज भी जीवंत हैं अतीत गाथाएं
गुवाहाटी की चहल-पहल से दूर सिबसागर की शांत भूमि में हमारी मुलाकात इतिहास के एक अनकहे अध्याय से हुई-मोइदम, अहोम राजवंश के शाही कब्रिस्तान। यह कोई भव्य किला या मंदिर नहीं, बल्कि मिट्टी के वो टीले हैं, जिनके भीतर सदियों पुराना वैभव आज भी मौन खड़ा है। यह दफन परंपरा न केवल अद्वितीय है, बल्कि यह उस युग की सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं पर भी प्रकाश डालती है। चराईदेव स्थित हर मोइदम एक कहानी है। अहोम शासकों की शक्ति, परंपरा और उनके परलोक विश्वास की। गाइड ने बताया कि इन दोमंजिला टीलों में राजाओं को उनकी प्रिय वस्तुओं के साथ दफनाया जाता था। यह जानकर आश्चर्य हुआ परंतु यह परंपरा उनके परलोक में विश्वास और भौतिक वस्तुओं के प्रति उनके लगाव को दर्शाती है।
हालांकि, इन टीलों के अंदर क्या है, यह रहस्य बना हुआ है (सुरक्षा और संरक्षण कारणों से इन्हें खोला नहीं जाता), लेकिन इनकी उपस्थिति ही हमें उस समृद्ध सभ्यता की कल्पना करने के लिए प्रेरित करती है जो कभी इस भूमि पर फली-फूली थी। टीलों की सादगी और भव्यता का अनोखा संगम देखते ही बनता है। वहां खड़े रहकर लगता है जैसे समय थम गया हो और अतीत हमें चुपचाप अपना इतिहास सुना रहा हो। अब जब मोइदम को यूनेस्को विश्व धरोहर का दर्जा मिला है, यह सिर्फ असम नहीं, पूरे भारत की सांस्कृतिक पहचान के लिए एक गौरवपूर्ण क्षण है। हमारी यह यात्रा सिर्फ एक स्थल दर्शन नहीं, बल्कि एक सभ्यता से संवाद जैसा अनुभव था।
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