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    विश्व धरोहर की सूची में शामिल साइलेंट वैली है खूबसूरत से लेकर खूंखार पशु-पक्षियों का गढ़

    केरल के पलक्कड में बसी खूबसूरत साइवेंट वैली ऐसी जगह है जहां जाकर आप वेकेशन का जमकर लुत्फ उठा सकते हैं। तरह-तरह के पशु-पक्षियों और फूल-पौधों की कई वैराइटी यहां देखने को मिलती है।

    By Priyanka SinghEdited By: Updated: Mon, 11 Mar 2019 03:31 PM (IST)
    विश्व धरोहर की सूची में शामिल साइलेंट वैली है खूबसूरत से लेकर खूंखार पशु-पक्षियों का गढ़

    पलक्कड़ जिले के उत्तर-पूर्वी छोर पर स्थित साइलेंट वैली अपनी जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। उत्तर में नीलगिरि की पहाडि़यां और दक्षिण में फैले मैदान के बीच पसरी यह घाटी साइलेंट वैली के नाम से जानी जाती है। केरल के अंतिम बचे वर्षा वनों में से एक इस स्थान को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा 1984 में मिला। साल 2012 में नीलगिरि जैवमंडल को यूनेस्को ने विश्र्व धरोहर की सूची में शामिल किया। यह उद्यान उसी जैव मंडल का का एक हिस्सा है। यहां जाकर जंगल सफारी का आनंद लेते हुए इन जानवरों और विभिन्न प्रकार के अन्य पशु-पक्षियों को देखा जा सकता है।

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    साइलेंट वैली के जीव-जंतु

    साइलेंट वैली में यहां पाए जाने वाले जानवरों में हाथी, बाघ, सांभर, चीता व जंगली सुअर प्रमुख हैं। इसके साथ ही ये पूरी घाटी 1000 से भी ज्यादा फूलों से सजी हुई होती है। 110 किस्म के ऑर्किड, 200 किस्मों की तितलियां, 16 प्रजातियों के पक्षियों के साथ ही चीड़ियों की 150 प्रकार की प्रजातियां देखने को मिलती है।

    इस वजह से यहां मौजूद हैं जीव-जंतु

    दूसरे नेशनल पार्क जितनी भीड़ यहां देखने को नहीं मिलती। शांत वातावरण जीव-जंतुओं को देखने और उन्हें अपने कैमरे में कैद करने के लिए बेस्ट होता है। पश्चिमी घाट की जैव विविधता का ऐसा संग्रह कहीं और मिल पाना बहुत ही मुश्किल है। कुंती नदी, नीलगिरी पर्वत के 2000 मीटर की ऊंचाई से बहती है और घाटी से गुजरती हुई मैदानों की ओर बहती है। फिर भी इसका पानी पारदर्शी होता है।

    साइवेंट वैली का इतिहास

    कहते हैं अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां आकर भी रूके थे। स्थानीय लोग इसे सैरन्ध्रीवनम से जानते हैं। सैरन्ध्री, द्रौपदी का नाम था। लेकिन इसकी खोज 1847 में ब्रिटिश वनस्पतिशास्त्री रॉबर्ट वाइट ने की थी। लेकिन सैरन्ध्री बोल पाना उनके लिए मुश्किल होता था इसलिए उन्होंने इसका नाम साइवेंट वैली रखा।

    कब और कैसे जाएं?

    यह देश के अन्य सभी हिस्सों से जुड़ा हुआ है इसलिए यहां जाना बहुत आसान है। नजदीकी हवाई अड्डा कोयंबटूर है। वहां से आप एक से डेढ़ घंटे में पलक्कड़ पहुंच सकते हैं। शहर का अपना रेलवे स्टेशन भी है जो देश के रेल नेटवर्क से जुड़ा हुआ है। सड़क यातायात की सुविधा भी काफी अच्छी है। सरकारी और निजी दोनों ही प्रकार के वाहनों की भरमार है। सार्वजनिक परिवहन की स्थिति बहुत अच्छी है।