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    कहीं आपका प्यार बच्चे को बिगाड़ तो नहीं रहा? जानें क्यों लाडले को 'ना' कहना भी जरूरी

    हर माता-पिता चाहते हैं क‍ि वो अपने बच्चों की हर इच्छा काे पूरा करें। ऐसा करने का वाे हमेशा प्रयास भी करते हैं लेकिन कई बार ऐसा न कर पाने पर खुद को दोषी भी मानते ह‍ैं। बच्चों को हर चीज आसानी से मिलने पर वे चीजों की कीमत भूल जाते हैं। इसल‍िए बच्चों को ना कहना भी जरूरी है।

    By aarti tiwari Edited By: Vrinda Srivastava Updated: Mon, 18 Aug 2025 01:31 PM (IST)
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    क्या है Parenting का सही तरीका (Image Credit- Freepik)

    आरती तिवारी, नई द‍िल्‍ली दिल्ली। माता-पिता का प्रयास होता है कि बच्चों की हर इच्छा पूरी कर दें। कभी उनके हित तो कभी किसी असमर्थता के कारण जब वे ऐसा करने में चूक जाते हैं तो महसूस करने लगते हैं खुद को दोषी। पैरेंटिंग कोच रितु सिंगल मानती हैं कि यह ऐसा जाल है, जिसमें पैरेंट्स जाने-अनजाने में फंस जाते हैं।

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    कोच ने बताया क‍ि मेरी दोस्त की बेटी ने इस साल कॉलेज में एडमिशन लिया, तो उसने पहली कार के लिए एक महंगी गाड़ी की जिद पकड़ ली। घर में रोज झगड़े होने लगे और इसका हल निकला माता-पिता के ऊपर ईएमआइ के बढ़े हुए बोझ के रूप में। एक बार मैं अपनी दोनों बेटियों और एक दोस्त के परिवार के साथ एक मेले में गई। झूले की एक टिकट सिर्फ 10 रुपये की थी, तो एक चक्कर लगाने के बाद बच्चे ‘एक बार और’ की रट लगाने लगे।

    हर इच्छा पूरी नहीं होती

    मेरी दोस्त तुरंत पर्स निकालने लगी, लेकिन मैंने अपनी बेटियों से कहा, ‘आज के लिए एक बार झूला काफी है। अब चलो हम आइसक्रीम खाते हैं।’ यहां बात 10 रुपये की नहीं, बल्कि बच्चों को जिंदगी की हदों को समझाने को लेकर थी क्योंकि जिंदगी में हर बार हमारी हर इच्छा पूरी नहीं होती। उस दिन मेरी बेटियों ने समझा कि खुशी की भी एक सीमा होती है।

    बच्‍चों को वाे दें, जो जरूरी हाे

    यह सबक उन्हें आज तक याद है। दरअसल आज माता-पिता सबसे अच्छा देने की कोशिश में सब कुछ देने की मजबूरी की गिरफ्त में आ चुके हैं। उन्हें डर रहता है कि अगर वो बच्चों की जिद पूरी नहीं करेंगे, तो शायद अच्छे माता-पिता नहीं कहलाएंगे। जबकि सही तरीका ये है कि बच्चों को वह दो, जिसकी उन्हें सच में जरूरत है, न कि वह जिससे हमारा गिल्ट कम हो।

    कीमती सबक है मनाही

    बच्चों की किसी जिद पर आपकी असहमति बच्चों को असल दुनिया के लिए तैयार करती है। आपके द्वारा ‘ना’ कहने से बच्चों को निराशा का सामना करना आता है, जिससे वे भविष्य में आने वाली मुश्किलों के लिए तैयार हो पाते हैं। जब बच्चों को हर चीज बस पलक झपकते ही या बिना किसी मांग के ही मिलने लगती है, तो वे उन चीजों की कीमत समझना भूल जाते हैं, जो उनके पास पहले से हैं या जो मिल रहा है।

    बच्‍चों काे द‍िखाएं सही रास्‍ता

    कई बार बच्चों को मना करने या उन्हें अपनी इच्छाओं पर काबू पाने का आपका यह तरीका आप में ही पश्चाताप की अग्नि प्रज्‍ज्वलित कर सकता है, मगर आपको समझना होगा कि यह मनाही बच्चे के लिए कीमती सबक के समान है। हमें बच्चों की इच्छाएं पूरी करनी चाहिए, लेकिन समझदार माता-पिता वही हैं जो बच्चों का मार्गदर्शन करते हैं, न कि उनकी हर जिद को पूरा करके भविष्य की नींव कमजोर करते जाते हैं।

    संकोच करने की क्या बात

    बच्चों को ‘ना’ कहने का मतलब ये नहीं कि आप उनसे प्यार नहीं करते। इसका मतलब है कि आप उन्हें जिंदगी के लिए तैयार कर रहे हैं। जिस तरह खाने में नमक कम हो, तो बेस्वाद लगता है और ज्यादा हो, तो भी बेकार हो जाता है, उसी तरह पैरेंटिंग भी है। प्यार की कमी तो बिल्कुल नहीं होनी चाहिए, लेकिन अगर यह ज्यादा हो जाए, तो बच्चों की परवरिश खराब कर देता है। इसलिए, ‘ना’ कहने में संकोच न करें, क्योंकि यह प्यार का सबसे बड़ा और सच्चा रूप है।

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