Diwali 2019: इस साल 5 लाख दीयों से जगमगाएगा अयोध्या, देश-विदेश के पर्यटक होंगे शामिल
Diwali 2019 इस साल 5.51 लाख दीए जगमगाएंगे अयोध्या में। आराध्य से तार जोडऩे वाले दीपोत्सव में हर साल 35 से 40 लाख लोग शिरकत करते हैं। जानेंगे इस बार और क्या है खास।
अयोध्या उतनी ही प्राचीन है जितनी काशी लेकिन फिर क्या बात है कि एक जीवंत है जबकि दूसरी उदास। समय का चक्र है कि अयोध्या की उदासी उसके राम से है। जिस नगरी ने सनातन धर्म और संस्कृति को उसका प्रतीक पुरुष दिया, वह यदि निस्तेज दिखती थी तो कारण उसी प्रतीक को ध्वस्त करने के अनवरत और योजनाबद्ध वे षड्यंत्र हैं जिन्होंने सरयू में समाधि लेने वाले राम का सरयू के जल से पांच सौ वषरें तक अभिषेक न होने दिया। निरंकुश और अत्याचारी सत्ताएं प्रतीकों को मारती हैं क्योंकि धूल में लोटते प्रतीक उन्हें पराजितों के सांस्कृतिक पराभव का अभीष्ट संतोष देते हैं। अयोध्या संस्कृति का अनुपम गायन है।
इसी अयोध्या ने अब करवट ली है। लखनऊ से ढाई घंटे की दूरी पर बसी अयोध्या में एक श्रेष्ठ पर्यटन स्थल बनने की सारी खूबियां हैं लेकिन, उसे इस रूप में विकसित करने के प्रयास अब शुरू हुए हैं। राम मंदिर आंदोलन के बाद वहां पर्यटकों की रुचि जगी थी लेकिन, उन्हें कोई सुविधा नहीं दी गई। पिछले तीन वषरें में अयोध्या में काफी काम हुए। योगी सरकार द्वारा 2017 में अयोध्या में मनाया गया दीपोत्सव सैकड़ों वषरें में जन्मभूमि में मनाया गया रामनाम का ऐसा पहला सार्वजनिक भव्य समारोह था जिसने सनातनियों को आत्मगौरव का बोध कराया और वह दीवाली एक सामान्य सरकारी आयोजन से ऊपर उठ गई। तब घाटों पर पौने दो लाख दीये जलाये गए थे। अगले बरस साढ़े तीन लाख दीये जले और इस बार 5.51 लाख दीये जगमगाएंगे।
वैश्विकता के रंग
दीपोत्सव से पूरी नगरी समृद्ध विरासत की जड़ों से जुड़ती है। रामनगरी के एक अन्य छोर पर स्थित साकेत महाविद्यालय से रामकथा पर आधारित करीब सवा दर्जन झांकियों के साथ शोभायात्रा निकलती है और नगरी के मुख्यमार्ग से गुजरती हुई ढाई किलोमीटर का सफर तय कर रामकथा पार्क पहुंचती है। शोभायात्रा में स्वयंसेवियों, साधु-संतों, जन प्रतिनिधियों एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं की शिरकत रहती है।
राम जन्मोत्सव है प्रतिनिधि पर्व
दीपोत्सव ही नहीं, नगरी की सांस्कृतिक अस्मिता के विविध श्रेणी-शिखर हैं। प्रत्येक वर्ष चैत्र शुक्ल नवमी को मनाया जाने वाला राम जन्मोत्सव नगरी का प्रतिनिधि पर्व है। जन्मोत्सव की शुरुआत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही होती है। प्रात: रामलला के पूजन-अभिषेक का वैशिष्ट्य और सायं आराध्य के दरबार में सजने वाले बधाई गीतों की महफिल का रंग। नवमी से तीन-चार दिन पूर्व ही दूर-दराज तक के श्रद्धालु उमडऩे लगते हैं। नवमी की जिस मध्याह्न बेला में राम जन्मोत्सव की रस्म निभाई जाती है, उस समय यहां लाखों श्रद्धालु भक्ति में लीन होते हैं। हालांकि उत्सव-उल्लास क्या होता है, इसकी परिपूर्ण जानकारी सावन महीने की शुक्ल तृतीया से पूर्णमासी तक चलने वाले 13 दिवसीय झूलनोत्सव से होती है। एक ओर सावन की रिमझिम फुहार शरीर को भिगोती है, दूसरी ओर यहां के असंख्य मंदिरों के आंतरिक प्रांगण में सजी संगीत की सावनी संध्या आंतरिक गहराइयों तक पुलक पैदा करती है। मां सीता एवं भगवान राम के विग्रह से लेकर उनके स्वरूप हिंडोले पर पूरी गरिमा से विराजमान होते हैं और सम्मुख सधे-सिद्ध संगीतज्ञों की मंडली भांति-भांति के पदों से उन्हें रिझा रही होती है। आराध्य से तार जोडऩे वाले झूलनोत्सव के महापर्व में प्रतिवर्ष 35 से 40 लाख लोग शिरकत करते हैं।
ऐसे पहुंचें अयोध्या
अयोध्या रेल व सड़क मार्ग से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, वाराणसी, प्रयागराज आदि जिलों से सीधे तौर पर जुड़ी है। लखनऊ से अयोध्या की दूरी तकरीबन 130 किमी. है। इसके साथ ही रामनगरी दक्षिण भारत से भी रेल मार्ग से सीधे जुड़ी हुई है। अयोध्या से रामेश्र्वरम् तक की सीधी ट्रेन हैं, जबकि मुंबई से भी यहां रेल मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। निकटतम हवाई अड्डा लखनऊ स्थित चौधरी चरण सिंह एयरपोर्ट (पूर्व नाम अमौसी) है।