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    ...जब बाघा जतिन के किशोर साथी अंग्रेजों से भारत को मुक्ति दिलाने की मंशा से हुए थे संगठित

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Fri, 24 Jun 2022 03:43 PM (IST)

    Azadi Ka Amrit Mahotsav जब भोलानाथ चटर्जी ने पुलिस के हाथ पडऩे से पहले ही आत्महत्या कर ली। मार्टिन अमेरिका भाग निकले पर वहां गिरफ्तार कर लिए गए बाद में फरारी जीवन में वह एमएन राय हो गए।

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    Azadi Ka Amrit Mahotsav: ज्योतींद्रनाथ मुखर्जी को बाघा जतिन

    ज्योतींद्रनाथ मुखर्जी को बाघा जतिन के नाम से जाना जाता है, क्योंकि किशोरावस्था में उन्होंने गांव में घुस आए हिंसक बाघ को अकेले ही मार डाला था। ओडिशा के ज्योतींद्रनाथ (6 दिसंबर, 1879-10 सितंबर 1915) के नेतृत्व में एक किशोरों व नवयुवकों का दल अंग्रेजों से भारत को मुक्ति दिलाने की मंशा से संगठित हुआ। उन्होंने क्रांति की योजनाएं बनानी शुरू कर दीं। 1914 के अंत में पुलिस को यह खुफिया रिपोर्ट अंग्रेज अधिकारियों ने दी कि एक स्वदेशी कपड़े की दुकान के हिस्सेदार ज्योतींद्रनाथ मुखर्जी, अमरेंद्र चटर्जी, रामचंद्र मजूमदार, अतुल घोष और नरेन भट्टाचार्य बड़ी तादाद में अस्त्र-शस्त्र इकट्ठे कर अंग्रेजों के विरुद्ध षड्यंत्र कर रहे हैं। यूरोप से बंबई लौटे जितेंद्रनाथ लाहिड़ी ने कहा -अस्त्र शस्त्रों की प्राप्ति के लिए जर्मनों से बात करने एक एजेंट को बटेविया भेजा जाए।

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    नरेन भट्टाचार्य बटेविया भेज दिए गए, वहां जाकर उन्होंने अपना नाम सीए मार्टिन रखा। वहां उनकी जान पहचान जर्मन काउंसिल थियोडोर हेलफेरिख से कराई गई। उन्होंने बताया कि शस्त्र लेकर एक जहाज कराची रवाना हो रहा है। मार्टिन ने उनसे कहा कराची के बजाय जहाज को बंगाल भेजें और सुंदर वन के रायमंगल नामक स्थान पर शस्त्र उतारें, जहां बंगाल में सक्रिय क्रांतिकारी उनका सही उपयोग करेंगे। जहाज रायमंगल की ओर मोड़ दिया गया। जहाज में तीस हजार रायफलें, कारतूस और दो लाख की धनराशि थी। मार्टिन यह खबर लेकर बंगाल लौट आए और दल के नेता बाघा जतिन के किशोर व नवयुवक साथी जद्गोपाल मुखर्जी, भोलानाथ चटर्जी, अतुल घोष, नरेन भट्टïाचार्य आदि अपने नेता के साथ मैवरिक जहाज से माल उतारने के बंदोबस्त में लग गए।

    तय हुआ कि माल तीन हिस्सों में तीन जगह उतारा जाए। बंगाल के पूर्वी जिलों के लिए हटिया में। शेष बंगाल के लिए बालासोर में और तीसरा भाग कलकत्ता के लिए कलकत्ता में। बाहर से अंग्रेजी फौज के आने का उन्हें डर था, इसलिए उन्हें रास्ता रोकने के लिए तीन रेल मार्गों के पुल उड़ाना था। इसके लिए भी साथी भेज दिए। यतींद्र को मद्रास से आने वाली रेल को रोकने का काम दिया गया। नरेन चौधरी और फणींद्र चक्रवर्ती को हटिया भेज दिया गया, जहां माल उतारने के लिए एक जत्था जाने वाला था। नरेन भट्टाचार्य और विपिन गांगुली के नेतृत्व में एक दल कलकत्ता के पास अस्त्रागार पर कब्जा लेने के लिए रवाना हो गया। यह दल फोर्ट विलियम पर धावा बोल, फिर कलकत्ता को कब्जे में लेने की योजना बनाने लगा। भोलानाथ चटर्जी चक्रधरपुर पुल उड़ाने के लिए चले गए। रायमंगल पर माल उतारने के लिए जगद्गोपाल मुखर्जी वहां पहले भेजे गए कि प्रारंभिक व्यवस्था करें। पुलिस को बाघा जतिन की तलाश थी, इसलिए रायमंगल जाने के लिए वह पहले ही बालासोर में जाकर छिप गए थे। चित्तप्रिय चौधरी, ज्योतिषचंद्र पाल, मनोरंजन सेनगुप्ता, नरेंद्र दासगुप्ता आदि कुछ साथी मुख्य स्थल पर बाघा की मदद के लिए तैनात थे।

    मैवरिक जहाज रात को रायमंगल के पास समुद्र में आने वाला था। ये पांच साथी नाव से वहां जा पहुंचे, पर पांच दिन तक भूखे, थके ये लोग परेशान हो गए, न मैवरिक पहुंचा, न बटेविया से मार्टिन का कोई संदेश, जो अस्त्र शस्त्र लेने वहां दोबारा भेजे गए थे। लेकिन भूखे-थके क्रांतिकारियों को अचानक पुलिस की टुकड़ी ने घेर लिया। तीन घंटे आमने सामने चले युद्ध में दर्जनों पुलिसवाले मार गिराए गए। क्रांतिकारी बहादुरी से लड़े। अंतत: उनकी गोलियां खत्म हो गईं। चित्तप्रिय चौधरी पहले शहीद हुए, नेता बाघा जतिन छह गोलियां खाकर अस्पताल पहुंच गए और 10 सितंबर, 1915 को मृत्यु हो गई।

    ज्योतिषपाल, मनोरंजन सेनगुप्ता और नरेंद्र दासगुप्ता घायल होकर गिरफ्तार हुए। मनोरंजन और नरेंद्र को बाद में 22 नवंबर, 1915 को फांसी दे दी गई। ज्योतिष 14 साल की जेल की सजा पाकर अंडमान गए, जहां अत्याचार सहते-सहते वे पागल हो गए। बरहामपुर जेल में चार दिसंबर, 1924 को चल बसे। भोलानाथ चटर्जी ने पुलिस के हाथ पडऩे से पहले ही आत्महत्या कर ली। मार्टिन अमेरिका भाग निकले, पर वहां गिरफ्तार कर लिए गए, बाद में फरारी जीवन में वह एमएन राय हो गए।

    पुस्तक क्रांतिकारी किशोर से साभार संपादित अंश