Move to Jagran APP

कर्नाटक के कश्मीर नाम से मशहूर कुर्ग की खूबसूरती देखनी है, तो मानसून है बेहतरीन सीज़न

सुंदर घाटियां पहाड़ियां कॉफी के बागान तेजी से बहती नदियां और बुलंद चोटियां। इन सबके साथ आसमान से बरसता नूर यानी बारिश कुर्ग इन सब आभूषणों के साथ बेहद हसीन नजर आता है।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Thu, 27 Jun 2019 04:42 PM (IST)Updated: Thu, 27 Jun 2019 04:42 PM (IST)
कर्नाटक के कश्मीर नाम से मशहूर कुर्ग की खूबसूरती देखनी है, तो मानसून है बेहतरीन सीज़न
कर्नाटक के कश्मीर नाम से मशहूर कुर्ग की खूबसूरती देखनी है, तो मानसून है बेहतरीन सीज़न

हरे-भरे पेड़-पौधों की चादर में लिपटी कुर्ग की पहाडिय़ों को चूमते गरजते काले बादलों को देखने इन दिनों सैलानियों की भीड़ लगी हुई है। प्रकृति यहां एक 'ओपन थियेटर' के रूप में नजर आती है, जिसे देखने का रोमांच आप यहां आकर ही महसूस कर सकते हैं। यूं तो कुर्ग हर मौसम में आकर्षक लगता है, लेकिन बारिश को खास पसंद करने वालों के लिए यह अभी धरती पर एक जन्नत बना हुआ है। सर्दियों में यह जिला मां प्रकृति की गोद में गहरी निद्रा में डूबने के लिए आतुर सूर्यदेव को अलविदा कहने का मंच बन जाता है। इसे कभी 'भारत का स्कॉटलैंड' तो कभी 'कर्नाटक का कश्मीर' कहा जाता है। कुर्ग, कर्नाटक के दक्षिण-पश्चिम भाग में पश्चिमी घाट के पास एक पहाड़ पर स्थित जिला है, जो समुद्र तल से लगभग 900 मीटर से 1715 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह दक्षिण भारत के लोगों का प्रसिद्ध वीकेंड गेटवे है। दक्षिण कन्नड़ के लोग यहां विशेष रूप से वीकएंड मनाने आते हैं। इस छोटे से जिले में 3 ताल्लुक आते हैं- मादीकेरी, सोमवारापेटे और वीराजापेटे। मादीकेरी कुर्ग का मुख्यालय है।

loksabha election banner

एब्बी जलप्रपात

कावेरी की जलधारा के भीषण बहाव से पैदा होती गर्जना आपको मीलों दूर से अपनी ओर आकर्षित करेगी, मानो यह जलधारा कह रही हो कि कुछ क्षण के लिए दुनिया का सारा कोलाहल भूलकर इस जलध्वनि के संगीत में खो जाएं। वन विभाग ने यात्रियों की सुविधा के लिए यहां एक 'व्यू पॉइंट' का निर्माण भी किया है, जहां से आप घंटों तक एब्बी जलप्रपात की तेज धारा में अपने को विलीन कर सकते हैं।

मंडलपट्टी की जीप सफारी

कुर्ग से तकरीबन 20-25 किमी. दूर है मंगलपट्टी। पुष्पगिरि के घने जंगल से गुजरकर पहाड़ों की समतल चोटियों पर स्थित मंडलपट्टी की ढलान सहसा लुभा लेती है। बारिश के मौसम में ताजा नहाए घास एवं हवा के झोंकों के साथ झूमते जंगली फूलों से इस पट्टी की सुंदरता दोगुनी हो जाती है। बादलों में लिपटी इस घाटी में जीप की सफारी करना लगभग हर यात्री की प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर रहता है। एब्बी जलप्रपात जाते हुए रास्ते में ही स्थित स्थानीय जीप यूनियन से आप जीप बुक कर सूर्यास्त तक इस सफारी का मजा ले सकते हैं।

कुर्ग की कॉफी : नहीं भूलेंगे यह स्वाद!

आसमान छूते पेड़ों की छांव में 'बोंसाई पौधों' के समान प्रतीत होते हैं ये कॉफी के पौधे। इन पर लगे चटकीले लाल रंग के मोतीरूपी फल दुनिया भर के प्रकृतिप्रेमियों को आकर्षित करते हैं। यहां पेड़ों से लिपटकर रेंगती हुई काली मिर्च की बेलें और कोहरे में छिपे कॉफी के पौधे किसी रहस्यमयी जंगल-सा आभास देते हैं। आपको कुछ समय इस रहस्यमयी स्थान पर बिताने की इच्छा पूरी हो सकती है। दरअसल, यहां इन बागानों में 'होम स्टे' या 'कॉटेज' बने हुए हैं, जहां आप ठहरकर ऐसे कई नजारों का आनंद ले सकते हैं। आपको बता दें कि सालों तक, उत्कृष्ट गुणवत्ता की कॉफी देने वाले ये पौधे कटने के बाद भी अपनी आकर्षण नहीं खोते, बल्कि कुर्ग के बाजारों में कॉफी की लकड़ी से बने अनोखे फर्नीचर देख सकते हैं। फरवरी महीने में कॉफी के फल पक कर तैयार हो जाते हैं। शहरों की दुकानों में मिलने वाली कॉफी का स्वाद असली है, आपने कभी यह सोचा है तो कुर्ग की कॉफी चखकर देखें तो एक बार आपकी पुरानी राय जरूर बदल जाएगी।

 

बायलाकुप्पे : दक्षिण भारत का तिब्बत

तिब्बती शैली में बने रंगबिरंगे घर, स्वच्छ एवं सुंदर गलियां और आलीशान मंदिर से सुनाई देते बौद्ध संतों के मंत्रोच्चार.., कर्नाटक के हृदय की तरह कुर्ग जिले में बसा यह 'मनी-तिब्बत'आपको भूटान और नेपाल की गलियों-सा एहसास कराएगा। उत्तर में धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) और दक्षिण में बायलाकुप्पे तिब्बतियों की मुख्य बस्तियां हैं। धर्मशाला उनकी संसदीय राजधानी है तो दूसरी तरफ बायलाकुप्पे उनका शिक्षा केंद्र है। लद्दाख, धर्मशाला, शिमला तथा सिक्किम के कई निवासी बायलाकुप्पे में अपनी धार्मिक शिक्षा हेतु आते हैं और यही कारण है कि कर्नाटक के ज्यादातर शहरों में उत्तर और पूर्वी-भारत से आए लोग ज्यादा नजर आते हैं। बायलाकुप्पे का शांतिमय और धार्मिक वातावरण आपकी यात्रा की शुरुआत के लिए एक बेहतरीन अनुभव होगा। यह मादीकेरी से 40 किमी की दूरी पर है।

दुब्बारे एलीफैंट कैंप

कहानियों तथा फिल्मों में शायद सबने हाथियों को नदी के पानी से नहाते-खेलते हुए देखा होगा, लेकिन कुर्ग में स्थित दुब्बारे एलीफैंट कैंप आपको वास्तव में ऐसा अनमोल नजारा देखने का मौका देता है। यहां आप चाहें तो पानी में जाकर हाथियों को नहला भी सकते हैं। मैसूर दशहरा में रथयात्रा की शान बढ़ाने वाले राजसी हाथी दुब्बारे कैंप में प्रशिक्षण लेते हुए देखे जा सकते हैं। सुबह 9 बजे का समय हाथियों के नहाने का होता है और उसके बाद हाथियों को कावेरी नदी के किनारे बने कैंप में टहलते देख सकते हैं। बारिश के मौसम में कावेरी को बोट द्वारा पार करके कैंप पहुंचा जा सकता है। सर्दियों में यात्रियों को नदी के हल्के बहाव से पैदल चलकर कैंप पहुंचना पड़ता है।

तल कावेरी

माना जाता है कि ब्रह्मगिरि पर्वतों की घाटी में ध्यानमग्न ऋषि के कमंडल पर कौए के रूप में आ बेठे श्रीगणेश को देख ऋषि ने उसे वहां से हटाने के लिए हाथ उठाया, पर उसी क्षण कौआ गायब हो गया और कमंडल से देवी कावेरी की धारा बहने लगी। इस तरह पवित्र सप्त सिन्धु नदियों में से एक मानी जाने वाली देवी कावेरी का जन्म हुआ। कावेरी के जन्म स्थान पर एक पवित्र कुंड बना हुआ है, इस कुंड से आगे कुछ किलोमीटर तक कावेरी भूगर्भ में बहती है। कुंड के किनारे अगस्त्य मुनि, शिवजी एवं गणपति के मंदिर में दर्शन कर भक्तगण इस पवित्र जल में स्नान करते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, मकर माह के पहले दिन इसी स्थान पर भारत भर से लोग देवी कावेरी के जन्मोत्सव मनाने तल कावेरी आते हैं। बारिश के मौसम में कावेरी नदी को एक फव्वारे की तरह निकलते देखना एक अविस्मरणीय अनुभव है।

लुभा लेगा मोरों का नृत्य

कुर्ग की घाटियां भारत के कई विलुप्त होते प्राणियों का घर भी हैं, जिन्हें आज राष्ट्रीय उद्यानों की उपाधि प्राप्त है। पुष्पगिरि, ब्रह्मगिरि, मधुमलाई, बंदीपुर और नागरहोले राष्ट्रीय उद्यान कुर्ग से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। बंदीपुर और नागरहोले उद्यान में सरकारी लॉज बुक कर जंगल के बीच रात्रिवास किया जा सकता है। यहां जंगल सफारी सुबह छह बजे से शुरू होती है। इसकी बुकिंग उद्यान की वेबसाइट पर उपलब्ध है। जंगली हाथी, बाघ, अनगिनत प्रजातियों के हिरन एवं भालू इन जंगलों में देखे जा सकते हैं। बारिश में इन जंगलो में मिट्टी की सोंधी-सी खुशबू आपको प्रकृति की गोद में होने का एहसास कराती है और सर्दियों में नर्म धूप में जलाशयों की किनारे बेठे जानवरों के नजारे भी दिखते हैं। बारिश की शुरुआत में यहां मोर अपने खूबसूरत पंखों को फैलाकर नृत्य करते हैं, ये दृश्य भी यात्रा को यादगार बनाते हैं।

कब और कैसे पहुंचे

जून से फरवरी के बीच का समय कुर्ग की यात्रा के लिए बेहतर माना जाता है। हालांकि यहां कभी भी बारिश हो जाती है, इसिलए छतरी रखना न भूलें। कर्नाटक के मैसूर शहर से कुर्ग 117 किलोमीटर दूर स्थित है। बस, कार, कैब या बाइक से कुर्ग के मुख्य शहर मदिकेरी तक पहुंचा जा सकता है। नजदीकी हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन मैसूर और बेंगलुरू में स्थित है।

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.