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    Amrit Udyan: देश के प्रथम राष्ट्रपति ने की थी मुगल गार्डन की शुरुआत, जानें इसके अमृत उद्यान बनने की कहानी

    By Ritu ShawEdited By: Ritu Shaw
    Updated: Sun, 12 Mar 2023 04:12 PM (IST)

    Amrit Udyan प्रकृति ने अपनी कोख से जिस सबसे कोमल और अद्भुत रचना को धरा पर जन्म दिया है तो वह हैं फूल। जानें राष्ट्रपति भवन में मौजूद अमृत उद्यान के इतिहास बारे में सबकुछ जहां इस बार भारी संख्या में पर्यटक पहुंचे थे।

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    Amrit Udyan: प्रथम राष्ट्ररति ने की थी मुगल गार्डन की शुरुआत, जानें इसके अमृत उद्यान बनने तक की कहानी

    नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Amrit Udyan: प्रकृति ने अपनी कोख से जिस सबसे कोमल और अद्भुत रचना को धरा पर जन्म दिया है, तो वह हैं फूल। रंग-बिरंगे फूल भले ही बेहद कोमल होते हैं, लेकिन अपनी सुंदरता, सुंगध और सद्गुणों से देखने वाले को तुरंत पराजित करके अपना बना लेते हैं। निहारने वाले इंसान को मौन कर देते हैं, कुछ पलों के लिए उसका दूसरों से संवाद टूट जाता है और उसकी भावनाओं से जन्म लेकर जब उसके मुख से शब्दों का प्रादुर्भाव होता है, तो वे बस फूलों की प्रशंसा से ओतप्रोत होते हैं। इनकी सुंदरता के आगे नतमस्तक इंसान मानों अपने शब्दों को पिरोकर माला बनाना चाहता हो और उसे फूलों को ही चढ़ाना चाहता हो।

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    अमृत का संदर्भ आपकी दीर्घ आयु और स्वास्थ्य से ही तो है और इस उद्यान में आने के बाद आपकी नजरें जहां तक जाएंगी आपके लिए सुकून, तसल्ली की अनुभूति लेकर आएंगी। फूलों से आपका रिश्ता यूं जुड़ा सा महसूस होगा…जाइए आप कहां जाएंगे, ये नजर लौट के फिर आएगी…! यहां लगे सैंकड़ों किस्म के फूलों के बीच टहलते हुए हर सांस स्वच्छ हवा का अमृत पान करने का एहसास करेगी। वैसे भी उद्यान, अृमत के समान ही आयु को बढ़ाता है। 12 माह प्रदूषण की मार से जूझते दिल्ली-एनसीआर को दो माह के लिए खुले अमृत उद्यान में प्रकृति के बीच ऐसा ही अनुभव हो रहा है। इसे नाम का परिवर्तन ही कहेंगे कि इस बार यहां पर्यटकों के आने के सारे रिकार्ड टूट रहे हैं। अब तक तकरीबन सात लाख पर्यटक आ चुके हैं। बच्चे, युवा, बूढ़े हर आयु वर्ग का प्रकृति प्रेम अद्भुत है, उल्लास है, उमंग है। फूलों के सौंदर्य की भाषा को बच्चे भी समझ रहे हैं। फूल मौन मुस्कान के साथ हैं और बच्चे उन्हें देखकर खिलखिला रहे हैं।

    उद्यान में बरसता है प्रकृति का ‘अमृत’ : प्रकृति के इस सौंदर्य को अमृत उद्यान को लोग भी देख सकें, इसकी शुरुआत देश के पहले राष्ट्रपति डा राजेंद्र प्रसाद ने ही तो की थी। उन्होंने ही राष्ट्रपति भवन में होली, दशहरा और दीवाली जैसे त्योहार सामूहिक रूप से मनाने की भी शुरुआत की थी। हिंदी नाटककार जगदीशचंद्र माथुर ने अपनी पुस्तक "जिन्होंने जीना जाना" में लिखा है कि होली पर राष्ट्रपति भवन में संगीत और रूपकों का आयोजन मुझे करना होता था। मुगल गार्डन (अब अमृत उद्यान) में अतिथियों और औपचारिकता से घिरे राजेंद्र बाबू को मैंने भोजपुरी में होली के लोक-संगीत पर झूमते देखा। वे लिखते हैं कि राष्ट्रपति भवन की दीवारें मानों गायब हो जाती, दिल्ली का वैभव भी, उत्तरदायित्व का भार भी। सुदूर भारत के जिले के देहात की हवा मस्तानों को लिए आती और ग्रामीण हृदयों का सम्राट अपनेपन को पाकर विभोर हो जाता। माथुर जी की पुस्तक की ये पंक्तियां चंद चार दिन पहले बीती होली के उल्लास को एक बार फिर झंकृत करती है। ये शब्द भले पुस्तक में हैं लेकिन इन दिनों अमृत उद्यान में गुलाब के बाग से गुजरते हुए जीवंत नजर आते हैं।

    देश के पहले राष्ट्रपति ने 15 एकड़ में बने इस उद्यान के द्वार आमजन के लिए जो खोले उसमें राष्ट्रपति द्वारा उसे और पुष्पित पल्लवित करने का क्रम चलता ही रहा है। बागवानी विभाग के अधिकारी अवनीश कुमार के मुताबिक इस उद्यान को सभी राष्ट्रपति के कार्यकाल में कुछ न कुछ नया मिलता रहा है। डा एपीजे अब्दुल कलाम ने अपने समय में यहां हर्बल उद्यान, टैक्टाइल उद्यान, आध्यात्मिक उद्यान विकसित किए थे। आध्यात्मिक उद्यान हमारे देश की सभी धर्मों की मान्यताओं को एक बगिया में एकीकृत करने की प्रेरणा है जहां कमंडल, कल्पवृक्ष के साथ आपको क्रिसमस ट्री भी नजर आएंगे। इसी तरह हर्बल यानी औषधीय उद्यान में ऐसी कोई जड़ी बूटी नहीं जो यहां नहीं उगाई जाती हो, सिर्फ पहाड़ों पर ही पल्लवित होने वाले औषधीय पौधे भी यहां से बहुत से लोगों के लिए दवा के रूप में काम आते हैं। एक तरह से आयुर्वेद का खुला संस्थान है। जहां शुगर, ब्लड प्रेशर से कैंसर तक के इलाज में उपयुक्त औषधी वाले पौधे हैं। प्रतिभा पाटिल और रामनाथ कोविन्द द्वारा भी उद्यान में कई परिवर्तन किए गए थे।

    देश-दुनिया की माटी से आए पौधों को यहां की मिट्टी, खाद, पानी से सींचना अपने आप में चुनौतीपूर्ण भी है लेकिन जिस तरह आप अपने रिश्तों से जुड़ाव महसूस करते हैं उसी तरह इनसे जुड़कर परवरिश करें तो आप हर पौधे की जरूरत को समझने लगेंगे। यहां हर माली में एक-एक पेड़-पौधे के प्रति मातृत्व वाली भावना ही रहती है। बीज से बीज तक यानी एक बीज से फल-फूल की उत्पत्ति हुई और फिर उससे बीज बनकर पौधा बना यही साइकिल यहां चलती है।

    ‘प्रभु’ कर रहे परवरिश: 40 वर्ष चार माह से अमृत उद्यान की देखरेख करने वाले माली प्रभु सिंह जिन्होंने यहां सेंट्रल लान में बैलों से जुताई भी की है। उसी सेंट्रल लान में जहां आज कोलकाता की मलमली घास लगी है और हर 26 जनवरी और 15 अगस्त को राष्ट्रपति यहीं पर झंडा फहराते हैं। 1980 के आसपास तक यहां उद्यान की देखरेख में बैल ही लगाए जाते थे। नौ बैल हुआ करते थे। प्रभु बताते हैं आज भले हम आधुनिक मशीनों से खेती करते हैं लेकिन उन दिनों बैल और तलवारों के जरिए ही यहां बागवानी करते थे। कटाई के लिए तलवार का प्रयोग होता था। मशीन होती भी तो उसमें श्रम अधिक लगता था। ये पेड़-पौधों का ये घराना बिलकुल ऐसा ही है मानों आपको कई देशों की मिट्टी, खाद, पानी में पलने, बढ़ने वालों को एक ही माटी में रहना जीना, पलना-बढ़ना सिखाना है। यहां बात बगीचे की है किसी एक फूल की नहीं। इसे बिलकुल परिवार की दृष्टि से देखते हैं तभी यहां पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी जिंदगी जीते नजर आते हैं। ये हमें संदेश भी देते हैं कि जब अलग-अलग माटी से आए बीज, पौधे यहां एक साथ मिलजुलकर समन्वयय के साथ रहते हैं तो मनुष्य क्यों नहीं? बाग-बगीचों में सबसे अधिक आकर्षण रहता है गुलाब और ट्यूलिप के प्रति। कश्मीर में तो अप्रैल में इस फूल से भरा उद्यान दिखता है लेकिन यहां फरवरी में जब अमृत उद्यान खुला था तभी से फूल खिले होते हैं। आज यहां 15 एकड़ में सारे उद्यान की देखरेख के लिए 40 से अधिक माली हैं।

    आज ये आकर्षित करता हुआ उद्यान दिख रहा है इसकी पूरी प्रक्रिया सितंबर माह से शुरू होती है और पर्यटकों के लिए फरवरी में खुलता है। प्रभु कहते हैं बाहर कितना प्रदूषण है यहां इस उद्यान में लगता है मनुष्य अधिक जीवन जीता है। 40 मालियों में आधी आबादी की भी पूरी भागीदारी रहती है, विशेषकर जब कोई नया पौधा, बीज उद्यान में आता है तो एक जननी की भांति उसकी परवरिश ये महिलाएं ही करती हैं। औषधी वाला पौधा है या सामान्य फूलों वाला सभी की देखरेख की समझ यहां अनुभव के साथ विकसित हुई है। उमा, शाइस्ता, सावित्री, सुनीता ये सभी पांच-दस साल से यहां काम कर रही हैं। कहती हैं कि बाहर ये सभी पौधे हमारी संतान समान हैं।

    अब बात गुलाब की: फूलों की चर्चा हो और गुलाब का जिक्र ना हो शायद ही ऐसा संभव हो। गुलाब की सुंदरता पर तो गीतकारों, शायरों और कवियों ने खुल कर कलम चलाई है। राष्ट्रपति भवन परिसर में स्थित अमृत उद्यान में तो गुलाब के फूलों का अपना एक अलग ही संसार है। यहां गुलाब के फूलों की इतनी विविधता है कि सचमुच नजर इनसे हटने को तैयार नहीं होती। कई पीढि़यां चल रही हैं और उसमें भी तकरीबन 138 से अधिक किस्म यहां पर हैं। काले, नारंगी से लेकर हरे गुलाब और हर गुलाब एक नाम भी लिए हुए है। अलग नाम के बारे में अवनीश कुमार बताते हैं कि ये नामकरण बिलकुल इस तरह समझिए जैसे आपके बच्चे का नामकरण पंडित जी करते हैं। मतलब आपने एक बच्चे को जन्म दिया अब आप उसका क्या नाम रखना चाहते हो ये तो आप पर निर्भर करता है। हां, गुलाब में ये अलग-अलग दिखने का फर्क कैसे समझ आता है, जानकारी का विषय है। भले नारंगी रंग के दो गुलाब दिखने में एक जैसे हैं लेकिन किसी ने उसके बीज को अलग तरह से तैयार किया किसी में पत्ते बड़े, नुकीले बन गए तो किसी में छोटे-मोटे, चौड़े, लंबे समय तक रुकने वाले बने। यही बदलाव इन्हें अलग बनाता है। यहां उद्यान में देश-दुनिया के सब गुलाब हैं।

    इस बारे में राष्ट्रपति भवन के अपर सचिव राकेश गुप्ता बताते हैं कि, इस बार अमृ्त उद्यान को डिजिटली जोड़ने से लोगों की जो प्रतिक्रिया मिल रही हैं वो बहुत लाभकारी हैं। इंटरनेट मीडिया पर प्रचारित होने से भी बहुत पर्यटक आए हैं। विशेषकर इस बार दिल्ली के ही नहीं पूर्वोत्तर तक के स्कूलों से बच्चे यहां आए हैं। लोगों के फीडबैक, सुझावों को यहां लागू भी किया जा रहा है। मसलन वीकेंड पर भीड़ अधिक होने पर लोगों के प्रवेश को लेकर व्यवस्था बढ़ाई गई है। इसके अलावा यहां आने वाले पर्यटकों के लिए क्यूआर कोड के माध्यम से हर पौधे को जानना बहुत आसान हो गया है। इस वर्ष हमने पहली बार दो माह के लिए तो इसे खोला ही था, इसके अलावा अगस्त माह में भी उद्यान को एक माह के लिए खोला जाएगा। उस समय मौसम के अनुकूल वाले पौधों को लगाया जाएगा। इसकी तैयारी मार्च के बाद से ही शुरू हो जाएगी।