खाने का स्वाद बढ़ाने के साथ-साथ यूरोपीय देशों और चीन में कुछ इस तरह से होता है नमक का इस्तेमाल
वक्त के साथ हम भले ही सिर्फ सफेद नमक को अपने स्वाद का हिस्सेदार मानते हों मगर नमक के और भी कई प्रकार हैं। जिनका उपयोग सिद्धहस्त रसोइए आवश्यकतानुसार मसाले की तरह करते हैं..
पुष्पेश पंत
हर मसालदानी में नमक का अलग हिस्सा सुनिश्चित रहता है और कोई भी इस बात से इंकार नहीं कर सकता कि नमक के अभाव में खाना फीका, नीरस और बेस्वाद हो जाता है। मगर मसाले के रूप में नमक को कौन पहचानता है? हां, चटोरे चाट के शौकीन काले नमक को दही बड़े से लेकर गोलगप्पे, पापड़ी चाट तक भुने जीरे, लाल मिर्च या खटाई से कमतर नहीं समझते। गंधक की बास वाला खटरागी कट्टरपंथियों के लिए लहसुन का विकल्प बन जाता है कुछ-कुछ हींग की तरह। काला नमक वास्तव में काला नहीं होता, गहरा गुलाबी रंगत वाला होता है और चट्टान से तोड़े छोटे टुकडे़ की शक्ल में हम तक पहुंचता है। इसीलिए अंग्रेजी में इसे 'ब्लैक रॉक सॉल्ट' कहते हैं।
टूट गया है नमक से नाता
आज हम परिष्कृत नमक खाने के इस कदर आदी हो चुके हैं कि नमक की अनेक किस्मों से हमारा नाता टूट गया है। जब डॉक्टरी सलाह पर रक्तचाप से पीडि़त या गुर्दे की बीमारी से परेशान रोगी को नमक रहित या कम सोडियम वाले नमक के सेवन की सलाह दी जाती है तभी उसे सोडियम के अलावा पोटेशियम वाले लवण अपने दोस्त लगते हैं और उसका ध्यान इनकी तरफ जाता है। इसी सिलसिले में यह बात भी बताने लायक है कि राष्ट्रपिता बापू, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में नमक सत्याग्रह कर नई क्रांति ला दी थी, स्वयं वे भी भोजन में नमक का प्रयोग नहीं करते थे।
निरापद नहीं जीवन
यूरोप के देशों में जब तक पूरब से मसाले नहीं पहुंचे थे या दुर्लभ थे तब से खाने को स्वादिष्ट बनाने के लिए नमक ही सीजनिंग के रूप में काम में लाया जाता था। बाद में इसमें भूमध्य-सागरीय देशों से आई ताजा कुटी काली मिर्च जुड़ गई। चीनी खानपान में जिस अजीनोमोटो का इस्तेमाल होता है वह भी एक लवण ही है जिसका वैज्ञानिक नाम मोनो सोडियम ग्लूटामेट है। आज इसे आसन्न प्रसंग महिलाओं तथा बच्चों के लिए हानिकारक समझा जाता है। वैसे भी चिकित्सकों की राय है कि भले ही हमारा जीवन नमक के अभाव में निरापद नहीं रह सकता, इसकी नगण्य मात्रा ही आवश्यक है जो सब्जियों व मांस-मछली में अंतíनहित अदृश्य नमक से हासिल की जा सकती है।
अलग स्वाद और फितरत
दिलचस्प बात यह है कि समुद्री लवण, चट्टानी लवण, हिमालयी गुलाबी लवण, सेंधा नमक सभी का स्वाद और फितरत में फर्क होता है और सिद्धहस्त रसोइए इनका उपयोग आवश्यकतानुसार मसाले की तरह करते हैं। आयुर्वेद में लवण भास्कर, हिंगाष्टक, दाडिमाष्टक आदि का उल्लेख मिलता है, ये सभी नमकीन मसाला मिश्रण ही हैं। यूरोप में अलग-अलग सागरों से मिलने वाले नमक को भिन्न गुणों और स्वाद वाला माना जाता है और इसे मसाले के रूप में इस्तेमाल करते वक्त इस वर्गीकरण को ध्यान में रखा जाता है। कट्टर यहूदी लोग 'कोशर' नमक को ही बेहिचक हलाल मानकर काम में लाते हैं। 18 वीं -19वीं सदी में मूर्छित व्यक्ति को होश में लाने के लिए तेज गंध वाले सुंघनी नमक (स्मैलिंग सॉल्ट) का दवाई की तरह उपयोग किया जाता था।
बेहतर खाद्य संरक्षक
फ्रांस में नमक को कुछ खास लकडि़यों (सेब, हिकौरी आदि) का धुंआर देकर मसाला बनाया जाता है, जिसका इस्तेमाल पास्ता, भुनी मछलियों तथा ब्लडी मेरी जैसे मादक पेयों में होता है। इसी देश में सुवासित नमक को 'लवण पुष्प' (फ्लर द' सेल) की उपाधि से अलंकृत किया जाता है। चीनी की तरह नमक भी असरदार खाद्य संरक्षक की श्रेणी में आता है, इसीलिए अचार-चटनी के साथ-साथ सूखे मांस-मछली के संरक्षण के लिए नमक या नमकीन घोल (ब्राइन) का इस्तेमाल किया जाता रहा है। काले-हरे जैतून हों या सारडीन मछलियां, इनका आनंद लेने के लिए नमक के अलावा किसी मसाले की जरूरत नहीं पड़ती। इस बात को भी न भूलें कि केक, बिस्कुट जैसी कुछ विलायती मिठाइयों में भी अन्य पदार्थो के स्वाद को संतुलित तथा निखारकर पेश करने के लिए नमक का प्रयोग मसाले की तरह किया जाता है।
(लेखक प्रख्यात खान-पान विशेषज्ञ हैं)
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