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    शिव-महिमा: जीवन में जो भी हासिल होता है, वह आपके प्रयत्न का परिणाम है

    By Ruhee ParvezEdited By:
    Updated: Thu, 21 Jul 2022 01:57 PM (IST)

    जहर को मस्तिष्क की तरफ भी न ले जाएं वरना इससे क्रोध क्षोभ अवसाद ही होगा। भगवान शंकर इन्हीं कारणों से उसे कंठ में ही धारण करते हैं। इतने बड़े त्याग के ...और पढ़ें

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    शिव-महिमा: लालच छोड़ें और संतुष्ट होने की आदत डालें

    नई दिल्ली, सलिल पांडेय। संसार सुख और दुख, दोनों का मिलाजुला रूप है। कोई इसे अपने सोच से सुखदाई बनाता है तो कोई दुखदाई। देखा जाए तो दोनों स्थितियां सिक्के के दो पहलू की तरह हैं। सिक्के को किसी तरह रखा जाए, उसकी कीमत नहीं घटती। इसी तरह जीवन को भी लेना चाहिए। हमारे आध्यात्मिक ग्रंथों में शिव को बहुत सरल देवता के रूप में दर्शाया गया है। लोकहित के लिए समुद्र मंथन के वक्त वह खुद आगे बढ़कर विष पीते हैं। जब व्यक्ति सहजता से विसंगतियों के जहर को आत्मसात करता है तो उससे भयाक्रांत नहीं होता और जब विपरीत हालात को सच में जहर मान लेता है तो वह परेशान हो जाता है।

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    विपरीतता प्राय: असफलता, धोखा आदि से आती है। यदि कोई छल-छद्म करे, अप्रिय स्थिति उत्पन्न करे और उसे जहर की तरह पीने की स्थिति बन जाए तब उस जहर को भगवान शंकर की तरह कंठ में ही रोक लेना चाहिए। यदि जहर हृदय में उतरा तो मन क्षुब्ध होगा, बदला लेने का भाव जागृत होगा। इसी तरह उस जहर को मस्तिष्क की तरफ भी नहीं जाने देना चाहिए। इससे भी क्रोध, क्षोभ, अवसाद ही होगा। भगवान शंकर इन्हीं कारणों से उसे कंठ में ही धारण करते हैं। इतने बड़े त्याग के बावजूद भगवान शंकर कुछ भी नहीं है तो सिर्फ एक लोटा जल चढ़ाने से प्रसन्न हो जाते हैं। इसका अर्थ है कि जीवन में जो भी प्राप्त हो रहा है वह आपके प्रयत्न का परिणाम है। इससे संतुष्ट होने की आदत डालनी चाहिए, न कि लालच करना चाहिए।

    यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि जब व्यक्ति नकारात्मक जीवन जीता है तो एक अज्ञात भय उसके जीवन में प्रवेश कर जाता है। यह भय उसके मन को कमजोर करने के साथ शरीर के अवयवों को भी क्षतिग्रस्त करता है। इसका पता उसे तब चलता है जब शरीर में कोई गंभीर रोग लग जाता है। इसलिए हर हाल में समुचित आय पर ही भरोसा करना चाहिए।