जेन अल्फा के स्लैंग्स बनें पेरेंट्स के लिए सिरदर्द, एआई भी नहीं समझ पा रहा है इमोजी के सीक्रेट कोड
वक्त के साथ-साथ लोगों की बोलचाल में काफी बदलाव आया है। सबसे बड़ा बदलाव जेन अल्फा की बोली में आया है। अब ये स्लैंग्स और इमोजी की भाषा में बात करते हैं जिन्हें पेरेंट्स के लिए समझना काफी मुश्किल होता है ( Gen Alpha Slang Decoding)। सिर्फ पेरेंट्स ही नहीं बल्कि एआई के लिए भी इन स्लैंग्स और इमोजी के मतलब समझना मुश्किल हो रहा है।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। आज के डिजिटल दौर में जेन अल्फा (2010 के बाद जन्मी पीढ़ी) सोशल मीडिया और गेमिंग प्लेटफॉर्म्स पर अपनी अलग भाषा बना चुकी है। स्लैंग्स (Gen Alpha Slang) और इमोजी (Emoji Secret Code) उनके लिए सिर्फ मजे का जरिया नहीं हैं, बल्कि कई बार इन्हें छुपकर एक-दूसरे को नीचा दिखाने या बुली करने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।
जी हां, सोशल मीडिया पर कई बार वे एक-दूसरे के पोस्ट के नीचे ऐसे कॉमेंट भी करते हैं, जो पेरेंट्स को समझ नहीं आता, लेकिन बच्चों की भाषा में वे एक-दूसरे को नीचा दिखा रहे होते हैं या बुली करते हैं।
पेरेंट्स और एआई की मुश्किल
समस्या यह है कि पेरेंट्स ही नहीं, बल्कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) भी इन स्लैंग्स और इमोजी का सही मतलब समझने में नाकाम रहते हैं (AI Comprehension Gap)। बच्चों के लिए यह एक तरह का सीक्रेट कोड है, जिसे वे तुरंत पकड़ लेते हैं, जबकि बड़े लोग अक्सर कन्फ्यूज हो जाते हैं।
खतरनाक स्लैंग्स और उनके मतलब
इसे आप कुछ उदाहरण की मदद से समझ सकते हैं, जैसे-
- “KYS”- पहले इसका मतलब था Know Yourself, लेकिन अब बच्चे इसका इस्तेमाल Kill Yourself के तौर पर करते हैं और पेरेंट्स के लिए यह समझना मुश्किल हो जाता है।
- “Bop”- यह शब्द किसी लड़की को बदनाम या कैरेक्टर पर सवाल उठाने के लिए कहा जाता है।
- किडनी बीन्स इमोजी- दिखने में मासूम इमोजी, लेकिन जेन अल्फा में यह incel (ऐसा व्यक्ति जो खुद को अनैच्छिक रूप से ब्रह्मचारी मानता है) का कोड बन गया है।
- स्कल इमोजी- पहले जोक या किसी फनी बात के लिए इस्तेमाल होता था। अब अगर कोई “You ate that up” लिखे और साथ में यह इमोजी लगा दे, तो इसका मतलब होता है मजाक उड़ाना – “क्या लूजर है।”
बच्चों और बड़ों की समझ का फर्क
एक रिसर्च के दौरान पाया गया कि-
- 92% जेन अल्फा बच्चे स्लैंग्स और इमोजी के खतरनाक मतलब पहचान लेते हैं।
- वहीं पेरेंट्स औसतन सिर्फ एक-तिहाई ही पकड़ पाते हैं।
- AI मॉडल्स भी बहुत पीछे रह गए और सबसे अच्छा मॉडल भी सिर्फ 42% सही पहचान पाया।
क्यों है ये चिंता की बात?
- ऑनलाइन सेफ्टी- जब पेरेंट्स बच्चों की भाषा नहीं समझ पाएंगे, तो वे समय रहते बुलिंग, ऑनलाइन प्रिडेशन या डिप्रेशन के संकेतों को नहीं पकड़ पाएंगे।
- तेजी से बदलते कोड- ये स्लैंग्स और इमोजी जल्दी आते-जाते रहते हैं। जो आज पॉपुलर है, कल गायब हो जाएगा और नया आ जाएगा। यही वजह है कि पेरेंट्स हमेशा पीछे रह जाते हैं।
आगे का रास्ता
विशेषज्ञों का मानना है कि पेरेंट्स को टेक्नॉलजी और बच्चों की भाषा के बारे में अपडेटेड रहना चाहिए। कुछ ऐप्स और सर्वे ऐसे बनाए जा रहे हैं, जो पेरेंट्स को नए स्लैंग्स और इमोजी समझने में मदद कर सकें।
कुल मिलाकर, जेन अल्फा की डिजिटल भाषा सिर्फ मजेदार या ट्रेंडी नहीं है, बल्कि इसमें छुपे खतरे भी हैं। बच्चों को तो ये कोड तुरंत समझ आते हैं, लेकिन पेरेंट्स और यहां तक कि AI के लिए भी यह “कोड ब्रेकिंग” से कम नहीं है। इसलिए जरूरी है कि पेरेंट्स इस बारे में बच्चों से खुलकर बात करें और उनकी भाषा समझने की कोशिश करें, ताकि साइबर-बुलिंग जैसे खतरों से वे बच्चों को बचा सकें और उनकी मदद कर सकें।
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