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    UP Eco-Tourism: चंद्रकांता सर्किट में रहस्य-रोमांच संग देखिए मानव सभ्यता के पदचिह्न

    By Jagran NewsEdited By: Sanjay Pokhriyal
    Updated: Fri, 07 Oct 2022 04:27 PM (IST)

    Eco Tourism वाराणसी से मात्र 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चुनार दुर्ग घूमने के लिए प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में सैलानी आते हैं। चुनार किले में सैलानियों के ठहरने का कोई प्रबंध नहीं हैं। वाराणसी से निकट होने के कारण सैलानियों का रात्रि विश्राम वाराणसी में ही होता है।

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    UP Eco Tourism: आइए उत्तर प्रदेश के मीरजापुर, सोनभद्र और चंदौली के सुरम्य पर्यटन स्थलों तक

    अनुपम निशान्त, वाराणसी : UP Eco Tourism चट्टानें धरती की इतिहास रूपी किताब में पन्ने की तरह होती हैं। अगर आपको इन पन्नों को पढऩे का शौक है तो पूर्वी उत्तर प्रदेश के मीरजापुर, सोनभद्र और चंदौली जिले के वनांचल में आपका स्वागत है। पुरातात्विक-ऐतिहासिक धरोहरों की समृद्धशाली विरासत अतीत से वर्तमान तक की कहानी सुनाएगी। आदिम मनुष्य की शरणस्थली रहीं विंध्य पर्वत श्रेणी की गुफाएं-कंदराएं और उनमें बने हजारों साल पुराने भित्तिचित्रों की श्रृंखलाएं और मनोरम प्राकृतिक झरने भी आपके इंतजार में हैं। तो, आइए करते हैं यादगार अनुभव देने वाली यात्रा की शुरुआत।

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    रहस्य-रोमांच का द्वार चुनार गढ़

    भारत के प्राचीनतम दुर्गों में शुमार यह विशाल-अभेद्य दुर्ग दो हजार वर्षों से भी अधिक समय से सीना ताने खड़ा है। मीरजापुर जिले से लगभग 35 किलोमीटर दूर चरण के आकार की एक विशाल पहाड़ी पर इस दुर्ग का निर्माण 56 ईसा पूर्व उज्जैन के महाराज विक्रमादित्य ने कराया था। चरण की आकृति के कारण इसे चरणाद्रि गढ़ भी कहते हैं। प्राचीन साहित्य में इस दुर्ग का उल्लेख नैनागढ़ नाम से भी मिलता है। यहां राजा विक्रमादित्य ने अपने बड़े भाई राजा भर्तृहरि के लिए दुर्ग बनवाया। भर्तृहरि की समाधि आज भी है। आल्हा-ऊदल के किस्से भी इस दुर्ग से जुड़ते हैं। दुर्ग के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में सोनवा मंडप, विशाल बावली, सूर्य घड़ी, वारेन हेस्टिंग्स का बंगला, भूमिगत बंदीगृह, बावन खंभा, जहांगीरी कक्ष, रानीवास, मुगलकालीन बारादरी, तोपखाना आदि हैं।

    बाबू देवकीनंदन खत्री ने रचा रहस्यमयी कथा का वितान

    चुनार गढ़... याद आ गई न चंद्रकांता...। स्वाभाविक भी है, क्योंकि बाबू देवकीनंदन खत्री (1861-1913) ने उस कालखंड में नए शिल्प विधान और रहस्य-रोमांच से भरपूर ऐसी कथा बुनी कि उनके द्वारा रचित 'चंद्रकांता' और फिर 'चंद्रकांता' संतति पढऩे के लिए लाखों लोगों ने पढऩा लिखना सीखा। यहां शाहजहां ने भी दीवान-ए-खास का निर्माण कराया, जिसका उपयोग अब डाक बंगले के रूप में किया जाता है। 170 किमी के दायरे में स्थित चंदौली, मीरजापुर और सोनभद्र जिलों के पर्यटन स्थलों की ओर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे चंद्रकांता सर्किट घोषित कर दिया है। चंद्रकांता सर्किट में प्रकृति का अनमोल उपहार और रहस्य-रोमांच है तो आस्था का शीर्ष केंद्र मां विंध्यवासिनी का धाम भी।

    अब गंगा की लहरों पर क्रूज से भी चुनार तक की यात्रा

    पिछले वर्ष पांच सितंबर को विभिन्न सुविधाओं से युक्त रो-रो क्रूज से वाराणसी से चुनार तक की यात्रा की शुरुआत हुई। क्रूज यह सफर चार घंटे में पूरा करेगा। बीच में शूलटंकेश्वर घाट पर आधे घंटे का हाल्ट रखा गया है। इससे पर्यटकों को नई अनुभूति होगी। अभी यह यात्रा नियमित नहीं हो सकी है, लेकिन क्रूज संचालक विकास मालवीय के मुताबिक इसे मां विंध्यवासिनी धाम तक ले जाने की योजना पर भी मुहर लग चुकी है। इस क्रूज की क्षमता 250 यात्रियों की है। एक सप्ताह पहले ही पटना से चलकर वाराणसी पहुंचे राजमहल क्रूज ने भी सैलानियों को चुनार गढ़ की यात्रा कराई। इसमें 13 ब्रिटिश, तीन जर्मन और दो भारतीय पर्यटक शामिल रहे।

    विशाल गुफाओं में आदिम मनुष्य के चिह्न

    चुनार से लेकर अहरौरा तक विंध्य पर्वत श्रेणी की कुछ गुफाओं में और अहरौरा से लेकर सोनभद्र के कई स्थलों पर विशालकाय गुफाओं में कभी आदिम मनुष्य का वास हुआ करता था। इसके प्रमाण इन गुफाओं में बने भित्तिचित्रों से मिलते हैं। इन्हें देखना और आदिम काल के मानवीय जीवन की कल्पना भी रोमांचित कर जातीी है।

    पहाडिय़ां और जलप्रपात

    चंदौली में राजदरी और देवदरी जलप्रपात के मनोरम दृश्य आपको प्राकृतिक सौंदर्य का नया अनुभव देते हैैं। मीरजापुर में लखनिया दरी एवं चूना दरी का जल प्रपात आकर्षक का केंद्र हैं। लखनिया दरी के किनारे की पहाडिय़ों के भित्तिचित्र भी दर्शनीय हैं। इसके अलावा शक्तेशगढ़ में सिद्धनाथ दरी, विंढम फाल, टांडा फाल में ऊंचाई से गिरते झरने विशेष रूप से दर्शनीय हैं।

    चंद्रप्रभा अभयारण्य

    मीरजापुर से सटे चंदौली जिले में हरीतिमा से भरपूर चंद्रप्रभा अभयारण्य का भ्रमण आपको आनंदित करेगा। इस अभयारण्य में भालू, चीतल, गुलदार, तेंदुआ, सांभर, मोर सहित वन्य जीवों की लगभग 700 प्रजातियां हैं।

    अनमोल धरोहर है सलखन का फासिल्स पार्क

    सोनभद्र जनपद में विंध्य व कैमूर की पर्वत श्रृंखला के बीच सोनभद्र जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर और वाराणसी से 105 किलोमीटर दूर चोपन ब्लाक में देश की अनमोल धरोहर है- सलखन का फासिल्स पार्क। यहां 140 करोड़ साल पुराने जीवाश्म हैं। वृक्षों के इन जीवाश्मों को देखना रोमांचकारी है।

    मां विंध्यवासिनी धाम व गंगा

    मीरजापुर : विंध्याचल में धार्मिक पर्यटन स्थल मां विंध्यवासिनी का दर्शन-पूजन व गंगा स्नान करने के बाद सैलानी रोपवे से अष्टभुजा की पहाड़ियों की सैर करते हैं। इसके साथ ही विंढम फाल, लखनिया दरी, सिद्धनाथ दरी, चूना दरी समेत कई वाटर फाल पर पहुंचते हैं। इन सैलानियों के ठहरने के लिए मीरजापुर शहर में अष्टभुजा डाक बंगला के साथ ही कई होटल हैं।

    सोनभद्र जिले में प्राकृतिक सौंदर्य से जुड़े कई स्थल हैं। इसमें विजयगढ़ का किला,मुक्खा फाल, कण्व ऋषि की तपोस्थली कंडा कोट व सलखन का फासिल्स पार्क है। यहां सुदूर जनपदों से लोग घूमने आते हैं। हालांकि इन स्थलों के नजदीक ठहरने की वयवस्था नहीं है। इन स्थानों पर आने जाने वालों के लिए ठहरने की उचित व्यवस्था जिला मुख्यालय राबर्ट्सगंज के होटल,लाज और सरकारी गेस्ट हाउस ही हैं। मुख्यालय से विजयगढ़ 35,मुक्खा फाल 50,कंडा कोट 38 और फासिल्स पार्क 10 किमी की दूरी पर हैं।

    किले में लोक निर्माण विभाग का एक गेस्ट हाउस है जिसकी बुकिंग अधिशासी अभियन्ता मीरजापुर लोक निर्माण विभाग के कार्यालय से होती है। अमूमन इस गेस्ट हाउस का उपयोग अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों के रुकने के लिए होता है।