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    क्या होती है Co-Sleeping तकनीक और किस उम्र के बाद माता-पिता को कर देना चाहिए बच्चों का बिस्तर अलग

    भारत में आमतौर पर माता-पिता अपने बच्चों को अपने साथ ही सुलाना पसंद करते हैं। इसे ही को-स्लीपिंग कहते हैं। वहीं वेस्टर्न देशों में को-स्लीपिंग को ज्यादा पसंद नहीं किया जाता। अब ऐसे में अगर आप भी जानना चाहते हैं कि इस तरीके से बच्चों को सुलाने के क्या-क्या फायदे और नुकसान हो सकते हैं। आइए जानते हैं को-स्लीपिंग के बारे में जरूरी बातें।

    By Swati Sharma Edited By: Swati Sharma Updated: Sun, 02 Feb 2025 02:59 PM (IST)
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    क्या बच्चों को साथ सुलाना है सेफ? (Picture Courtesy: Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Co-Sleeping: को-स्लीपिंग का मतलब है माता-पिता और बच्चे का एक ही बिस्तर पर या एक ही कमरे में सोना। यह तरीका भारत के साथ-साथ कई संस्कृतियों में प्रचलित है। कई लोग इस तरीके से बच्चों को सुलाना ज्यादा सुरक्षित मानते हैं, तो वहीं कुछ का मानना है कि ऐसा करना ठीक नहीं होता। आइए जानते हैं कि को-स्लीपिंग के फायदे और नुकसान क्या हो सकते हैं।

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    को-स्लीपिंग कितनी तरह के होते हैं?

    • बेड-शेयरिंग- इसमें माता-पिता और बच्चा एक ही बिस्तर पर साथ सोते हैं।
    • रूम-शेयरिंग- इसमें बच्चा और माता-पिता एक ही कमरे में अलग-अलग बिस्तरों पर सोते हैं।
    • अटैच्ड क्रिब- इसमें बच्चे का बिस्तर माता-पिता के बिस्तर से जुड़ा रहता है।

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    को-स्लीपिंग के फायदे (Co-Sleeping Benefits)

    शिशु के लिए फायदे-

    • बेहतर नींद- को-स्लीपिंग से शिशुओं को बेहतर नींद आती है, क्योंकि वे अपनी मां की सांस लेने की आवाज और दिल की धड़कन से शांत महसूस करते हैं।
    • कम रोना- जो बच्चे अपने माता-पिता के साथ सोते हैं, वे कम रोते हैं और कम तनावग्रस्त होते हैं।
    • बेहतर शारीरिक विकास- को-स्लीपिंग से शिशुओं का शारीरिक विकास बेहतर होता है, क्योंकि वे ज्यादा बार ब्रेस्टफीड होते हैं और उनका इम्यून सिस्टम मजबूत होती है।

    माता-पिता के लिए फायदे-

    • बेहतर नींद- जो माता-पिता अपने बच्चों के साथ सोते हैं, वे भी बेहतर नींद का अनुभव करते हैं, क्योंकि वे अपने बच्चों की देखभाल करने में ज्यादा आश्वस्त होते हैं।
    • मजबूत रिश्ते- को-स्लीपिंग से माता-पिता और बच्चों के बीच रिश्ता मजबूत होता है, क्योंकि वे एक-दूसरे के करीब होते हैं और एक-दूसरे की जरूरतों को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं।
    • ज्यादा सुविधाजनक- को-स्लीपिंग से रात में बच्चे की देखभाल करना ज्यादा सुविधाजनक होता है, खासकर ब्रेस्टफीड कराने वाली माताओं के लिए।

    किस उम्र तक बच्चों को साथ सुलाना चाहिए?

    इस सवाल का कोई एक जवाब नहीं है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि बच्चों को 6 महीने की उम्र तक अपने माता-पिता के साथ सोना चाहिए, जबकि कुछ अन्य विशेषज्ञ मानते हैं कि बच्चों को 2 साल की उम्र तक या उससे भी ज्यादा समय तक अपने माता-पिता के साथ सोना चाहिए।

    अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स का सुझाव है कि माता-पिता को अपने बच्चे के साथ एक ही कमरे में सोना चाहिए, लेकिन अलग बिस्तर पर, कम से कम 6 महीने की उम्र तक। इनका यह भी कहना है कि बेड-शेयरिंग शिशुओं के लिए सुरक्षित नहीं है, क्योंकि इससे SIDS (Sudden Infant Death Syndrome) का खतरा बढ़ सकता है।

    को-स्लीपिंग के नुकसान (Co-Sleeping Negative Effects)

    • SIDS का खतरा- बेड-शेयरिंग शिशुओं में SIDS का खतरा बढ़ सकता है, खासकर यदि माता-पिता स्मोक करते हैं या शराब पीते हैं, या यदि बच्चा समय से पहले पैदा हुआ है या कम वजन का है।
    • दुर्घटनाओं का खतरा- बेड-शेयरिंग शिशुओं में बिस्तर से गिरने या माता-पिता द्वारा गलती से दब जाने का खतरा भी होता है।
    • पर्सनल स्पेस की कमी- को-स्लीपिंग से माता-पिता को उनका पर्सनल स्पेस नहीं मिल पाता है और इससे उनकी सेक्स लाइफ पर असर पड़ सकता है।
    • बच्चे की निर्भरता- कुछ बच्चों को अपने माता-पिता के साथ सोने की आदत लग सकती है और आगे चलकर वे अकेले सोने में परेशानी महसूस कर सकते हैं।

    इन बातों का ध्यान रखें

    • अगर आप बेड-शेयरिंग करते हैं, तो इस बात का जरूर ध्यान रखें कि आपका बिस्तर सुरक्षित है और बच्चा गिरने या दबने से सुरक्षित है।
    • अगर आप स्मोक करते हैं या शराब पीते हैं, तो अपने बच्चे के साथ न सोएं।
    • यदि आपका बच्चा समय से पहले पैदा हुआ है या कम वजन का है, तो बेड-शेयरिंग से बचें।
    • यदि आप को-स्लीपिंग के बारे में कोई चिंता है, तो अपने डॉक्टर से बात करें।

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