Shaheed Diwas 2021: भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान की याद में मनाया जाता है शहीद दिवस
आज के दिन को इतिहास के पन्ने में काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है। 23 मार्च की आधी रात को अंग्रेज हुकूमत ने भारत के तीन सपूतों- भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फंसी पर लटका दिया था।

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Shaheed Diwas 2021: आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारी और नरमवादी दोनों का अपना ही योगदान रहा है। शहीद दिवस हर साल 23 मार्च को मनाया जाता है। इस दिन लोग स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देते हैं, जिन्होंने ब्रिटिश शासन से भारत की आज़ादी के लिए अपनी जान दे दी थी।
आज के दिन को इतिहास के पन्ने में काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है। 23 मार्च की आधी रात को अंग्रेज हुकूमत ने भारत के तीन सपूतों- भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फंसी पर लटका दिया था। देश की आजादी के लिए खुद को देश पर कुर्बान करने वाले इन महान क्रांतिकारियों को याद करने के लिए ही शहीद दिवस मनाया जाता है।
शहीद दिवस का इतिहास
नवंबर 1928 में लाला लाजपत राय की मृत्यु के बाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और अन्य लोगों ने बदला लेने की कसम खाई। राय भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के एक बड़े नेता थे। उन्होंने जेम्स ए स्कॉट को मारने की साजिश रची। स्कॉट ब्रिटिश राज में पुलिस अधीक्षक थे।
वह स्कॉट ही थे जिन्होंने पुलिस को प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज करने का आदेश दिया था और राय पर व्यक्तिगत हमला किया था, जिससे उन्हें काफी गंभीर चोटें आई थीं। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव स्कॉट की हत्या कर ब्रिटिश शासन को एक बड़ा पैग़ाम भेजना चाहते थे।
हालांकि, ग़लत पहचान की वजह से स्कॉट की जगह जॉन पी सॉन्डर्स मारे गए, जो एक सहायक पुलिस अधीक्षक थे। भगत सिंह और बीके दत्त (बटुकेश्वर दत्त) ने 8 अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेंबली में बम फेंके थे। बम फेंकने के बाद वहीं पर इन दोनों ने गिरफ्तारी दी थी। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव पर सॉन्डर्स की हत्या का आरोप लगाया गया था। उन्हें मौत की सज़ा सुनाई गई और 24 मार्च, 1931 को फांसी की तारीख तय की गई। हालांकि, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर जेल में 23 मार्च से पहले ही फांसी दे दी गई थी।
इसका कारण ये है कि इन वीर सपूतों को फांसी की सज़ा सुनाए जाने से पूरे देश में लोग भड़के हुए थे। ऐसे माहौल में अंग्रेज़ सरकार डर गई। सरकार को लगा कि माहौल बिगड़ सकता है। लिहाज़ा फांसी की सज़ा की तारीख में बदलाव करके एक दिन पहले यानी 23 मार्च को भारत मां के वीर सपूत सरदार भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को अंग्रेज़ों ने फांसी दे दी।
जब इन तीनों को फांसी दी गई, तब भगत सिंह और सुखदेव 23 वर्ष के थे, जबकि राजगुरु सिर्फ 22 साल के थे। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव आज भारत के नौजवानों के लिए प्रेरणा के बड़े स्रोत हैं।
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