पढ़ाई या नौकरी के लिए दूर गए हैं बच्चे? खालीपन से उबरने के लिए माता-पिता अपनाएं ये 5 तरीके
कभी पढ़ाई तो कभी करियर या किसी अन्य कारण से बच्चे घर से दूर चले जाते हैं तो माता-पिता परेशान हो उठते हैं। जबकि सारी तैयारी तो इसी दिन के लिए थी कि वे सफलता का आसमान छुएं। मनोवैज्ञानिक व फैमिली कांउसलर डॉ. दीपाली बत्रा बता रही हैं कि सही सोच और तैयारी के साथ आसानी से संभाला जा सकता है इस स्थिति को...
आरती तिवारी, नई दिल्ली। जैसे कोई पक्षी अपने बच्चों के उड़ जाने के बाद घोंसले को खाली पाता है, कुछ-कुछ वैसा ही महसूस करते हैं माता-पिता। जब बच्चे बड़े होकर पढ़ाई या करियर के लिए घर से दूर जाते हैं, तो कई माता-पिता खुद को अकेला और उदास महसूस करते हैं। इसे एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम कहा जाता है। यह कोई बीमारी नहीं है, बल्कि स्वाभाविक भावनात्मक प्रतिक्रिया है। यह खास तौर पर उन लोगों को ज्यादा प्रभावित करता है जिनकी पहचान और दिनचर्या बच्चों की देखभाल के इर्द-गिर्द ही सिमट जाती है। ऐसे में कैसे तैयार करें स्वयं को व दें दूर जा चुके बच्चों के साथ अपने रिश्तों को एक नई उड़ान।
भावनात्मक रूप से हों तैयार
यह समझना बहुत जरूरी है कि बच्चे का आगे बढ़ना उसके करियर और व्यक्तिगत विकास के लिए जरूरी है। माता-पिता को भावनात्मक रूप से इस बदलाव के लिए तैयार रहना चाहिए। जब आप यह स्वीकार कर लेंगे कि बच्चे का दूर जाना उसकी ग्रोथ के लिए आवश्यक है, तो आप इस बदलाव को सकारात्मक रूप से देख पाएंगे।
अपनी जिंदगी को फिर से संवारें
आपने अब तक अपनी सारी जिंदगी सिर्फ बच्चों के इर्द-गिर्द गुजारी। अब जब वे अपनी उड़ान पर निकल गए हैं तो इसे उदासी नहीं बल्कि अवसर के तौर पर देखें। बच्चों को पीछे खींचने के बजाय स्वयं आगे बढ़ें। यह समय है जब आप अपनी हाबीज, लक्ष्यों और नए रूटीन पर ध्यान दे सकते हैं। अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ समय बिताएं। अपने साथी के साथ आपसी संबंधों को और मजबूत करें। साथ में टहलने जाएं, योग करें या साझा पसंद की कोई गतिविधि शुरू करें। जब आप स्वयं खुश और व्यस्त रहेंगे, तो बच्चों पर आपकी निर्भरता कम होगी और वे भी आपको देखकर खुश होंगे।
ऐसे बनेगा रिश्ता मजबूत
बच्चे छुट्टियों या त्योहार के लिए आते हैं तब तक तो घर हरा-भरा लगता है। मगर इन कुछ दिनों में भी वे आपके साथ थोड़ा समय ही बिता पाते हैं। शेष समय दोस्तों और उनके अपने कामों में निकल जाता है और इतने में गिनती भर छुट्टियां खत्म हो जाती हैं। यहां ध्यान रखें कि बच्चों के साथ बिताए गए समय की मात्रा से ज्यादा उसकी गुणवत्ता पर ध्यान दें। जब भी आप साथ हों, ऐसा माहौल बनाएं, जहां वे बिना किसी डर या रोक-टोक के अपनी बातें साझा कर सकें। एक-दूसरे को सुनें और समझें। पैरेंटिंग का असली मकसद एक ऐसा रिश्ता बनाना है जहां बच्चा और माता-पिता दोनों ही सुरक्षित महसूस करें। एक ऐसा बंधन जिसमें प्यार, सम्मान और आपसी समझ हो। जब बच्चा सुरक्षित और माता-पिता के जीवन में महत्वपूर्ण महसूस करता है, तो यह रिश्ता लंबे समय तक चलता है। माता-पिता को अपने बच्चों के प्रति अधिकार जताने के बजाय, उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
बेहतर हो संवाद
जब बच्चे दूर होते हैं, तो संचार बहुत जरूरी हो जाता है। बच्चे टेकसैवी हो रहे हैं तो जीवन में आई इस दूरी को कम करने के लिए टेक्नोलाजी का उपयोग करें। इंटरनेट मीडिया पर जुड़ें, वाट्सएप पर फैमिली ग्रुप बनाएं, अपने दैनिक क्रियाकलापों की विशेष तस्वीरें और वीडियो साझा करें, लेकिन यह भी समझें कि बच्चे हमेशा उपलब्ध नहीं हो सकते हैं। अगर वे फोन का जवाब नहीं दे पाते हैं, तो इसे व्यक्तिगत रूप से न लें। नकारात्मक सोच जैसे ‘मेरा बच्चा मुझे भूल गया’, ‘मैं अब उसके लिए जरूरी नहीं हूं’ या ‘अब उसे मुझसे बात करना तक पसंद नहीं’ जैसी बातें सोचने या बोलने से बचें। उनसे बातचीत करते समय उनकी दिनचर्या के बारे में पूछें और उन्हें महसूस कराएं कि आप उन्हें बिना जज किए सुन रहे हैं।
पेशेवर मदद से क्या हिचकिचाना
अगर आप खुद को बहुत अकेला और उदास महसूस कर रहे हैं और चीजें संभाल नहीं पा रहे हैं, तो किसी विशेषज्ञ से मदद लेने में संकोच न करें। मनोवैज्ञानिक से बात करना आपको इस स्थिति से निकालने में मदद कर सकता है। बच्चों का घर से जाना जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा है। यह माता-पिता के लिए अपनी जिंदगी में एक नया अध्याय शुरू करने का अवसर है और आप बच्चों के साथ एक मजबूत, स्वस्थ रिश्ता बनाए रख सकते हैं।
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