फतेहपुर सीकरी: आज भी सुनाती है अपने इतिहास की कहानी
यूनेस्को की विश्व धरोहर फतेहपुर सीकरी को अकबर ने अपनी राजधानी बनाया था। आज भी ये अपने समृद्ध इतिहास की दास्तान सुनाती है।
विजय और सपने पूरे होने का स्मारक
मुगल बादशाह बाबर ने राणा सांगा को सीकरी नाम की जगह पर ही हराया था। आगरा से 40 किलोमीटर दूर यही स्थान वर्तमान में फतेहपुर सीकरी कहलाता है। बाद में मुगल सम्राट अकबर ने इसे राजधानी बनाने लिए यहां किला बनवाया, लेकिन पानी की कमी के कारण राजधानी को आगरा में स्थानांतरित करना पडा़। अकबर एक सफल राजा होने के साथ-साथ कलाप्रेमी भी था। फतेहपुर सीकरी 1570-1585 तक मुगल साम्राज्य की राजधानी रहा। दरसल अकबर नि:संतान था और संतान प्राप्ति के सभी उपाय असफल होने पर उसने सूफी संत शेख सलीम चिश्ती से प्रार्थना की,जिसके बाद उसे बेटा मिला। इस बात से खुश और उत्साहित होकर अकबर ने यहां अपनी राजधानी बनाने का निश्चय किया था। हालांकि इस स्थान पर पानी की बहुत कमी थी इसलिए केवल 15 साल बाद ही राजधानी को वापस आगरा ले जाना पड़ा। इस जगह की कुछ इमारतें आज भी अपने वैभवशाली इतिहास का आइना हैं।
बुलंद दरवाज़ा
फ़तेहपुर सीकरी में अकबर के समय के अनेक भवनों, प्रासादों तथा राजसभा के भव्य अवशेष आज भी मौजूद हैं। जिसमें से सबसे शानदार इमारत बुलंद दरवाज़ा है। इसकी जमीन से ऊंचाई 280 फुट है। 52 सीढ़ियां चढ़ने के बाद दरवाजे के अंदर पहुंचा जा सकता है। दरवाजे में उस दौर के विशाल किवाड़ आज भी ज्यों के त्यों लगे हुए हैं। बुलंद दरवाजे को, 1602 ई. में अकबर ने अपनी गुजरात विजय के स्मारक के रूप में बनवाया था।
दीवान्-ए-खास
खूबसूरती से तराशी गई यह इमारत दीवान-ए-खास कहलाती है। यही वह जगह है जहां औरंगजेब की कैद में शाहजहां ने अपनी जिंदगी के आखिरी सात साल बिताए थे। कहा जाता है कि उस समय यहां से ताज का सबसे सुंदर नजारा दिखाई पड़ता था। हालांकि अब प्रदूषण बढ़ने के कारण ये उतना स्पष्ट नहीं दिखाई देता है।
पंच तला पंच महल
पंच महल एक विशाल और खंभों पर बनी एक पांच मंजि़ला इमारत है। अकबर ने इसे अपनी आरामगाह और मनोरंजन की जगह के तौर पर निर्मित करवाया था। ओपन साइडिड थीम पर बने इस महल की हर मंजिल पहली मंजिल की तुलना में छोटी है और ये सभी विषम खंभों पर खड़ी हैं। यह महल मुख्य रूप सम्राट की रानियों और राजकुमारियों के लिए बनाया गया था। जिसकी विशेष प्रकार की जालियों से वे महल में होने वाले कार्यक्रमों का आनंद ले पाती थीं। महल के पास बेहद खूबसूरत अनूप तलाब है जो अकबर ने जल भंडारण और वितरण के लिए बनवाया था।
सलीम चिश्ती की दरगाह
बुलंद दरवाजे से होकर शेख सलीम चिश्ती की दरगाह में प्रवेश करना होता है। ये शेख सलीम की संगमरमर से बनी समाधि है। इसके चारों ओर पत्थर के बहुत बारीक काम की सुंदर जाली लगी है। दूर से देखने पर ये जालीदार सफेद रेशमी परदे की तरह दिखाई देती है। समाधि के ऊपर बहुमूल्य सीप, सींग और चंदन की अद्भुत शिल्पकारी की गई है, जो 400 साल से ज्यादा प्राचीन होते हुए भी एक दम आधुनिक लगती है। सफेद पत्थरों में खुदी विविध रंगोंवाली फूलपत्तियां उस दौर की नक्काशी का शानदार उदाहरण हैं। समाधि में एक चंदन का और एक सीप का कटहरा है। इन्हें ढाका के सूबेदार और शेख सलीम के पोते नवाब इस्लामखां ने बनवाया था। अकबर के समय ये लाल पत्थर से बना था पर जहांगीर ने समाधि की शोभा बढ़ाने के लिए उसे सफेद संगमरमर का बनवा दिया था। उसने समाधि की दीवार पर चित्रकारी भी करवाई। समाधि के कटहरे का लगभग डेढ़ गज का खंभा खराब हो जाने पर हो जाने पर 1905 में लॉर्ड कर्ज़न ने उस समय 12 सौ रूपए की कीमत में पुन: बनवाया था। समाधि के दरवाजे आबनूस लकड़ी के बने हैं।