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    पर्दे पर खतरनाक विलेन पर दिल में प्रेम

    By Keerti SinghEdited By:
    Updated: Thu, 22 Sep 2022 08:35 PM (IST)

    दुनिया जानती है कि मैं कितना शरीफ आदमी हूं। प्रेम नाम है मेरा...प्रेम चोपड़ा। यह डायलाग सुनते ही अभिनेता प्रेम चोपड़ा की छवि उभरती है। असल जीवन में वे बेहद विनम्र हैं। 23 सितंबर को प्रेम चोपड़ा की जन्मतिथि पर उनसे जुड़ी रोचक बातें साझा कर रही हैं स्मिता श्रीवास्‍तव

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    23 सितंबर को अभिनेता प्रेम चोपड़ा का जन्मदिन है

     अभिनेता प्रेम चोपड़ा सिल्‍वर स्‍क्रीन पर खतरनाक विलेन के रूप में दिखे। बड़े पर्दे पर उन्‍हें देखकर लोग सहम जाया करते हैं, यह उनका जीवंत अभिनय है, असल जिंदगी में वह इस छवि से उलट बेहद संजीदा व मृदु स्वभाव के हैं। शुरुआत में अभिनय की दुनिया में पांव जमाने में उन्‍हें काफी संघर्ष भी करना पड़ा। उन्‍हें छोटी सी शारीरिक समस्‍या का सामना भी करना पड़ा, लेकिन उनके अटल इरादे उनकी राह का रोड़ा नहीं बन सके।

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    दरअसल, बचपन में उन्‍हें टाइफाइड हो गया था जिससे उनके सुनने की क्षमता थोड़ी सी क्षीण हो गई थी। प्रेम को इस पर संदेह रहता था कि उन्‍हें ठीक से सुनाई दिया या नहीं। वह थिएटर, स्‍टेज पर नाटक करते समय इस तरह काम करते थे कि किसी को उनकी कमजोरी का पता न चले। अपनी इस परेशानी से जुड़ा एक मजेदार किस्‍सा उन्‍होंने अपनी किताब प्रेम नाम है मेरा : प्रेम चोपड़ा में साझा किया है। यह किस्‍सा फिल्‍म शहीद से जुड़ा हुआ है। किताब के मुताबिक मनोज कुमार की फिल्‍मों में क्‍यू (सीन को शुरू करने के लिए कलाकार को उसके लिए इशारा देना) बहुत महत्‍वपूर्ण हुआ करता था। मनोज की डायलाग डिलीवरी पहले थी। जैसे ही उनका डायलाग खत्‍म होता है प्रेम चोपड़ा को अपना डायलाग शुरू करना था। पांच बार टेक हो चुके थे और प्रेम अपना क्‍यू लेने में चूक जाते थे। उसके बाद मनोज को समझ आया कि प्रेम को सुनने में कुछ समस्‍या आ रही है। उन्‍होंने आपस में समझौता किया कि अपने डायलाग को खत्‍म करने के कुछ समय पहले ही मनोज हाथ उठाकर एकदम से नीचे करेंगे। इससे प्रेम समझ जाएंगे कि अब उन्‍हें बोलना है। इसके बाद बिना किसी रोक टोक के वो सीन पूरा हो गया, लेकिन यह समस्‍या तो हर सीन के साथ आती थी। प्रेम के लिए कितनी बार बाडी लैंग्‍वेज बदली जाती। अंतत: निर्णय किया गया कि असिस्‍टेंट उन्‍हें सिर हिलाकर क्‍यू देगा। बाद में प्रेम ने इलाज कराकर इस समस्‍या को जड़ से खत्‍म किया। उन्‍होंने खुद को नकारात्‍मक विचारों में नहीं फंसने दिया। उन्‍होंने छोटी सी शारीरिक समस्‍या को अपनी राह का रोड़ा नहीं बनने दिया और खलनायक के तौर पर अपना अलग मुकाम बनाया।

    हालांकि उस दौर में पर्दे पर उनकी दुष्‍टता, निर्ममता, छल कपट, और निर्मम स्‍वभाव देखकर कई बार लोग आहत हो जाते थे। उन्‍हें लगता था कि यह कितना बुरा आदमी है। वे उन्‍हें कोसते हैं और बुरा भला कहते थे लेकिन असल जिंदगी में सौम्‍य व्‍यक्तित्‍व के पारिवारिक इंसान के लिए यह असहनीय हुआ करता था। यद्यपि बतौर कलाकार प्रेम के लिए रचनात्‍मक संतुष्टि होती थी कि वह किरदार में इतना रम गए कि दर्शकों को खलचरित्र में ही नजर आ रहे थे। उन्‍होंने अपने किरदार के साथ न्‍याय किया। हालांकि नकारात्‍मक किरदार करते हुए करते हुए कई बार ऐसे मौके भी आते हैं जब आप उन्‍हें कई असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। किताब के मुताबिक प्रेम कहते हैं नकारात्‍मक किरदार निभाते हुए जिंदगी में कई मौके ऐसे भी आते हैं जब आपको खुद से नफरत होने लगती है। मैं अपने एक रिश्‍तेदार के यहां गमी में शामिल होने गया। पूरा परिवार दुख में डूबा हुआ था। अर्थी ले जाते समय कुछ युवाओं ने मुझे देखा और छेड़ने की मंशा से तेजी से चिल्‍लाए प्रेम चोपड़ा कौन है ? उनमें से एक ने कहा मैं हूं प्रेम चोपड़ा। बाकी सब तेजी से हंसने लगे। मुझे नहीं पता कि मुझे चिढ़ हो रही थी या शर्मिंदगी इतने गमगीन और नाजुक मौके पर इस तरह का तमाशा। ऐसे मौके पर मुझे खुद के लोकप्रिय अभिनेता होने से चिढ़ सी होती थी। हालांकि जीवन के अनुभव ने यही सिखाया कि हमेशा अपने काम से काम रखो और अपने काम के प्रति समर्पित रहो। इन वाकयों के बीच एक ऐसा वाकया भी है जो चेहरे पर मुस्‍कान लाता है। एक बार फिल्‍म दो झूठ की शूटिंग शिमला में चल रही थी। दिनभर की शूटिंग के बाद वह होटल पहुंचे। वहां पर उनकी पत्‍नी उमा और बेटी रकिता इंतजार कर रहे थे। रात को खाना खाने के बाद सब आराम कर रहे थे कि मैनेजर अंदर आए। उन्‍होंने बताया कि उनसे मिलने के लिए भीड़ होटल के बाहर जमा है। वे उनसे मिलना चाहते हैं। प्रेम ने मैनेजर से पूछा कि वे कब से वहां पर हैं ? जवाब मिला दो घंटे से ज्‍यादा समय हो गया। प्रेम मैनेजर पर नाराज हुए और फैंस से मिलने तुरंत बाहर आए। यह वही होटल था जहां पर करीब बीस साल पहले वह सितारों की झलक पाने के लिए खुद भीड़ का हिस्‍सा बनकर घंटों खड़े रहते थे।