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The Special Relation Between Durga Puja And Bengal: बंगाल और दुर्गा पूजा में क्या है खास रिश्ता!

Relation Between Durga Puja And Bengal त्योहार की धूम देश के लगभग हर शहर में देखने को मिलती है लेकिन सबसे ज्यादा खूबसूरत परंपरा जहां नज़र आती है वह है पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा।

By Ruhee ParvezEdited By: Published: Tue, 01 Oct 2019 03:42 PM (IST)Updated: Wed, 02 Oct 2019 09:02 AM (IST)
The Special Relation Between Durga Puja And Bengal: बंगाल और दुर्गा पूजा में क्या है खास रिश्ता!
The Special Relation Between Durga Puja And Bengal: बंगाल और दुर्गा पूजा में क्या है खास रिश्ता!

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। The Special Relation Between Durga Puja And Bengal:  दुर्गा पूजा या नवरात्रि के दौरान 9 दिन तक देश भर में जो रौनक देखने को मिलती है वो सभी के दिलों को सुकून पहुंचाती है। इस त्योहार की धूम उत्तरी भारत के लगभग हर शहर में देखने को मिलती है लेकिन सबसे ज्यादा आकर्षक और खूबसूरत परंपरा जहां नज़र आती है वह है पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा। शहर में आपको चारों तरफ भव्य पंडाल, पूजा की पवित्रता, रंगों की छटा, तेजस्वी चेहरों वाली देवियां, सिंदूर खेला, धुनुची नाच जैसे नज़ारे देखने को मिलते हैं। 

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कोलकाता के साथ पूरे पश्चिम बंगाल को दुर्गा पूजा के दौरान भव्य पंडाल और रंगों की छटा खास बनाते हैं। इस त्योहार के दौरान यहां का पूरा माहौल शक्ति की देवी दुर्गा के रंग में रंगा नज़र आता है। बंगाली हिंदू दुर्गा पूजा को सबसे बड़ा उत्सव मानते हैं।

ये 9 चीज़ें बनाती हैं बंगाल की दुर्गा पूजा को खास

देवी की मूर्ति 

कोलकाता में नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के महिषासुर मर्दिनी स्वरुप को पूजा जाता है। दुर्गा पूजा पंडालों में मां दुर्गा की प्रतिमा महिसासुर का वध करते हुए देखी जा सकती है। देवी त्रिशूल को पकड़े हुए होती हैं और उनके चरणों में महिषासुर नाम का असुर होता है। देवी के पीछे उनका वाहन शेर भी होता है। दुर्गा के साथ सरस्वती, लक्ष्मी, गणेश और कार्तिकेय की प्रतिमाएं भी बनाई जाती हैं। इस पूरी प्रस्तुति को चाला कहा जाता है। 

चोखूदान

यह परंपरा कोलकाता में दुर्गा पूजा के लिए चली आ रही परंपराओं में सबसे पुरानी है। 'चोखूदान' के दौरान दुर्गा की आंखों को चढ़ावा दिया जाता है। इन देवी-देवताओं की मूर्तियों यानि 'चाला' को बनाने में 3 से 4 महीने का समय लगता है। इसमें दुर्गा की आंखों को आखिर में बनाया जाता है।

अष्टमी पुष्पांजलि 

कोलकाता में नवरात्रि के 8वें दिन अष्टमी पुष्पांजलि का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग दुर्गा को फूल अर्पित करते हैं। इसे मां दुर्गा को पुष्पांजलि अर्पित करना कहा जाता है। बंगाली चाहे किसी भी कोने में रहे, पर अष्टमी के दिन सुबह-सुबह उठ कर दुर्गा को फूल ज़रूर अर्पित करते हैं।

पारा और बारिर पूजा 

कोलकाता की दुर्गा पूजा की खास बात यह है कि वहां ये त्योहार सिर्फ पंडालों तक ही सीमित नहीं रहता। यहां लोग दो तरह की दुर्गा पूजा करते हैं। एक जो बहुत बड़े स्तर पर मनाई जाती है, जिसे पारा कहा जाता है और दूसरा बारिर जो घर में मनाई जाती है। पारा का आयोजन पंडालों और बड़े-बड़े सामुदायिक केंद्रों में किया जाता है। वहीं दूसरा बारिर का आयोजन कोलकाता के उत्तर और दक्षिण के क्षेत्रों में किया जाता है।

कुमारी पूजा 

कोलकाता में संपूर्ण पूजा के दौरान देवी दुर्गा की पूजा विभिन्न रूपों में की जाती है इन रूपों में सबसे लोकप्रीय रूप है- कुमारी। इसमें देवी के सामने कुमारी की पूजा की जाती है। यह देवी की पूजा का सबसे शुद्ध और पवित्र रूप माना जाता है। देवी के इस रूप की पूजा के लिए 1 से 16 वर्ष की लड़कियों का चयन किया जाता है और उनकी पूजा आरती की जाती है।

संध्या आरती

संध्या आरती का इस दौरान खास महत्व है। कोलकाता में संध्या आरती की रौनक इतनी चमकदार और खूबसूरत होती है कि लोग इसे देखने दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं। बंगाली पारंपरिक परिधानों में सजे-धजे लोग इस पूजा की भव्यता और सुंदरता और बढ़ा देते हैं। संध्या आरती 9 दिनों तक चलने वाले त्योहार के दौरान रोज़ शाम को की जाती है। संगीत, शंख, ढोल, नगाड़ों, घंटियों और नाच-गाने के बीच संध्या आरती की रस्म पूरी की जाती है।

सिंदूर खेला 

दशमी के दिन पूजा के आखिरी दिन महिलाएं सिंदूर खेला मनाती हैं। इसमें वह एक-दूसरे को सिंदूर से रंगा जाता है। और इसी के साथ अंत होता है इस पूरे उत्सव का। 

धुनुची नाच 

धुनुची नाच असल में शक्ति नृत्य है। बंगाल परम्परा का हिस्सा यह नृत्य मां भवानी की शक्ति और ऊर्जा बढ़ाने के लिए किया जाता है। पुराणों के अनुसार, क्योकि महिषासुर बहुत ही बलशाली था उसे कोई नर, देवता मार नहीं सकता था। मां भवानी उसका वध करने जाती हैं। इसलिए मां के भक्त उनकी शक्ति और ऊर्जा बढ़ाने के लिए धुनुची नाच करते हैं। धुनुची में कोकोनट कॉयर और हवन सामग्री (धुनो) रखा जाता है। उसी से मां की आरती की जाती है। धुनुची नाच सप्तमी से शुरू होता है और अष्टमी और नवमी तक चलता है।

विजय दशमी 

दुर्गा पूजा का आखिरी दिन यानि दशमी को विजय दशमी मनाई जाती है। इस दिन बंगाल की सड़कों में हर तरफ सिर्फ भीड़ ही भीड़ दिखती है इस दिन यहां दुर्गा की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है, और इस तरह दुर्गा अपने परिवार के पास वापस लौट जाती हैं। 


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