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    बेमिसाल स्‍थापत्‍य! भारत की वो इमारतें जो खुद बताती हैं अपना इतिहास

    By Abhishek TiwariEdited By:
    Updated: Wed, 27 Sep 2017 12:32 PM (IST)

    भारत में कई विश्‍व प्रसिद्ध इमारते हैं। जो स्‍थापत्‍य कला का अनूठा नमूना पेश करती हैं। इन इमारतों का अपना अलग-अलग इतिहास है जो बेहद खास है।

    बेमिसाल स्‍थापत्‍य! भारत की वो इमारतें जो खुद बताती हैं अपना इतिहास

    1. ताजमहल :

    दुनिया के सात अजूबों में शामिल आगरा का ताजमहल विश्‍व प्रसिद्ध है। मुगल शासक शाहजहां ने अपनी पत्‍नी मुमताज महल की याद में इसे बनवाया था। ताजमहल मुगल वास्‍तुकला का उत्‍कृष्‍ट नमूना है। सफेद संगमरमर का बना ताज पर्यटकों को खासा आकर्षित करता है। 22 साल में बनकर तैयार हुआ ताजमहल आज भी वैसा ही चमचमाता हुआ नजर आता है। इस खूबसूरत इमारत को देखने हर साल 40 लाख लोग आते हैं। इसमें से 70 फीसदी भारतीय होते हैं।

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    2. लाल किला :

    मुगल काल से लेकर आजाद भारत तक की सभी घटनाओं का गवाह रहा दिल्‍ली का लाल किला भारत की शान है। स्‍वतंत्रता दिवस हो या गणतंत्र दिवस, जब तक इस इमारत पर तिरंगा झंडा नहीं फहरता, राष्‍ट्रीय पर्व अधूरा ही रहता है। मुगल बादशाह शाहजहां की हुकूमत में बनवाई गई इस ऐतिहासिक इमारत की बुनियाद सन् 1639 में रखी गई थी। इसके निर्माण में 9 साल का समय लगा। इसे बनाने में ज्यादातर लाल पत्थरों का इस्तेमाल किए जाने के कारण ही इसे 'लाल किला' नाम दिया गया। 

    3. कुतुब मीनार :

    दक्षिण दिल्‍ली के महरौली में स्‍िथत कुतुब मीनार ईंट से बनी विश्‍व की सबसे ऊंची मीनार है। इसकी ऊंचाई 237 फुट है। इसमें 379 सीढ़ियां हैं। भारतीय स्‍थापत्‍य कला का यह बेहतर नमूना है। साल 1192 में दिल्‍ली के प्रथम मुस्‍लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसका निर्माण करवाया था। ऐबक ने इसका आधार बनवाया था, जबकि सन 1368 में फिरोजशाह तुगलक ने इसे पूरा करवाया। कुतुब मीनार की खासियत है कि, यह बिल्‍कुल सीधी नहीं बल्‍िक हल्‍की झुकी हुई है।

    4. सांची का स्‍तूप :

    मध्‍य प्रदेश में स्‍िथत सांची का स्‍तूप प्रसिद्ध बौद्ध स्‍मारक है। सांची स्तूप बौद्ध धर्म के बारे में काफी कुछ बताता है। वैसे सांची में असंख्य बौद्ध संरचनाएं और मठ स्‍थित हैं। इन स्मारकों की संरचना तीसरी और 12वीं सदी के बीच की बताई जाती है। सांची का स्तूप यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में शामिल है। मौर्य सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर इस स्‍तूप का निर्माण करवाया था। सांची स्तूप एक अर्द्ध परिपत्र चट्टान से बना हुआ सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली स्तूप है।

    5. चारमीनार :

    चारमीनार आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण स्मारक है। चारमीनार को मुहम्मद कुली कुतुबशाह ने बनवाया था। हैदराबाद शहर प्राचीन और आधुनिक का अनोखा मिश्रण है जो देखने वालों को 400 वर्ष पुराने भवनों की भव्यता के साथ आपस में सटी आधुनिक इमारतों का दर्शन भी कराता है। चारमीनार अपनी भव्य सुंदरता के कारण बड़ी संख्या में पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। चारमीनार चार मीनारों से मिलकर बनी एक चौकोर प्रभावशाली इमारत है। इसके मेहराब में हर शाम रोशनी की जाती है जो एक अविस्मरणीय दृश्य बन जाता है।

    6. गेटवे ऑफ इंडिया :

    गेटवे ऑफ इंडिया भारत का एक ऐतिहासिक स्मारक है। यह मुम्बई में होटल ताज महल के ठीक सामने स्थित है। यह एक बड़ा सा द्वार है जिसकी उंचाई 26 मीटर (85 फीट) है। अरब सागर के समुद्री मार्ग से आने वाले जहाजों आदि के लिए यह भारत का द्वार कहलाता है। सन 1913 में किंग जार्ज पंचम और महारानी मैरी के मुंबई आगमन पर उन्‍हें सम्‍मानित करने के लिए बनवाया गया था। इसे ब्रिटिश वास्‍तुकार जार्ज विटेट ने डिजाइन किया था।

    7. इंडिया गेट :

    इंडिया गेट नई दिल्‍ली के राजपथ पर स्‍िथत 43 मीटर ऊंचा विशाल द्वार है। इंडिया गेट की नींव 1921 में ड्यूक ऑफ़ कनॉट ने रखी थी और इसे कुछ साल बाद तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने राष्ट्र को समर्पित किया था। इस स्‍मारक का निर्माण अंग्रेज शासकों द्वारा भारतीय सैनिकों की याद में बनवाया गया था। दरअसल प्रथम विश्‍व युद्ध के दौरान करीब 90 हजार भारतीय ब्रिटिश सेना में भर्ती होकर शहीद हो गए थे। इस द्वार में करीब 13 हजार सैनिकों के नाम भी लिखे गए हैं। लाल और पीले बलुआ पत्‍थरों से बना यह स्‍मारक भारत का प्रमुख दर्शनीय स्‍थल है।

    8. हवा महल :

    राजस्‍थान के जयपुर में स्‍थित हवा महल भी विश्‍व प्रसिद्ध है। इस महल का निर्माण सन 1798 में महाराजा सवाई प्रताप सिंह द्वारा करवाया गया था। यह इमारत पांच मंजिला है और ऊपर केवल डेढ़ फुट चौड़ी है। बाहर से देखने पर यह किसी मधुमक्‍खी के छत्‍ते जैसी नजर आती है। इसमें 953 बेहद खूबसूरत और आकर्षक छोटी-छोटी जालीदार खिड़कियाँ हैं, जिन्हें झरोखा कहते हैं। इन खिडकियों को जालीदार बनाने के पीछे मूल भावना यह थी कि बिना किसी की निगाह पड़े राजघराने की महिलायें इन खिडकियों से महल के नीचे झांक सकें।

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