नवाबों की तरह शाही स्नान का लेना हो आनंद, तो भोपाल के सैकड़ों साल पुराने रॉयल हमाम का करें रूख
भापाल का रॉयल कदीमी हमाम बाहर से तो बहुत मामूली दिखता है जिसे चंद मामूली नजर आने वाले आम लोग ही चला रहे हैं लेकिन यहां नवाबी स्नान का लुत्फ ले सकते हैं।
अतीत में चहलकदमी करने सरीखा है भोपाल शहर की सैर। यहां के हर गली-मोड़ पर आप पुरानी यादों-विरासतों से रूबरू हो सकते हैं। बेगमों द्वारा बनाई मस्जिदें, स्कूल इमारतों को देखकर कदम ठिठक जाना लाजिमी है। शहर का मशहूर इलाका कमला पार्क से बड़े ताल के नजदीक और वर्धमान पार्क पास जाएं, तो आपको यहां पर नजर आएगा रॉयल कदीमी हमाम' का साइन बोर्ड। कुछ महीने पहले इस हमाम की खूब चर्चा हुई थी जो यहां मुख्य सड़क से ही नजर आ जाती है। बाहर से यह बहुत मामूली दिखता है, जिसे चंद मामूली नजर आने वाले आम लोग ही चला रहे हैं, लेकिन यहां नवाबी स्नान का लुत्फ ले सकते हैं। थोड़ा विरोधाभासी है और आज के दौर के हिसाब से रोचक भी कि सफेद रंग की इस इमारत के आसपास झुग्गीनुमा घर हैं, जो हमाम का देखभाल करने वाले परिवारों के माने जाते हैं।
पहली नजर में आपको यह इमारत एक साधारण दो कमरे का घर लग सकता है, लेकिन जब आप इससे पूरी तरह परिचित होते हैं, तो एक झटके में आपका नजरिया बदल जाता है। आपके सामने खड़ी होती है एक समृद्ध विरासत से सजी इमारत, जो कभी भोपाल के नवाबों-बेगमों का आम ठिकाना हुआ करती थी। फक्र भी होता है कि तीन सौ साल पुराना वह दौर गुजर चुका है, लेकिन इमारत आज शान से वहीं खड़ी है।
शाही स्नान की प्रक्रिया
दो कमरे में शाही स्नान की प्रक्रिया पूरी की जाती है। पहले सामान्य तापमान वाले कमरे में ग्राहक आकर बैठते हैं। फिर उन्हें गुनगुने पानी से नहलाया जाता है। इसके बाद भाप कक्ष (स्टीम रूम) में 15 से 20 मिनट तक भाप स्नान कराया जाता है। ग्राहक बताते हैं कि यह पूरी तरह वैज्ञानिक तकनीक है, जो शरीर को रिलैक्स ही नहीं करता, बल्कि त्वचा की बीमारियों या दर्द आदि से भी राहत देती है।
पैसा नहीं प्यार चाहिए
हमाम के मालिक के वंशज इसे चला रहे हैं और इस परिवार में आने वाली पीढि़यां भी इसी पेशे का चुनाव करती हैं। हालांकि समय के साथ इस परंपरा में बदलाव हुआ है। वैसे इस शाही स्नान की फीस सुनकर आप चौंक जाएंगे। स्टीम घर के प्रवेश द्वार पर ही लाल रंग की पेंट से बड़े अक्षरों में इसकी फीस लिख दी गई है। अधिकतम सौ रुपये में लोग शाही स्नान का लुत्फ लेते हैं। हालांकि यहां पांच सितारा होटल या महंगे सैलून वाले वातानुकुलित कमरे नहीं हैं पर जितनी मेहनत और कार्यकुशलता इस काम में लगती है उन्हें देखते हुए इतनी मामूली फीस का होना किसी को भी चौंका सकता है। इस बारे में पूछने पर साजिद की पत्नी मुस्कुराती हैं और बड़ी सहजता से कहती हैं, ' हम नहीं चाहते कि आम लोग इसका लाभ न उठा सकें। यह हमाम सबके लिए है, अमीर-गरीब का भेद यहां नहीं है। यदि ऐसा होता तो हम बड़े अमीर हो गए होते पर हमें पैसा नहीं प्यार चाहिए।'
यूं ही जिंदा रखेंगे अपनी पहचान
आधुनिक दौर में जब आलीशान स्पा और महंगे से महंगे प्रसाधनों से सजे सैलून का बोलबाला है, ऐसे दौर में भी यह 300 साल पुराना हमाम यह लोगों में नवाबों के दौर वाले शाही स्नान का एहसास भर रही है। तकरीबन 300 साल पुरानी इमारत को यदि बदलकर आधुनिक सैलून बना दिया जाता, तो शायद इससे लाखों की कमाई संभव थी। नाम और ब्रांड तो पहले से ही मिला है, जो आधुनिक युग की सबसे बड़ी जरूरत है, लेकिन हमाम के मालिक ऐसा नहीं चाहते। अपनी विरासत को बनाए रखने की उनकी यह जिद हैरान करती है और प्रेरित भी। जैसा कि साजिद के रिश्तेदार और हमाम के देखभाल कर रहे कर्मचारी कहते हैं, जिस रूप में है वैसा ही हमें पसंद है और लोगों को भी। कोई बदलाव की बातें नहीं करता, यह बदल जाएगा तो बचेगा क्या?
सीमा झा