पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री मानते थे कि युद्ध कोई हल नहीं, दिया था छात्रों को यही संदेश
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वार्षिकोत्सव में मुख्य अतिथि के तौर पर पहुंचे थे तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री। 19 दिसंबर 1964 को विद्यार्थियों को संबोधित उनका भाषण आज भी प्रासंगिकता रखता है। शास्त्री जी की जन्म जयंती ( 2 अक्टूबर) पर पढ़िए उस भाषण के अंश...

भविष्य में आपका मुकाम जो भी हो, आप सबको खुद को सबसे पहले देश का नागरिक मानना चाहिए। इससे आपको संविधान के मुताबिक निश्चित अधिकार मिलेंगे, लेकिन अधिकारों के साथ जो कर्तव्य आपके हिस्से आएंगे, उन्हें भी ठीक से समझ लेना चाहिए। हमारे लोकतंत्र में स्वाधीनता की शर्त समाज के हित में कुछ कर्तव्यों के साथ जुड़ी है। एक अच्छा नागरिक वह है, जो कानून का पालन करे, तब भी, जब कोई पुलिसकर्मी मौजूद न हो। पहले के जमाने में आत्मसंयम और अनुशासन परिवार व शिक्षकों से मिलता था, लेकिन वर्तमान के आर्थिक तंगी वाले जीवन में अब यह मुमकिन नहीं रहा। चूंकि शैक्षणिक संस्थानों में भी संख्या बढ़ती जा रही है। इसलिए शिक्षक और शिष्य के बीच व्यक्तिगत संपर्क की गुंजाइश कम हो गई है। होता यह है कि नौजवान छात्र अपने हिसाब से सीखने की स्थिति में आ जाते हैं और हम जानते हैं कि समस्याएं यहीं शुरू होती हैं। हमारी जिम्मेदारी जो भी हो, काम जो भी हो, हम उसे पूरी ईमानदारी और काबिलियत से करने का नजरिया अपनाएं, यह युवा नागरिकों की महती भूमिका है। किसी और की आलोचना से पहले हमें देखना होगा कि क्या हमने अपना काम ठीक से पूरा किया!
आप ये कभी न भूलें कि देश के लिए वफादारी आपकी किसी भी वफादारी से पहले है। हमेशा याद रखिए कि पूरा देश एक है और जो भी बांटने या अलगाव की बात करे, वो हमारा सच्चा दोस्त नहीं है। एक लोकतांत्रिक देश किसी एक के नहीं-बल्कि सहयोग के आधार पर-सभी के प्रयासों से महान बन सकता है। देश का भविष्य आपके हाथों में है। अगर आप नागरिक के तौर पर सही होंगे तो देश का भविष्य भी सुनहरा होगा।
धर्मनिरपेक्षता को लेकर हमारा नजरिया काफी साफ रहा है, जिसे दोहराने की जरूरत नहीं है। यह हमारे संविधान का हिस्सा है... विविधता के बावजूद भारत बुनियादी रूप से एक है, जिसे हम सभी स्वीकारते रहे हैं और आगे भी और मजबूती से इस एकता को बरकरार रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। देश तभी तरक्की कर सकता है, जब विभाजनकारी और अलगाववादी प्रवृत्तियों से पूरी तरह दूर रहा जाए और शिक्षा के दौरान ही धर्मनिरपेक्षता के बीज बोने से सुफल मिल सकते हैं।
दुनिया इस वक्त बहुत कठिन दौर में है। सच मानिए यह कहना गलत नहीं है कि मानवता के इतिहास में समस्याएं इतनी जटिल कभी नहीं रहीं, जितनी अब हैं। अगर हमने देर किए बगैर अब भी समाधान की तरफ सही कदम नहीं उठाए तो बात हाथ से निकल जाएगी। देशों ही नहीं, लोगों के समूहों के बीच से भी आपसी नफरत, अविश्वास और दुर्भावनाओं को मिटाना हर कीमत पर जरूरी हो गया है, लेकिन यह काम ताकत के जोर से नहीं किया जा सकता।
युद्ध और संघर्षों से किसी कीमत पर कोई हल नहीं निकलता, बल्कि समस्या और बढ़ती ही है। न्यूक्लियर और थर्मोन्यूक्लियर एनर्जी के क्षेत्र में विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं, अब हमें सोचना है कि हम इनका इस्तेमाल रचनात्मक ढंग से करें या विध्वंस के लिए!
भारत में हमारी अपनी अलग समस्याएं हैं। हमारा लक्ष्य हर भारतीय की बुनियादी जरूरतों को पूरा करना और स्वाधीनता से जीवन जीने का अवसर देना है। एक ऐसा लोकतांत्रिक समाज जहां सबके लिए एक समान स्थान हो, समान सम्मान हो और सेवा व तरक्की के लिए समान अवसर हों। हम भेदभाव व छुआछूत मिटा सकें।
आर्थिक असमानता की गहरी खाई को पाटना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। हम नहीं चाहते कि सारी पूंजी कुछ हाथों में केंद्रित हो जाए। सदियों की हमारी महान सांस्कृतिक धरोहर किसी एक समुदाय की नहीं है, बल्कि इतिहास में जितने महान लोग यहां रहे हैं, उन सबके साझा योगदान का नाम हमारी संस्कृति है।
मैंने यहां जितने लक्ष्य बताए हैं, उन्हें हासिल करना मामूली बात नहीं है। मुझे पता है कि इनमें से अभी हम कुछ ही हासिल कर सके हैं, लेकिन जब तक पूरी सफलता न मिले, तब तक दृढ़ संकल्पित रहना है।
याद रखना चाहिए कि भारत की ज्यादातर आबादी गरीब है और अल्पसंख्यक हैं वे लोग, जो आराम और तमाम सुविधाओं की जिंदगी गुजार पाते हैं। हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी और बाकी सभी समुदायों को भारतीय होकर, एकजुट होकर गरीबी से लड़ना चाहिए, बीमारियों से निपटना चाहिए और अशिक्षा से मुक्त होना चाहिए।
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