ऋतुओं का राजा है वसंत, जानें इसका धार्मिक और प्राकृतिक महत्व
वसंत ऋतुओं का राजा अवश्य है किंतु वह तानाशाह नहीं है। उसे अपनी शान बघारना नहीं आता। उसे शायद यह पता भी नहीं कि वह दूसरी ऋतुओं से क्यों महान है? वह राजा भी है और फकीर भी। वह साधु की झोली भी है और वनिताओं का श्रंगार भी।

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। सब ऋतुओं के अपने-अपने रंग और अपना-अपना राग है। फिर भी वसंत ऋतु के ठाठ ही कुछ निराले हैं। यह प्रेम की ऋतु है, मधुर श्रंगार की वेला वसंत में ही आती है। मुक्त समीकरण में मादकता घुलने लगती है, बौराए हुए आम की शाखा पर कोकिल युगल के सुरों में डूबने के लिए कामदेव फूलों के कोमल तीर चलाते हुए चले आते हैं। मयूर अपनी प्रेयसियों को नाच-नाचकर रिझाने लग जाते हैं। मधुवन में बहार सी आ जाती है और किंशुक केसरिया लिबास में खड़ा हुआ सबका ध्यान अपनी ओर खींचकर मन ही मन मुग्ध होने लगता है। वसंत आते ही प्रकृति का तेज और ओज बढ़ जाता है। श्वेतकमल पर विराजित शुभ्रवस्त्रावृता सरस्वती की पूजा में झूमती हुई शीतल-मंद-सुगंधित पवन जन-जीवन को उल्लास से भर देती है। फूलों से लदी डालियां, फूली हुई सरसों, लहलहाते खेत, परागकणों को चूमती हुई तितलियां देख मन बौराने लगता है। उमंग से भरा हुआ मन कभी कलाकार बनने के लिए उछलता है तो कभी कोई मधुर गीत गुनगुनाने लगता है।
नव-सृजन का उत्सव
मां सरस्वती हमारे जीवन में एक व्यवस्थापिका की तरह आती हैं। वह आकर हमें उस रंगशाला में ले जाती हैं जहां आम्रमंजरियां, किंशुक के फूल और गेहूं की बालियां हाथों में लेकर खड़ी कुमारियां वसंतोत्सव में मगन हैं। जहां नववधुओं के जूड़े महकने लगते हैं, नवमल्लिका की खिली हुई कलियों के गजरे इतराने लगते हैं। नई-नई कोंपले फूट रही होती हैं। कुहू-कुहू से दिशाएं गूंजने लगती हैं। नव-सृजन के उत्सव का आमंत्रण पाकर कवि का चित्त जाग जाता है। मृदंग की थाप पर तरुणाई थिरकने लगती है, चितेरे के हाथ में आकर तूलिका मचलने लग जाती है, नर्तकियों के चितवन में मृगनयनों का बांकापन उतर आता है, गायक के कंठ में कोई गंधर्व आकर बैठ जाता है और प्रियतम की बांहों में झूलने के लिए मुग्धा नायिका मचल उठती है।
भर जाएं प्रेम की झंकार से
वसंत ऋतुओं का राजा अवश्य है, किंतु वह तानाशाह नहीं है। उसे अपनी शान बघारना नहीं आता। उसे शायद यह पता भी नहीं कि वह दूसरी ऋतुओं से क्यों महान है? वह राजा भी है और फकीर भी। वह साधु की झोली भी है और वनिताओं का श्रंगार भी। वह एक साथ केसर, चंदन, केतकी और गुलाब है। वह कोमल धूप भी है और स्वच्छ चांदनी भी है। वह एक साथ मधु, शर्करा, घृत और निर्मल जल है। वह हल्का सा स्पर्श देकर निहाल कर देता है। वह अपने में सुगंध भरकर निकलता है। अमीर की अमीरी नहीं देखता, गरीब की गरीबी नहीं देखता।
सब पर बराबरी से अपना खजाना लुटाता हुआ अदृश्य हो जाता है। वसंत की सुकुमारता और उसके बड़े ही खूबसूरत अंदाज पर न्योछावर होने के लिए बच्चों से लेकर वयोवृद्ध तक समान रूप से स्पर्धा करते दिखते हैं। सो, अपने भीतर वसंत को उतरने दीजिए। वह आपको प्रेम की उस सुगंध से भर देगा, जो वीणावादिनी को प्रिय है। ये तीनों जब आपके हृदय में आसन जमा लेंगे, तो एक झंकार उठेगी। तब आप कह उठेंगे- ‘अहा! यह कितना मधुर जीवन’ और अपने रंगों की दुनिया में खो जाएंगे।
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