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    आनंद के स्रोत हैं सत्य, प्रेम और करुणा, जिसकी प्रेरणा देती हैं श्री राम की कथा

    By Jagran NewsEdited By: Vivek Bhatnagar
    Updated: Sat, 22 Oct 2022 06:06 PM (IST)

    राम कथा युवाओं को यही संदेश देती है कि जीवन को आनंददायक बनाना है तो सत्य प्रेम और करुणा का भाव मन में होना ही चाहिए। राम ही अंतिम सत्य हैं। जो राम को ...और पढ़ें

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    राम ने अपने जीवन में आदर्श मनुष्य के लिए सीख ही सीख दी है, जिसका पालन करना सबका कर्तव्य है।

     मोरारी बापू। सुख और दुख सापेक्ष हैं। आइंस्टीन ने सापेक्षता के सिद्धांत को बहुत बाद में सामने रखा, रामचरित मानस ने बहुत पहले हमें ये बता दिया था। अयोध्या में भगवान राम के जन्म से लेकर विवाह तक उत्साह का माहौल था, लेकिन उसके बाद वहां वियोग का वातावरण बनने लगा था। प्रत्येक मनुष्य को कर्म का फल भोगना ही पड़ता है। अयोध्या के राजा दशरथ के हाथों जब भूल से श्रवण कुमार का वध हो गया तो उन्हें राम का पिता होते हुए भी पुत्र वियोग का फल भोगना पड़ा। कर्म का फल भी प्रत्येक व्यक्ति को भोगना पड़ता है। चाहे वह कोई सामान्य मनुष्य हो या स्वयं भगवान राम के पिता दशरथ। रामचरित मानस के अयोध्या कांड में इसका वर्णन है कि जब राम, लक्ष्मण व सीता वन को चले गए तो पुत्र वियोग में दशरथ ने कौशल्या से कहा कि मुझे दीवारों में श्रवण कुमार के माता-पिता का चित्र दिखाई दे रहा है।

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    श्रवण कुमार के अंधे माता-पिता ने उन्हें शाप दिया था कि वृद्धावस्था में चार पुत्र होते हुए भी पुत्र वियोग सहन करना पड़ेगा और अंत समय में कोई पास नहीं होगा। अंत समय में राजा दशरथ की भी पुत्र वियोग में मृत्यु हुई, जबकि वे स्वयं नारायण के अवतार राम के पिता थे। युवाओं से विशेष रूप से मेरा निवेदन है कि राम के नाम का उच्चारण करें या न करें, लेकिन कुसंगति न करें। अयोध्या में जो भी हुआ, वह केवल कुसंगति के कारण ही हुआ। मंथरा की कुसंगति ने कैकेयी को युगों-युगों तक अपमानित होने के लिए विवश कर दिया। मैं अक्सर कहता हूं कि किसी से ईर्ष्या न करें। ईर्ष्या से ऐश्वर्य तो मिल सकता है, लेकिन शांति नहीं। निंदा से स्वर्ग तो मिल सकता है, लेकिन निद्रा नहीं मिलेगी।

    रामचरित मानस में राम और भरत हमें बताते हैं कि प्रेम में दबाव नहीं, समर्पण का भाव होता है। चित्रकूट में जब राम और भरत का मिलन होता है तो दोनों भाई एक-दूसरे को देखकर विलाप कर रहे हैं। राम भरत को राज करने को कहते हैं और भरत राम का सेवक होने के चलते राम के चरण में ही शांति मिलने की बात कहते हैं। दोनों में लेश मात्र का भी लोभ नहीं है, इसीलिए राम जंगल में वनवासी थे तो भरत ने महल में रहते हुए भी वनवासी का जीवन व्यतीत किया। ऐसा उदाहरण दुर्लभ है।

    रामचरित मानस की कथा युवाओं को यही संदेश देती है कि जीवन को आनंददायक बनाना है तो सत्य, प्रेम और करुणा का भाव मन में होना ही चाहिए। राम ही अंतिम सत्य हैं। जो राम को जान लेता है, उसके अंदर प्रेम और करुणा का भाव होना सहज स्वाभाविक ही है। राम ने अपने जीवन में आदर्श मनुष्य के लिए सीख ही सीख दी है। उनका एक-एक कर्म मनुष्यता भरा रहा है। उन्होंने राजा बनने के बाद ही प्रण लिया था कि जब तक सामान्य आमजन रहे, सबसे सेवा ली, लेकिन अब सबकी सेवा करना उनका कर्तव्य है। अब किसी से सेवा नहीं लेंगे। श्रीराम वनवास से वापस आकर अयोध्या में सबसे पहले कैकेयी से मिलने के लिए गए। वहां जाकर उन्होंने उनसे मिलकर मां का संकोच तोड़ा, क्योंकि वह संकोच ओर पश्चाताप में थीं।

    प्रस्तुति : राज कौशिक