करनी हो छुकछुक की सवारी तो दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे घूमने जाएं इस बारी
दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे का सफर शुरू होता है न्यू जलपाईगुडी शहर से जो यहां का पहला स्टेशन है। पहले टॉय ट्रेन सिलीगुड़ी टाउन तक ही आती थी। फिर इस लाइन का बढ़ाया गया।
सिलुगुडी टाउन
अब टॉय ट्रेन का दूसरा स्टेशन है। एनजेपी तक विस्तार से पहले तक ये पहला रेलवे स्टेशन हुआ करता था। सिलिगुडी़ जंक्शन तीसरा रेलवे स्टेशन है। सुकना 161 मीटर की ऊंचाई पर दार्जिंलिंग जिले की सीमा आरंभ होने के साथ ही यहां से पहाड़ी सफर की शुरूआत हो जाती है। हरे भरे चाय के बगानों के साथ मौसम बदलने लगता है।
रोंगटांग
440 मीटर की ऊंचाई पर सुकना के बाद स्टेशन जहां आपको ट्रेन पहाड़ों के साथ अटखेलियां करती नजर आती है। इसके बाद आता है तीनधारा स्टेशन। 1880 में तीन धारा तक डीएचआर का नेटवर्क पहुंच चुका था। मार्च 1880 में गवर्नर जनरल लार्ड लिटन ने तीनधारा तक रेलवे संचालन का उदघाटन किया था।
लोको शेड
यहां पर डीएचआर का वर्कशाप है। यहां डीएचआर के इंजनों की मरम्मत की जाती है। यहां एक बड़ा लोको शेड बनाया गया है। साथ ही इंजन बदले की भी सुविधा है। डीएचआर के खराब हुए इंजनों की तीनधारा वर्कशाप में मरम्मत भी की जाती है। साथ ही रेलवे इंजीनियरिंग विभाग का दफ्तर है।
गया बाड़ी
यह स्टेशन 1040 मीटर की ऊंचाई पर है। गयाबाड़ी दार्जिलिंग जिले के अंतर्गत आता है। यहां कई चाय के बगान हैं। इसके बाद आता है महानदी स्टेशन। जो 1252 मीटर की ऊंचाई पर है। यहां महानदी वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी स्थित है। काफी सैलानी यहां जंगल सफारी के लिए आते हैं। 1989 में इस रेलवे स्टेशन के भवन को दुबारा बनाया गया। पहले भू स्खल में ये स्टेशन भवन तबाह हो गया था।
कर्सिंयांग
कर्सियांग स्टेशन में ट्रेन मार्ग सड़क मार्ग को क्रास करती है। यह डीएचआर का मध्यवर्ती स्टेशन है। साथ ही यह एनजेपी से दार्जिलिंग के बीच का सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन भी है। कर्सियांग व्यस्त बाजार है। इस छोटे से ऐतिहासिक शहर में कभी नेताजी सुभाष चंद्र बोस का आगमन हुआ था। आजकल कर्सियांग के आसपास कई नामी-गिरामी पब्लिक स्कूल और चाय के बगान हैं।
तुंग
यह स्टेशन 1728 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां धीरे धीरे ठंड बढ़ने लगती है। यहां डीएचआर का म्यूजियम भी है। इसके बाद आता है सोनादा स्टेशन। सोनादा एक छोटा सा बाजार है जहां एक बार फिर एनएच- 55 के साथ रेलगाड़ीकी पटरियां मिलती हैं। फिर आता है जोरबंग्ला स्टेशन। किसी जमाने में जोरबांग्ला चाय के लिए स्टोर करने वाला स्थल हुआ करता था। यहां दार्जिलिंग शहर की सीमा की शुरूआत भी मानी जाती है।
घूम
टॉय ट्रेन 2258 मीटर की ऊंचाई पर स्थित घूम स्टेशन पर पहुंचती है। यह डीएचआर रेल मार्ग का सबसे ऊंचाई पर स्थित रेलवे स्टेशन है। यह दुनिया का दूसरा सबसे ऊंचा रेलवे स्टेशन है। यहां पर टॉय ट्रेन का संग्रहालय भी है। यहां प्रसिद्ध बौद्ध मठ भी है।
कंचनजंगा पर्वत चोटी
दार्जिलिंग से 5 किलोमीटर पहले आता है बतासिया लूप। ट्रेन यहां घुमाव लेती है जिसका नजारा देखने लायक होता है। देश की आजादी के लिए जान गंवाने वाले गोरखा फौजियों का मेमोरियल है। ट्रेन से आप इसका मजा ले सकते हैं। यहां से दार्जिलिंग शहर के साथ कंचनजंगा पर्वत की चोटी भी देखी जा सकती है।
दार्जिलिंग
टॉय ट्रेन पहुंच जाती है अपनी मंजिल पर यानी आखिरी रेलवे स्टेशन। दार्जिलिंग रेलवे स्टेशन का छोटा सा सुंदर सा भवन 1891 का बना हुआ है। फिर ट्रेन पहुंचती है दार्जिलिंग बाजार स्टेशन पर। यहां दार्जिलिंग बाजार तक पटरियां बिछाई गईं। ये पटरियां खास तौर पर सामान पहुंचाने के लिए बिछाई गई थीं। पर अब आप सिर्फ पटरियां देख सकते हैं। इन पर अब ट्रेन नहीं चलती।