दिव्य चित्रों के चितेरे संत कलाकार थे सोभा सिंह, जन्मजयंती 29 नवंबर पर विशेष
बीसवीं सदी के प्रसिद्ध चित्रकार सरदार सोभा सिंह की तूलिका के रंगों का जादू आज भी कायम है। प्रेम और एकात्मता का संदेश देने वाली उनकी कला और ऋषि-मुनियों जैसे रहन-सहन के कारण उन्हें संत कलाकार के नाम से जाना गया।

डा. हृदयपाल सिंह।
सरदार सोभा सिंह का जन्म 29 नवंबर, 1901 को पंजाब के गुरदासपुर के श्री हरगोबिंदपुर कस्बे में हुआ था। 1905 में उनकी माताजी बीबी अच्छरां का देहांत हो गया। 1917 में उनके पिता देवा सिंह भी चल बसे। 1917 में अमृतसर के औद्योगिक स्कूल से कला और शिल्प में एक वर्ष का प्रशिक्षण लेने के बाद उन्होंने निरंतर अभ्यास से चित्रकला सीखते हुए महारत हासिल की। सोभा सिंह ने ब्रिटिश भारतीय सेना में बतौर ड्राफ्टमैन इराक में कार्य किया और वहीं अंग्रेजी चित्रकारों से प्रेरणा लेते हुए यूरोपीय चित्रों का अध्ययन किया। सेना में कार्यकाल के दौरान उन्होंने यह तय किया कि अब वह बतौर स्वतंत्र चित्रकार जीवन-यापन करेंगे। लिहाजा वर्ष 1923 में उन्होंने सेना छोड़ दी और अमृतसर लौट आए।
लंदन तक बिखरी रंगत
नेताजी सुभाष चंद्र बोस से सोभा सिंह बहुत प्रभावित थे और यही वजह रही कि उन्होंने अपने स्टूडियो का नाम रखा सुभाष आर्ट स्टूडियो। वर्ष 1931 से वे दिल्ली में व्यावसायिक कलाकार के तौर पर काम करने लगे। यहां सोभा सिंह को कला प्रदर्शनियों में भाग लेने का मौका मिला। उन्होंने कई भारतीय राजाओं के चित्र बनाने के साथ ही भारतीय रेलवे, डाक और तार विभाग के लिए भी पोस्टर और चित्र बनाए। उनके चित्र लंदन इलस्टे्रटेड न्यूज में भी प्रकाशित हुए। 1946 में वे लाहौर आ गए और अनारकली बाजार में स्टूडियो खोला। उन्होंने फिल्म ‘बुत्त तराश’ में बतौर कला निर्देशक भी काम किया मगर विभाजन के बाद वे खाली हाथ हिमालय की कांगड़ा घाटी की गोद में मौजूद शांत व सुरम्य गांव अंद्रेटा में बस गए और अंतिम समय तक वहीं रहे।
गुरु को समर्पित कला
जीवन के अंतिम दो दशक के दौरान उनका मुख्य ध्यान सिख गुरुओं के जीवन और कार्यों पर रहा। गुरुओं का चित्रण दैवीय आत्माओं के प्रति उनकी भक्ति का प्रकटीकरण था। वे कहते थे, ‘मैंने लोगों को प्रेरित करने के लिए गुरुओं को चित्रित किया है।’ उन्होंने गुरु नानक को अपने ध्यान की अभिव्यक्ति के रूप में और गुरु गोबिंद सिंह को प्रेरणा अवतार के रूप में चित्रित किया। सोभा सिंह द्वारा बनाए गए गुरु नानक देव जी के चित्र शांत रस में हंै। उन्होंने 1969 में गुरु नानक देव की 500वीं जयंती के अवसर पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, अमृतसर द्वारा बनवाई गई पेंटिंग में गुरुजी की हथेली को चित्रित करने के लिए हस्तरेखा विज्ञान पर कई पुस्तकों का अध्ययन किया। भित्ति चित्रों में उकेरे सिख गुरुओं के चित्रों के बाद यह पहली बार हुआ कि सोभा सिंह द्वारा बनाई सिख गुरुओं की तस्वीरों को व्यापक स्तर पर प्रमाणिक तस्वीरों के तौर पर स्वीकार किया गया है। उनके जीवन काल में प्रमुख सिख संस्थाओं जैसे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी आदि ने उनसे तमाम तस्वीरें बनवाईं और प्रकाशित करवाकर श्रद्धालुओं तक पहुंचाईं।
भक्ति और प्रेम के विविध रंग
सोभा सिंह ने भगवान राम और भगवान कृष्ण को भी समान भक्तिभाव से ईश्वरीय प्रकाश और ज्ञान के आभामंडल के साथ वास्तविक महापुरुषों की विशेषताओं को दर्शाते हुए चित्रित किया। यह तस्वीरें उनकी आर्ट गैलरी में प्रदर्शित हंै। सोभा सिंह द्वारा दिल्ली में 1934 में बनाई गई श्री कृष्ण मंगलाचार एक आकर्षक पेंटिंग है जिसे 2021 में गुजरात के कच्छ के एक कला संग्रहकर्ता द्वारा सामने लाया गया था। उन्होंने प्रेम कहानियों को भी चित्रित किया। सोभा सिंह ने 1937 में पहली बार पंजाब की सबसे लोकप्रिय पे्रम कहानियों में से एक सोहनी महिवाल को चित्रित किया। इस पेंटिंग से उन्हें तब बहुत ख्याति मिली, जब इसे डा. कर्ण सिंह ने खरीदा। 1954 में पहली बार इसे प्रिंट किया गया। वर्ष 1978 में इसकी पांचवी बार पेंटिंग बनाई गई और सोभा सिंह आर्ट गैलरी, अंद्रेटा में इसे देखा जा सकता है। सरदार सोभा सिंह ने हीर-रांझा, सस्सी-पुन्नू, शीरीं-फरहाद और मिर्जा साहिबां आदि प्रेम कहानियों पर भी चित्रों को बनाया। उनकी एक अन्य बेहतरीन पेंटिंग मशहूर फारसी कवि उमर खैयाम पर भी है। उन्होंने पंजाब व हिमाचल प्रदेश के इलाके की दुल्हनों पर एक श्रंखला को चित्रित किया है।
सोभा सिंह एक अच्छे शिल्पकार भी थे। उनकी बनाई अभिनेता पृथ्वीराज कपूर की प्रतिमा ‘ग्रो मोर गुड’ कला परिसर के अग्रभाग पर सुशोभित है। उन्होंने कवयित्री अमृता प्रीतम, डा. एम. एस. रंधावा की प्रतिमाएं भी बनाईं। अपने कार्यों के लिए उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान मिले। भारत सरकार ने पदमश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने उनकी 75वीं जन्मजयंती पर वृत्तचित्र ‘पेंटर आफ पीपल’ जारी किया। बीबीसी ने भी उन पर वृत्तचित्र बनाया। 1973 में पंजाब सरकार ने उन्हें राज्य कलाकार घोषित किया और दो बार पंजाब ललित कला अकादमी द्वारा सम्मानित किया गया। जनता के इस सर्वप्रिय-सर्वसम्मानित चितेरे का 22 अगस्त, 1986 को चंडीगढ़ में निधन हो गया और पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।
आज भी जीवित है विरासत
राष्ट्रपति भवन, लोकसभा, विभिन्न राज्यों के राजभवनों, राजकीय संग्रहालयों तथा देश-विदेश के निजी संग्रहों के अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में कलाग्राम अंद्रेटा स्थित सोभा सिंह आर्ट गैलरी में इस संत कलाकार की बनाई लगभग पांच दर्जन मूल कलाकृतियां प्रदर्शित हैं। सोहनी महिवाल, स्वर्ग में सोहनी, महाराजा रणजीत सिंह, कंवर दलीप सिंह, मुरली मनोहर, गुरु गोबिंद सिंह, तिब्बत के मार्ग पर गुरु नानक देव, गुरु अमर दास, गुरु हरगोबिंद साहिब, हीर-रांझा, गद्दण, प्रभात की देवी, कला हृदय की भाषा, अमर बलिदानी भगत सिंह, करतार सिंह सराभा, ऊधम सिंह, लाल बहादुर शास्त्री, जवाहर लाल नेहरू, महात्मा गांधी आदि के प्रभावशाली चित्र मौजूद हैं। उनकी अंतिम और अधूरी कलाकृति भी यहां संत रविदास स्टूडियो में प्रदर्शित है। सोभा सिंह संग्रहालय में कलाकार की जिंदगी को दर्शाती करीबन 150 तस्वीरें, उनका निजी सामान जैसे ब्रश, पेंट, किताबें, बिस्तर, कुर्सियां, लाठी, रेडियो-कम-रिकार्डर, कपड़े आदि को संरक्षित रखा गया है।
सोभा सिंह आर्ट गैलरी परिसर में कलाकार तपोवनी भी स्थापित की गई है। इसका मकसद स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्पित कलाकारों को प्राकृतिक माहौल प्राप्त करवाना है ताकि शांत और अनुकूल वातावरण में उनकी ऊर्जा और कृतित्व को नई दिशा मिले। यहां पर छह प्रदर्शनियों का आयोजन किया जा चुका है। गैलरी का प्रबंधन संत कलाकार की बेटी बीबी गुरचरण कौर परिवार की मदद से सीमित संसाधनों के साथ करती हैं। आर्ट गैलरी में संत कलाकार की जयंती के अवसर पर विभिन्न कलात्मक गतिविधियों का आयोजन कर कलाकारों की रचनात्मकता को मौका प्रदान किया जाता है। इस वर्ष 29 नवंबर से तीन दिवसीय सोभा सिंह कला उत्सव में लोक संस्कृति को सहेजने और संरक्षित करने के लिए विद्यार्थियों के लिए कार्यशाला रखी गई है।
(लेखक सोभा सिंह मेमोरियल आर्ट सोसायटी, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश के सचिव हैं)
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