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ईश्वर की नगरी है अयोध्या, स्वर्ग से की जाती है इसकी तुलना

अयोध्या की गणना भारत की प्राचीन सप्तपुरियों में प्रथम स्थान पर की गई है। अथर्ववेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है और इसके संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Wed, 05 Aug 2020 11:34 AM (IST)Updated: Wed, 05 Aug 2020 11:34 AM (IST)
ईश्वर की नगरी है अयोध्या, स्वर्ग से की जाती है इसकी तुलना
ईश्वर की नगरी है अयोध्या, स्वर्ग से की जाती है इसकी तुलना

अयोध्या, एक पवित्र भूमि जिसपर खुद भगवान राम ने जन्म लिया। हिंदू पौराणिक इतिहास में पवित्र सप्त पुरियों में अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवंतिका (उज्जयिनी) और द्वारका को शामिल किया गया है। अथर्ववेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है और इसके संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। स्कंदपुराण के अनुसार अयोध्या शब्द 'अ' कार ब्रम्हा, 'य' कार विष्णु और 'ध' कार रूद्र का स्वरूप है। जानेंगे आज यहां के इतिहास के बारे में..

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अयोध्या नगरी में कई महान योद्धा, ऋषि-मुनि और अवतारी पुरुष हो चुके हैं। भगवान राम ने भी यहीं जन्म लिया था। जैन मत के अनुसार यहां आदिनाथ सहित 5 तीर्थकरों का जन्म हुआ था। अयोध्या की गणना भारत की प्राचीन सप्तपुरियों में प्रथम स्थान पर की गई है। जैन परंपरा के अनुसार भी 24 तीर्थकरों में से 22 इक्ष्वाकु वंश के थे। इन 24 तीर्थकरों में से भी सर्वप्रथम तीर्थकर आदिनाथ के साथ चार अन्य तीर्थकरों का जन्मस्थान भी यहीं हुआ है।

अयोध्या की स्थापना

पवित्र सरयू नदी के तट पर बसी है अयोध्या। बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के अनुसार सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु महाराज द्वारा अयोध्या की स्थापना की गई थी। माथुरों के इतिहास के अनुसार, वैवस्वत लगभग 6673 ईसा पूर्व हुए थे। ब्रम्हाजी के पुत्र मरीचि से कश्यप का जन्म हुआ। कश्यप से विवस्वान और विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु थे। वैवस्वत मनु के 10 पुत्र- इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध थे। इसमें इक्ष्वाकु कुल का ही ज्यादा विस्तार हुआ। इक्ष्वाकु कुल में कई महान प्रतापी राजा, ऋषि, अरिहंत और भगवान हुए हैं। इक्ष्वाकु कुल में ही आगे चलकर प्रभु श्रीराम हुए। अयोध्या पर महाभारत काल तक इसी वंश के लोगों का शासन रहा।

कैसे हुई स्थापना

अयोध्या की स्थापना के बारे में पुराणों और ग्रंथों में विस्तार से बताया गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रम्हा जी से जब मनु ने अपने लिए एक नगर क निर्माण की बात कही तो वे उन्हें विष्णुजी के पास ले गए। विष्णुजी ने उन्हें साकेतधाम में एक उपयुक्त स्थान बताया। भगवान विष्णुजी ने इस नगरी को बसाने के लिए ब्रम्हाजी तथा मनु के साथ देवशिल्पी विश्वकर्मा को भी भेज दिया। इसके अलावा अपने रामावतार के लिए उपयुक्त स्थान ढूंढने के लिए महर्षि वशिष्ठ को भी उनके साथ भेजा। इस बात की भी मान्यता है कि महर्षि वशिष्ठ द्वारा ही सरयू नदी के तट पर लीलाभूमि का चयन किया गया, जहां विश्वकर्मा ने नगर का निर्माण किया।

किसने किया शासन?

उत्तर भारत के तमाम हिस्सों में जैसे कौशल, कपिलवस्तु, वैशाली और मिथिला आदि में अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश के शासकों ने ही राज्य कायम किए थे। अयोध्या और प्रतिष्ठानपुर (झूंसी) के इतिहास का उद्गम ब्रम्हाजी के मानस पुत्र मनु से ही संबंद्ध है। जैसे प्रतिष्ठानपुर और यहां के चंद्रवंशी शासकों की स्थापना मनु के पुत्र ऐल से जुड़ी है, जिसे शिव के श्राप ने इला बना दिया था, उसी प्रकार अयोध्या और उसका सूर्यवंश मनु के पुत्र इक्ष्वाकु से प्रारंभ हुआ।


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