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चीन भर में मशहूर है हवा में खड़ा यह मंदिर, इसे देखना एक स्‍वप्‍न से कम नहीं

यह सर्वविदित है कि मंदिर और मठ आम तौर पर जमीन पर बनाये गए हैं , लेकिन उत्तर चीन के शानसी प्रांत में एक ऐसा मंदिर देखने को मिलता है , जो सीधी खड़ी पहाड़ी चट्टार पर बनाया गया है और दूर से देखने में लगता है , मानो वह

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 16 Sep 2015 11:04 AM (IST)Updated: Wed, 16 Sep 2015 11:30 AM (IST)
चीन भर में मशहूर है हवा में खड़ा यह मंदिर, इसे देखना एक स्‍वप्‍न से कम नहीं
चीन भर में मशहूर है हवा में खड़ा यह मंदिर, इसे देखना एक स्‍वप्‍न से कम नहीं

यह सर्वविदित है कि मंदिर और मठ आम तौर पर जमीन पर बनाये गए हैं , लेकिन उत्तर चीन के शानसी प्रांत में एक ऐसा मंदिर देखने को मिलता है , जो सीधी खड़ी पहाड़ी चट्टार पर बनाया गया है और दूर से देखने में लगता है , मानो वह हवा में अटका हुआ मंदिर हो । इसलिए यह मंदिर हवा में खड़े मंदिर के नाम से चीन भर में मशहूर है । हवा में खड़ा यह मंदिर शानसी प्रांत के ताथुंग शहर के निकट स्थित है , जिस का निर्माण आज से 1400 साल पहले हुआ था । वह चीन में अब तक सुरक्षित एकमात्र बौध , ताऔ और कम्फ्युसेस त्रिधर्मों की मिश्रित शैली में निर्मित अनोखा मंदिर है ।

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चीन के बड़ी संख्या में सुरक्षित प्राचीन वास्तु निर्माणों में हवा में खड़ा मंदिर एक अत्यन्त अद्भुत निर्माण है , वह घनी पहाड़ी घाटी में फैले एक छोटा सा बेसिन में स्थित है , घाटी की दोनों ओर सौ मीटर ऊंची ऊंची चट्टानें सीधी खड़ी हैं , मंदिर एक तरफ की खड़ी चट्टान पर जमीन से 50 मीटर की ऊंची जगह पर बनाया गया है , जो हवा में अटका सा दिखता है । दूर से देखने पर बहु मंजिला मंदिर का तल्लाधार दसेक पतली लम्बी लकड़ियों पर टिका हुआ खड़ा है , मंदिर के ऊपर पहाड़ी चट्टान का एक विशाल टुकड़ा बाहर की ओर बढ़ा हुआ है , मानो वह अभी मंदिर पर गिर जाए , अभी गिर जाए , जो डरावना नजारा देता है । हवा में खड़े मंदिर के छोटे बड़े 40 भवन व मंडप हैं , जिन्हें चट्टान पर गड़े हुए लकड़ी के सैतुओं से जोड़ा गया है , इस प्रकार के हवा में निर्मित लकड़ी के रास्ते पर चलते हुए लोगों की सांस गले पर आ जाती है , किसी को जरा सी लापरवाही करने का साहस नहीं है , बराबर डर साथ रहता है कि कहीं यह मंदिर नीचे गहरी घाटी में ढह कर तो न गिर जाए । किन्तु पांव के दबाव से लकड़ी का रास्ता ची-ची की आवाज जरूर देती है , पर चट्टान पर सटा मंदिर में जरा भी हिलकोर नहीं आता है ।

हवा में खड़ा मंदिर का निर्माण काम वाकई अनोखा है । मंदिर सीधी खड़ी चट्टान के कमर पर अटका सा खड़ा है , उस के ऊपर चट्टान का बाहर की ओर बढ़ा निकला हुआ विशाल टुकड़ा एक विशाल छाता की भांति मंदिर को वर्षा और पानी से क्षति पहुंचाने से बचा देता है , जमीन से 50 मीटर ऊंजी जगह खड़ा होने से मंदिर पहाड़ी घाटी में आने वाली बाढ़ से भी बच सकता है । मंदिर की चारों ओर घिरी पहाड़ी चोटियां उसे तेज धूप से भी बचा सकती हैं । कहा जाता है कि गर्मियों के दिन भी रोज महज तीन घंटों तक सुरज की किरणें मंदिर पर पड़ सकती है । इसी के कारण लकड़ी का यह मंदिरा 1400 साल पुराना होने पर भी आज वह अच्छी तरह सुरक्षित रहा है ।

हवा में खड़ा मंदिर की विशेषता यह है कि वह हवा में अटका सा अवस्थित होता है । लोग समझते हैं कि मंदिर उस के नीचे टेके दर्जन प्याला जितना मोटी लकड़ियों पर टिका हुआ है , लेकिन असलियत दूसरी है कि उन लकड़ियों पर मंदिर का भार नहीं पड़ा है, मंदिर को मजबूत टेका जाने में चट्टान के अन्दर गड़े कड़ी गुणवता वाली लकड़ी के धरनों का पूरा काम आता है । चौकोण धरनें गहरे गहरे पत्थर के अन्दर पैठा कर दी गई हैं , विशेष तेल से सिंचित काष्ठ धरनें न दीमक से डरती है , न सड़ गल जाती है । मंदिर का तल्ला इसी प्रकार की मजबूत धरनों पर रखा गया है । फिर भी मंदिर के नीचे जो दर्जन लकड़ी टेकी हुई हैं , उस का भी काम आता है , यानी वे समूचे मंदिर के विभिन्न भागों को संतुलित बनाती हैं ।

हवा में खड़ा मंदिर की संरचना बहुत सुयोजित और सुक्ष्म है । मंदिर के विभिन्न भाग पहाड़ी चट्टान की प्राकृतिक स्थिति के अनुरूप बनाये गए है , जिन के डिजाइन सुक्ष्म और अनूठा है । मंदिर का मुख्य भवन त्रिदेव महल पहाड़ी चट्टान की विशेषता को ध्यान में रख कर बनाया गया , महल के अग्रिम भाग में लकड़ी का मकान है और पीछे का भाग चट्टान के अन्दर खोदी गई गुफा में है , इस से देखने में त्रिदेव महल बहुत खुला और विशाल लगता है । मंदिर के दूसरे भवन व मंडप अपेक्षाकृत छोटा है और उन के भीतर विराजमान मुर्तियां भी छोटी दिखती है । मंदिर के भवन , महल और मंडप ऐसा निर्मित हुए , उन के भीतर प्रवेश कर मानो किसी भूलभूलैया में घुस गया हो ।

तो आप पूछ सकते हैं कि प्राचीन चीनियों ने क्यों यहां सीधी खड़ी चट्टान पर यह मंदिर बनाया था , कारण यह था कि तत्काल में यहां की पहाड़ी घाटी यातायात की एक प्रमुख मार्ग था , यहां से भिक्षु और धार्मिक अनुयायी जब गुजरते थे , वे मंदिर में आराधना कर सकते थे । दूसरा कारण यह था कि यहां की पहाड़ी घाटी में बाढ़ हुआ करती थी , प्रातीन चीनी लोग मान कर चलते थे कि ड्रैगन बाढ़ का प्रकोप मचाता है , यदि यहां एक मंदिर बनाया गया , तो वह ड्रैगन को वशीभूत कर सकता है । सो हवा में खड़ा मंदिर अस्तित्व में आ गया ।

हवा में खड़ा मंदिर के पास चट्टान पर कोंगसु का अतूल्य काम चार चीनी शब्द खुदे नजर आता है , जो इस मंदिर की अनूठी वास्तु कला की सराहना करता है । कोंगसु आज से दो हजार से ज्यादा साल पहले प्राचीन चीन का एक सुप्रसिद्ध शिल्पी था , वह चीन के वास्तु निर्माण उद्योग का सर्वमान्य गुरू था । हवा में खड़ा मंदिर के पास जो चार चीनी अक्षर खोदे गए थे , इस का अर्थ यह है कि महज कोंगसु जैसे वास्तु कला के गुरू से ही ऐसा बेमिसाल मंदिर बनाया जा सकता है ।


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