Pride Month: जून में ही क्यों मनाया जाता है प्राइड मंथ, जानें कब से हुई इसकी शुरुआत
Pride Month जून महीने को पूरी दुनिया में प्राइड मंथ के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान सतरंगी झंडे लेकर समलैंगिक लोग अलग-अलग जगहों पर परेड निकालते हैं और समाज में अपने लिए बराबरी की मांग करते हैं।

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Pride Month: दुनिया भर में जून के महीने को प्राइड मंथ के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर को विशेष रूप से LGBTQ+ समुदाय के लोग मनाते हैं, लेकिन अब इसमें आम लोग भी शामिल होकर उन्हें अपना समर्थन देने लगे हैं। वहीं भारत के साथ-साथ दुनिया भर में भारी संख्या में ऐसे लोग मौजूद हैं, जो LGBTQ+ समुदाय के लोगों को अजीबो-गरीब नजरों से देखते हैं और उन्हें पूरी तरह से नहीं स्वीकारते।
यही वजह है कि इस समुदाय के लोग अपने अस्तित्व को समाज में बराबरी का हिस्सा दिलाने के लिए अलग-अलग जगहों पर रेंबो फ्लैग के साथ परेड निकालते हैं, ताकि उनके साथ होने वाले भेदभाव को कम किया जा सके। भारत के भी कई शहरों में अलग-अलग कार्यक्रमों के जरिए प्राइड मंथ सेलीब्रेट किया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसकी शुरुआत कैसे हुई होगी? आज हम इसी के इतिहास के बारे में जानेंगे।
कबसे हुई प्राइड मंथ की शुरुआत?
समलैंगिक अधिकारों के आंदोलन की जड़ें 1900 के दशक की शुरुआत में मिलती हैं, इससे पहले शायद ही किसी ने इसके खिलाफ आवाज उठाई थी। जब कुछ लोगों ने मिलकर उत्तरी अमेरिका और यूरोप में गे और लेस्बियन संगठनों जैसे सोसाइटी फॉर ह्यूमन राइट्स की शुरुआत की, जिसकी स्थापना 1920 के दशक में शिकागो में हेनरी गेरबर ने की थी।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, मैटाचाइन सोसाइटी और डॉटर्स ऑफ बिलिटिस ने मिलकर गे और लेस्बियन लोगों के प्रति सकारात्मकता को फैलाने के लिए समाचार पत्र प्रकाशित किए और समलैंगिक लोगों की तरफ होने वाले भेदभाव को रोकने और समाज में उन्हें मान्यता देने के प्रति मुखरता से आवाज उठाई।
समलैंगिक लोगों का जीवन बदल देने वाली रात
विश्व युद्ध के बाद के कुछ सालों में हुए प्रगति के बावजूदLGBTQ+ लोगों को बुनियादी नागरिक अधिकारों के लिए काफी परेशानी झेलनी पड़ती थी। लेकिन एक आंदोलन ने इनकी जिंदगी बदल दी, जिसे आज भी स्टोनवाल दंगों के नाम से याद किया जाता है।
क्या है स्टोनवाल दंगा?
यह बात है साल 1969 के जून महीने की, जब एक रात के बाद सब बदल गया। समलैंगिक अधिकारों के लिए न्यू यॉर्क शहर में हुए एक आंदोलन ने उग्र रूप ले लिया। दरअसल, न्यू यॉर्क शहर में एक चलन था, यहां कि पुलिस कभी-कभी उन बार और रेस्टोरेंट्स पर छापा मारा करती थी जहां गे और लेस्बियन्स को इकट्ठा होने के लिए जाना जाता था। 28 जून, 1969 की रात, न्यू यॉर्क पुलिस ने स्टोनवॉल इन नाम के एक रोस्टोरेंट में छापा मारा, यह जगह मैनहट्टन के पास मौजूद ग्रीनविच विलेज में स्थित एक बार है।
इस दौरान जब पुलिस आक्रामकता के साथ इस बार के कर्मचारियों को बाहर निकाल रही थी, तभी कुछ लोगों ने उनके खिलाफ आवाज उठाना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं वहां के स्थानीय लोगों में पहले से काफी गुस्सा था और पुलिस की इस हरकत के बाद वहां की सड़कों पर भारी भीड़ जमा हो गई। दोनों के बीच टकराव काफी बढ़ गया और न्यू यॉर्क पुलिस के साथ यह झड़प छह दिनों तक चलती रही।
इसके बाद 2 जुलाई, 1969 को जब स्टोनवेल दंगे शांत हुए, तब समलैंगिक अधिकार आंदोलन, जो अबतक एक मामूली मुद्दा था, जिसे पॉलिटीशियन्स और मीडिया द्वारा दबाया जा रहा था। वह अब दुनिया भर में अखबार के पहले पन्ने की खबर बन गई थी।
पहला गे प्राइड परेड कब मनाया गया?
इस घटना के एक साल बाद, 28 जून, 1970 को स्टोनवाल दंगों की पहली वर्षगांठ मनाई गई। इस मौके पर न्यूयॉर्क शहर में कई संगठनों और कार्यकर्ताओं द्वारा परेड निकाली गई। देखते ही देखते कुछ सालों में इस परेड का चलन बढ़ता गया और इसे एक उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा, जिसका मकसद उन लोगों को श्रद्धांजलि देना और याद करना है, जिन्होंने स्टोनवाल दंगों में अपनी जान गंवा दी थी। 28 जून, 1970 को हुई इस परेड को सबसे पहले प्राइड मंथ के रूप में माना जाता है। इस मार्च को समलैंगिक लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण सफलता मानी जाती है क्योंकि इस परेड 3,000 से 5,000 लोग शामिल हुए थे।
LGBTQ प्राइड मंथ के बारे में
बीतते सालों के साथ गे प्राइड इवेंट्स दुनिया भर के बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों, गांवों और कस्बों तक फैल गए। इस आंदोलन का प्रभाव इतना बढ़ता गया कि, साल 2000 में अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने, स्टोनवाल दंगे और गे आंदोलन को पहचान देने के लिए जून महीने को प्राइड मंथ के रूप में आधिकारिक तौर पर नामित कर दिया। इसके बाद साल 2009 में राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ग्रे प्राइड मंथ को अलग पहचान देते हुए नया नाम दिया LGBTQ प्राइड मंथ। हालांकि, जैसे-जैसे प्राइड मंथ की लोकप्रियता दुनिया भर में बढ़ी है, वैसे-वैसे इसकी आलोचना भी बढ़ी है। इस समुदाय के लोगों को लेकर आज भी समाज दो भागों में बंटा हुआ है।
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