डायबिटीज (Diabetes)
बीटा सेल्स शरीर में इंसुलिन हार्मोन्स का निर्माण करती हैं। इन सेल्स को नुकसान पहुंचाने पर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बनता है। जब शरीर में इंसुलिन कम मात्रा में होता है तो ब्लड में मौजूद ग्लूकोज से शरीर को ऊर्जा नहीं मिलती है।

आजकल बदलती लाइफस्टाइल और गलत खानपान के कारण डायबिटीज के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। युवा वर्ग भी इस बीमारी के तेजी से शिकार हो रहे हैं। इस बीमारी को ब्लड शुगर के नाम से भी जाना जाता है।
यह बीमारी तब होती है, जब खून मे ग्लूकोज का स्तर बहुत अधिक बढ़ जाता है। शरीर में पर्याप्त मात्रा में कोई इंसुलिन नहीं बन पाता है, तो कोशिकाएं ठीक से काम नहीं करती है। जिससे ग्लूकोज ब्लड में ही इकट्ठा हो जाता है।
अगर डायबिटीज का सही समय पर इलाज न किया जाए तो, यह नसों, आंखों, गुर्दे और अन्य अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है।
डायबिटीज के प्रकार
टाइप 1 डायबिटीज
टाइप 1 डायबिटीज में इम्यून सिस्टम ही शरीर के पैंनक्रियाज यानी अग्नाशय में उन उत्तकों पर हमला करता है, जो इंसुलिन का उत्पादन करते हैं।
बीटा सेल्स शरीर में इंसुलिन हार्मोन्स का निर्माण करती हैं। इन सेल्स को नुकसान पहुंचाने पर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बनता है। जब शरीर में इंसुलिन कम मात्रा में होता है, तो ब्लड में मौजूद ग्लूकोज से शरीर को ऊर्जा नहीं मिलती है। जिससे रक्त में ग्लूकोज का स्तर ज्यादा बढ़ जाता है। आमतौर पर बच्चे और युवा टाइप 1 डायबिटीज के शिकार होते हैं। हालांकि यह बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है।
लक्षण
- बहुत ज्यादा भूख लगना।
- बार -बार प्यास लगना।
- वजन कम होना।
- बार-बार पेशाब आना।
- धुंधला दिखाई देना।
- थकावट।
- मूड स्विंग होना।
टाइप 2 डायबिटीज
टाइप 2 डायबिटीज में शरीर इंसुलिन का निर्माण ठीक से नहीं कर पाता है। जब इंसुलिन घटता है, तो यह हाई ब्लड शुगर का कारण बनता है। टाइप 2 डायबिटीज भी किसी भी उम्र में हो सकता है, यहां तक कि बचपन में भी।
लक्षण
- बार-बार भूख लगना।
- प्यास बढ़ना।
- घाव धीरे-धीरे भरना।
- बार-बार संक्रमण होना।
-थकान महसूस करना।
- ज्यादा पेशाब आना।
- कम दिखाई देना।
- थका महसूस करना।
जेस्टेशनल डायबिटीज
प्रेग्नेंसी में हार्मोनल बदलाव की वजह से ब्लड शुगर का लेवल बढ़ जाता है। जिससे गर्भवती महिलाओं में जेस्टेशनल डायबिटीज का खतरा होता है। इससे प्रेग्नेंसी में कई तरह की दिक्कतें भी हो सकती है। इससे बच्चे पर भी असर पड़ता है। जन्म के बाद भी शिशु में डायबिटीज का खतरा बढ़ सकता है।
लक्षण
- बढ़ते वजन के कारण।
- अगर टाइप 2 डायबिटीज के शिकार है।
- पॉलीसिस्टिक अंडाशय सिंड्रोम।
डायबिटीज का क्या है इलाज
टाइप 1 डायबिटीज
टाइप 1 डायबिटीज के इलाज में इंसुलिन ही मुख्य इलाज है। यह उस हार्मोन को बदल देता है, जिसे शरीर उत्पादित करने में सक्षम नहीं होता। आपको नियमित रूप से अपने ब्लड शुगर लेवल की जांच करानी चाहिए और लाइफस्टाइल में बदलाव करने की आवश्यकता है।
टाइप 2 डायबिटीज
टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों को इंसुलिन की आवश्यकता हो भी सकती है और नहीं भी। कई बार दवा के साथ-साथ एक्सरसाइज और खानपान में बदलाव कर टाइप 2 डायबिटीज को मैनेज किया जा सकता है।
जेस्टेशनल डायबिटीज
प्रेग्नेंसी में समय-समय पर ब्लड शुगर की जांच कराएं। अगर ब्लड शुगर लेवल बढ़ता है, तो डाइट में बदलाव और एक्सरसाइज करने की सलाह दी जा सकती है। जेस्टेशनल डायबिटीज को कंट्रोल करने के लिए इंसुलिन की आवश्यकता भी पड़ती है।

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