Tea Popularity: कई साल पहले हुई थी भारत में चाय उत्पादन की शुरुआत, समय के साथ इतनी बढ़ी इसकी लोकप्रियता
भारत के लोगों की सुबह चाय की प्याली से होती है। 100 प्रतिशत स्वदेशी पेय पदार्थ के रूप में इसकी पहचान हर वर्ग तक पहुंची और विज्ञापनों ने दिलों में इसे ऐसी जगह दी कि आज भारत में भारतीयों द्वारा और भारतीयों के लिए चाय उत्पादन हो रहा है।

नई दिल्ली, अश्वथी गोपीनाथ, मैप अकादमी। भारत में 2021 में 101 करोड़ किलोग्राम चाय की खपत हुई। देश में चाय खपत की यह मात्रा और चाय पीने की ललक कुछ और संकेत दे सकती है, वास्तव में भारत में चाय पीने वालों की संख्या में पिछली शताब्दी के मध्य से ही बढ़ोतरी हुई। चाय की लोकप्रियता में यह वृद्धि कई कारकों का परिणाम थी, जिसमें चाय को अपने साम्राज्यवादी जड़ों से अलग करने की जरूरत के साथ-साथ पेय पदार्थ के विज्ञापन के इर्द-गिर्द बदलते आख्यान भी शामिल थे। भारत में 19वीं शताब्दी की शुरुआत में चाय की खेती होनी शुरू हुई और इसी के साथ इसका निर्यात भी किया जाने लगा।
उस समय तक ब्रिटेन में इस्तेमाल की जाने वाली अधिकांश चाय चीन से आयात की जाती थी। भारत को चाय उत्पादन के केंद्र के रूप में स्थापित करने के प्रयास वर्ष 1800 तक काफी हद तक विफल रहे। इसके बाद असम में चाय जैसे एक अन्य पौधे की खोज ने भारत में चाय की पैदावार का पुनरुद्धार किया। वर्ष 1888 तक भारत ने चाय की इस किस्म की खेती शुरू कर दी और चीन को पछाड़कर ब्रिटेन को चाय के सबसे बड़े निर्यातक के रूप में आगे निकल गया।
स्वदेशी पेय लाया सबको साथ
भारतीय चाय संघ की वर्ष 1905 की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीयों ने चाय के प्रति बहुत कम रुचि दिखाई। भारतीय आबादी में इस पेय पदार्थ के प्रति रुचि जगाने के प्रयास में भारतीय चाय बाजार विस्तार बोर्ड (आइटीएमईबी, पूर्व में चाय उपकर समिति) ने विज्ञापन अभियान शुरू किया, जिसमें चाय को विभाजित करने वाले कारक के बजाय एकीकृत करने वाले कारक के रूप में चित्रित किया गया। इसका सीधा समाधान था- चाय के इर्द-गिर्द बुनी गई कहानियों को बदलना। इस अवधि के आइटीएमईबी विज्ञापन स्वतंत्रता आंदोलन से पहले और उस दौरान के वर्षों के राष्ट्रवादी उत्साह को प्रतिबिंबित करते हैं।
इन विज्ञापनों में चाय को 100% स्वदेशी पेय पदार्थ के रूप में चित्रित किया गया, जो संस्कृति, जाति और वर्ग के अंतर से परे था। चाय की ब्रांड्स के लोगो इस बात को दर्शाने के लिए बनाए जाने लगे कि चाय लोगों को कई तरीकों से एक साथ लाती है। जैसे वाघ बकरी ब्रांड में बाघ और बकरी को एक साथ एक ही पात्र में चाय पीते हुए दिखाया गया है। इन विज्ञापनों ने शानदार तरीके से अपना प्रभाव बनाया-इस अवधि के दौरान भारत में चाय की खपत दोगुणी हो गई।
दिनचर्या में हुई शामिल
वर्ष 1947 तक जब अधिकांश चाय बागान ब्रिटिश नियंत्रण में थे, चाय के विज्ञापनों में अंग्रेजों को चाय के प्राथमिक उपभोक्ता के रूप में दिखाया जाता था। इन विज्ञापनों में अक्सर भारतीय मजदूरों को गिरमिटिया मजदूरी के समस्याग्रस्त संदर्भ से हटाकर अंग्रेजी साहबों (मालिक) और मेम साहबों (मालकिन) को चाय परोसते हुए दिखाया गया। इसलिए स्वतंत्रता के बाद के विज्ञापनों में सबसे उल्लेखनीय बदलाव पैकेजों पर अंकित छवियों से अंग्रेजों को हटाने का हुआ। इसमें या तो पैकेजिंग से अंग्रेजों को पूरी तरह से हटा दिया गया, जैसा ब्रुक बांड विज्ञापनों में हुआ, जो चाय के पैकेज को चमकीले रंगों में प्रस्तुत करते हैं या फिर इनमें अंग्रेज पुरुष और महिला को भारतीय पुरुष और महिला में तबदील कर दिया गया, जो अपने हाव-भाव में आधुनिक थे।
साल 1960 के बाद हुई वृद्धि
वर्ष 1960 के बाद चाय की घरेलू खपत में तेजी से हुई वृद्धि चाय उत्पादन में हुई तकनीकी प्रगति का परिणाम थी, जिसके चलते सस्ती, ज्यादा सुलभ, सीटीसी (क्रश, टियर, और कर्ल) चाय की उपलब्धता हुई। चाय के विज्ञापनों में फिर एक बदलाव देखा गया, जिसके तहत राष्ट्रवादी उत्साह को थोड़ा कम करके चाय को दैनिक जायके के स्रोत के रूप में विज्ञापित किया जाने लगा, जिसमें पारिवारिक एकता और सद्भाव को चित्रित किया गया, जिससे चाय संतोष और स्थिरता की जीवनशैली का पर्याय बन गई।
जहां एक समय विज्ञापनों में अंग्रेजों को चाय का कप परोसते हुए दिखाया जाता था, वहीं अब भारतीय उसी विलासिता का आनंद ले रहे थे। आज चाय एक ऐसा उत्पाद बन चुकी है, जिसकी खेती भारत में, भारतीयों द्वारा और भारतीयों के लिए की जाती है।
सौजन्य- map-academy.io
Picture Courtesy: Freepik
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